Sunday, December 12, 2010

Jaisa Nam Vaisa Kam

जैसा नाम - वैसा काम
न्यायमूर्ति आपका वंदन है अभिनंदन है
रामकिशोर पंवार
बैतूल जिले में अभी तक आयोजित की गई सभी लोक अदालतो के माध्यमो से आपसी राजीनामों के आधार पर अभी तक के निपटायें गये सभी मामलो में इस बार एतिहासिक पहल हुई है. ऐसा नहीं कि जिले में अभी तक लोक अदालतो में अपेक्षित मामले नहीं निपटायें गये. जिले में जहाँ एक ओर शनिवार के दिन लोग कोर्ट - कचहरी  के चक्करो से बचने के लिए सूर्यपुत्र शनिदेव - सूर्यपुत्री माँ ताप्ती एवं सूर्यदेव के शिष्य भगवान शिव के पांचवे रूद्र अवतार पवनपुत्र हनुमान जी की शरण में उपस्थित होते है, वहीं दुसरी ओर हजारो बैतूल जिले के मुलताई - बैतूल - आमला - भैसदेही न्यायालयों में दर्ज शारीरिक - मानसिक - आर्थिक प्रताडऩा के साथ - साथ अपराधिक मामलो के आपसी सुलह नामें की सराहनीह पहल करते हुये इन मामलो के पक्षकारो एवं आरोपियो को बकायदा कोर्ट नोटिस पुलिस के माध्यम से भिजवाये गये थे जिसके चलते शनिवार के दिन इन सभी न्यायालयों मेला लगा हुआ हुआ था. हजारो की संख्या में लोगो की भीड़ न्याय को खोजती यहाँ पर पहँुची जिसे सुबह से शाम तक रूकने के बाद आपसी राजीनामें का कागज ही नहीं मिला बल्कि अपेक्षित न्याय एवं मुआवजा भी मिला. बैतूल जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभिनंदन जैन के कार्यकाल में जिले में उनके नाम के अनुरूप कार्य संपादित होने से जिले के दो हजार एक सौ तेरसठ मामलो का आपसी सुलह पर समाधान होने के साथ - साथ एक करोड़ , सतरह लाख रूपये से भी अधिक की राशी भी मुआवजे के रूप में मिलेगी. जिले में पहली बार मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर के दिशा निर्देश एवं जिला एवं तहसील न्यायालयो की साझा पहल पर दहेज प्रताडऩा - भरण पोषण दावा प्रकरण - वैवाहिक प्रकरणो - मोटर दुर्घटना दावा प्रकरणो - समरी प्रकरण - लड़ाई - झगड़ो के छोटे - मोटे अपराधिक प्रकरण - चेक बाउंस के मामले - राजस्व अधिनियम - विद्युत अधिनियम - वन अधिनियम - उप पंजीयक एवं जिला पंजीयक के दर्ज मामलो में दोनो पक्षो को एक साथ बुलावा भेज कर उनके बीच सुलह का प्रयास हजारो लोगो के लिए किसी तीज त्यौहार से कम नहीं था. इस दिन घर से न्याय की आशा के साथ आये हजारो लोगो के बीच यदि दो हजार से अधिक लोगो को अब आने वाले कल में  कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ेगें साथ ही  ऐसे लोगो को वकीलो के एवं न्यायालयो के सामने घंटो खड़ा नहीं रहना पड़ेगा. ऐसे लोगो को न्याय तो मिला साथ ही न्याय के प्रति उम्मीद भी जगी कि उन्हे देर ही सही लेकिन न्याय तो मिला. ऐसे प्रकरणो में दो पक्षो के बीच पीसते चले आ रहे गवाहो एवं साक्ष्यो सबूतो को भी बंद पड़े ताबूतों से मामले के निपटते ही सदा - सदा के लिए मुक्ति मिल गई. जिले में आदिवासी - पिछड़े - दलित - पीडि़त - शोषित - प्रताडि़त समाज के लोगो की भीड़ न्याय के लिए सबसे अधिक संख्या में आकर आपसी सुलहनामें के कागज के साथ मतभेद एवं मनभेद को भी सदा - सदा के लिए भूला कर एक दुसरे से गले मिल कर सारे गले - शिकवो को भूला कर एक नई जिदंगी की शुरूआत की कामना के साथ अपने - अपने घरो को लौटी. बैतूल जिले में लोक अदालतो के माध्यम से इस बार दो पक्षो के अधिवक्ताओं को भी जोडऩे का अभिनव प्रयास किया गया. कहना नहीं चाहिये लेकिन इस सच्चाई से कोई भी मुंह नही चुरा सकता कि अकसर कोर्ट - कचहरी का चक्कर लगाने वाला पक्षकार - आरोपी तथा गवाह वकीलो एवं बिचौलियो की कमाई का माध्यम रहता है. मामला यदि जल्दी सुलझ गया तो फीस - कमीशन के मारे जाने के चक्कर में लोग जान बुझ कर भी मामलो को पेडिंग रखते है ताकि सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी अधिक समय तक जीवित रह सके. नीजी स्वार्थ एवं मुंछ की लड़ाई के चक्कर में भी अकसर कई मामले आपसी सुलह से सुलझ सकते है लेकिन कहीं न कहीं किसी न किसी आदमी का इगो उसे ऐसा करने से रोक - टोक देता है. उसके ऐसा करने से वह स्वंय भी कोर्ट कचहरी तथा वकीलो के चक्कर लगाता है तथा दुसरो को भी चक्कर लगवाने के लिए बाध्य करता है. न्यायालयो में ऐसे हजारो प्रकरण आज भी पेडिंग पड़े है जिसमें आरोपी को मिलने वाली सजा से अधिक साल उसके कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में बीत चुके है. जिन मामलो में तीन से एक साल की सजा है उन मामलो को दस - दस साल से विचाराधीण रहना अपने आप में विचारणीय तथ्य है पर कोर्ट - कचहरी के मामलो में किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी न्यायालय की अवमानना का कारण एवं कारक बनती है इसलिए लोग गांधी जी के तीन बंदरो के रूप में स्वंय को ढाल रखे है.  लोक अदालतो के बहाने न्यायालयो में दर्ज प्रकरणो के बोझ से स्वंय न्यायालय भी मुक्त हुई है. लोक अदालतो में ऐसे मामलो के निपटारे से दोनो पक्षो के बीच बरसो से चवली आ रही कड़वाहट के साथ साथ कई ऐसे सुखद क्षण भी देखने को मिले है जिससे लोगो के घर - परिवार भी बसे है. पति - पत्नि के बीच आई छोटी सी कड़वाहट का दंश भोग रहे दोनो के परिजनो के साथ - साथ रिश्तेदार एवं पड़ौसी तक को इन मामलो के सुलह हो जाने के बाद चैन की सांस लेने का मौका मिला है. वैवाहिक रिश्तो में आई दरार को भी लोक अदालतो ने पाटने का अद्धितीय कार्य किया है. ऐसे युवा दम्पति जो कि जवानी से पौढ़ आयु तक कोर्ट - कचहरी के चक्कर काटते चले आ रहे थे उनके बीच भी आपसी रजामंदी ने उनके नये जीवन की शुरूआत की है. इस बात को कादपि अपने मान - सम्मान से वकालत के पेशे से जुड़े लोग न ले तो उसे कहना का औचित्य है. बात कुछ इस प्रकार की है कि यदि इस तरह की लोक अदालते यदि लगातार हर माह लगनी शुरू हो गई तो कई वकीलो के सामने रोजी - रोटी का संकट आ जायेगा क्योकि यदि एक माह में हजार या दो हजार मामले आपसी सुलह से सुलझ जाने लगे तो कोर्ट कचहरी के वकीलो को हर माह हजारो से लेकर लाखो की फीस से हाथ धोना पड़ सकता है. यदि लोक अदालते नहीं लगती है तो यही दो हजार पक्षकार हर महिने अपनी पेशी तारीखो पर आकर बस - टैक्सी से लेकर वकीलो एवं होटलो और पानठेले वालो का परिवार कैसे पाल पायेगे. इन सब से हट कर एक बाज यह भी कटु सत्य है कि जब तक मुर्ख जिंदा है तब - तक बुद्धिमान का घर खर्च चलता रहेगा. ऐसे में वकीलो की गिनती तो बुद्धिजीवी वर्ग में आती ही है. कुल मिलाकर एक बात तो तारीफे काबील है कि दोनो पक्षो के अलावा न्यायाधीश एवं वकीलो की साझा पहल पर एक नही दो नहीं बल्कि हजारो लोगो को समय के पूर्व न्याय मिला तथा कोर्ट कचहरी के चक्करो से लोगो को छुटकारा मिल जायेगा.

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