Sunday, December 12, 2010

Garibo Ka Aapman

गरीबो के मेले के बहाने गरीबी और गरीबो का मजाक उडाना और
जिनके कल पैरो पर गिडगिडाये थे आज उन्ही से पैर पड़वाना कहां का न्याय ....?
रामकिशोर पंवार  ''रोंढ़ावाला''
 ''माटे कहे कुम्हार से  तू क्यों रौंधे मोहे , एक दिन ऐसा आयेगा मैं रोंधूगीं तोहे......!'' उक्त दोहा मैने शायद मैं बचपन में पढ़ा था। कबीरदास की उक्त पंक्तियां माटी के दर्द को बयंा करती है लेकिन माटी की चेतावनी भी किसी से छुप नहीं है। इस समय पूरे जिले में गरीब मेला चर्चा का विषय बना रहा है। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो से गरीबो को बैतूल जिला मुख्यालय पर बुलवा कर उनसे कुछ साल पहले पड़वाये पैरो एवं हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने का सही बदला बैतूल जिले के काग्रेंसी और भाजपाई विधायको एवं जिले के इतिहास की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे तथा प्रभारी मंत्री सरताज सिंह ने लेकर बता दिया कि ''प्रजातंत्र में वोट बैंक का जिसे मालिक कहा जाता है वह देखो सरकारी सुविधाओं के लिए पैरो पर हाथ जोड़ कर उनके पैरो पर गिरता है......!''  कड़ाके की ठंड में टे्रक्टर ट्रालियो में भेड़ बकरियों की तरह ठुंस - ठुंस कर लाये गये अधनंगे - भूखे गरीबो का और उनकी गरीबी का खुले आसमान के नीचे जिस ढंग से मजाक उड़ाया गया वह अपने आप से प्रजातंत्र के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है। 12 लाख मतदाता बाहुल्य बैतूल जिले के 20 हजार से अधिक गरीबो को राशन कार्ड से लेकर रोजगार पंजीयन - वृद्धा पेशंन - विकलांग पेशंन - डीजल पम्प सहित जरूरत की वस्तुओं के लिए भीखारियों की तरह लाइल में घंटो खड़े रहने को विवश होना पड़ा। शिवराज के सूराज - स्वराज - रामराज्य में गरीबो को हितग्राही प्रमाण पत्रो को देने के लिए मंचो पर बुलवाया गया तो उनसे पैर पड़वाने में आदिवासी समाज की बेटी - बहू - भाभी - ननद - जेठानी - देवरानी - ननद का दंभ भरने वाली श्रीमति ज्योति धुर्वे को भी थोड़ी सी हिचक नहीं हुई कारण कुछ भी हो लेकिन उसे तो यह बताना भी जरूरी था कि कल तक भले ही जमाना के पैरो के नीचे थी लेकिन आज तो जमाना मेरे पैरो के नीचे है...... !  ऐसा नहीं कि अकेली सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे ही ऐसा कर रही थी उसके साथ मंच पर खड़ी श्रीमति गीता उइके भी पैर पर लोगो को गिरता देख अपने चेहरे की मुस्कराहट को रोक नहीं पा रही थी। यकीन नहीं आता तो सीटी केबल - एनज्वाय केबल - सिम्स न्यूज और देश - प्रदेश के नामी - गिरामी न्यूज चैनलो पर दिखाये गये समाचारो के फूटेज - वीडियो क्लीप्स देख कर हकीगत को जान सकते है। यदि फिर भी यकीन न हो तो सरकारी चैनल दूरदर्शन के फूटेज भी देखना न भूले। बैतूल जिले के 12 लाख मतदाता जिसे लोकतंत्र का मालिक कहा जाता है उसका देश के इतिहास में पहली बार मेले के रूप में अपमान किया जाना सबसे शर्मनाक त्रासदी है। बैतूल जिले की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे भी इस तरह के मेले और गरीबो को बैतूल बुलवाने के सवाल पर सवाल उठा चुकी है लेकिन एक अकेली बेचारी करे भी तो क्या क्योकि चारो ओर तो वह सब कुछ हो रहा है जिसे देख कर घृणा और तिस्कार महसुस होने के बाद गांधी जी के तीन बंदरो की तरह ही बने रहना मजबुरी है.......! मैं गरीब मेले के एक दिन पहले शाहपुर तहसील के कुछ गांवो में गया जहां पर मैने दर्जनो आदिवासियों एवं दलित तथा पिछडे ग्रामिणो से मेले के बारे में पुछा तो उनका जवाब था कि  ''पंचायत में सचिव और सरपंच ही नहीं मिलता तो मेले में जाने को कहां से मिलेगा.....!'' बात भी सोलह आने सच है कि जिस गांव में सरपंच - सचिव से महिनो मुलाकात नहीं होती वे आखिर पूरे गांव को शादी का या बैतूल ले जाने का न्यौता देने लेगे तो 558 ग्राम पंचायतो के लाखो लोगो को लाने और ले जाने के लिए जिले के टे्रक्टर ट्राली - बसे - जीपे - ट्रक तक कम पड़ जायेगें। इन लोगो बैतूल के बीस पुलिस ग्राऊण्ड भी कम पड़ जायेगे। दो चार लाख लोगो को खाना खिलाने के लिए सरपंच एवं सचिवो को स्वर्गीय राजीव गांधी के 15 पैसे में से भी अन्टी मारनी पडेगी और फिर गांव पहुंचेगा एक धेला भी नही.......? गांव में लोगो को जब जाबकार्ड रहने पर या राशन कार्ड रहने पर जब कुछ भी नहीं मिलता तब उनको बैतूल बुलवा कर उनकी एक दिन की मजदूरी भी छिन लेने में बैतूल के नौकरशाहो ने कोई कसर नही छोड़ी। इस गरीब मेले के बहाने बैतूल के मुखिया का कथित एक पंथ दो काज का हल भी निकल गया। कोई माने या न माने लेकिन कलैक्टर साहब ने सोच रखा है कि जितनी भाजपा सरकार की बैण्ड बजाई जाये बजाने में कोई कसर न छोड़ी जाये क्योकि गरीब मेले के दिन उन्हे पता था कि ज्योति टाकीज में बैण्ड - बाजा - बराती फिल्म लगी है। कलैक्टर साहब की कुछ दिन की नौकरी बची है इसलिए साहब भी दलित समाज की ओर से आमला की टिकट पर चुनाव लडऩे का सपना देख रहे है......! साहब इसलिए फुलिया हो या फिर फुलवा सभी को यह बताने में कोई कसर नही छोड़ रहे है कि ''भाजपा सरकार में उन्हे न्याय नहीं मिलने वाला .....!'' और यही कारण भी हो सकता है कि साहब का स्टेनो बार - बार ऐसे लोगो को भगा कर - दुत्कार कर ज़हर पीने को विवश कर रहा हो......? कहने के मतलब तो कुछ भी निकाले जा सकते है लेकिन चैतराम भैया को अपनी सीट को अगले चुनाव में खोना पड़ सकता है और उनके हाल भी शिवप्रसाद भैया और सज्जन सिंह जैसे हो सकते है....! अब ऐसा है कि साहब यदि बैतूल से चुनाव लडेगें तो चैतराम की टिकट कटेगी और नहीं कटी तो कांग्रेस से किसी की कटेगी....! वैसे चर्चा है कि साहब का बैतूल में रहने का पूरा मन है क्योकि उन्हे सुनील कल्लू - मल्लू - बल्लू - लल्लू जैसे चमचे  - चाटुकार - दल्ले और भड़वे कहां मिलेगें। बैतूल जिला मुख्यालय पर गरीब मेले के आयोजन पर भाजपा के नेताओं का सूर भी सरकारी आयोजन के खिलाफ ही निकला और कुछ मायने में नेताओं को भी लगा होगा कि ''साली इतनी भीड़ तो हमारे किसी भी कार्यक्रम में नहीं आई लेकिन नेताजी को कौन बताये कि गले तक गबन - घोटाले - भ्रष्ट्राचार में फंसे उनके सरपंच और सचिव भी किसी राजा के टू जी घोटाले से कम नहीं है। किसी ने खुब कहां है कि ''मरता क्या नहीं करता .....!''  बैतूल जिले की पचास से अधिक पंचायतो के सचिवो के खिलाफ अभी तक लाखो रूपयो की वसूली के आदेश होने के बाद भी सरपंच - सचिव के चेहरो पर सिकन तक नहीं है क्योकि उन्हे मालूम है कि ''सैयां तो बहुंत कमावत है और ससुरी सरकारी डायन खाये जात है......!'' पैसे में वह तकात होती है कि पैसे के सामने ''मुन्नी भी बदनाम है.....!'' बैतूल जिले में गरीब मेले में बैतूल जिले के सभी विधायक और सासंद - नौकरशाह तक ने बैतूल जिले के दूर - दराज से आई ग्रामिण जनता जिसमें माता - बहने और पिता और भाई समान वे लोग थे जिनके कुछ ही दिन पहले ही पैरो पर गिर कर उनसे उनका बहुमूल्य वोट मांग कर उनके दुख - दर्द को बाटने का वचन दिया था। कल गांव के झोपड़े में उनके पैरो की धूल से स्वंय का राजतिलक करने वाले सत्ता के मद में मदमस्त हुये राजा अपनी ही प्रजा के नौकर बनने के बजाय मालिक बन कर उनसे पैरो पर गिड़गिडाने में स्वंय को किसी प्रकार की लज्जा या शर्म तक महसुस नहीं कर सके। मुझे एक प्राचिन कथा याद आती है जब राजा नल को भी अपनी रानी दमयंती के तिस्कार के लिए जंगलो में खाक छाननी पड़ी। राजा की ससुराल विदर्भ थी जिसका एक अंग बैतूल भी रहा है। इसी बैतूल जिले में मासोद के पास वह तालाब उस एतिहासिक  एवं पौराणिक कथा का साक्षी है जहां पर राजा नल को तालाब की भूनी हुई मछली से भी हाथ धोना पड़ा था। लोकतंत्र एवं प्रजातंत्र के इन महारथियों में से अधिकांश पर शनि देव की वक्र दृष्टि चल रही है। श्रीमति ज्योति धुर्वे को भले ही लग रहा हो कि उनका फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला कथित पेडिंग पड़ा हो लेकिन अभी क्लीन चीट नहीं मिली है। ठीक इसी प्रकार से चौथिया का पारधी कांड कई लोगो को छत्तीस लाख की बिल्डिंग तक ले जायेगा। ऐसे में उस प्रजातंत्र के मालिक से सार्वजनिक रूप से पैर पड़वाने का आनंद भी आनंद कुरूील साहब के रिटायरमेंट की तरह करीब है। बैतूल जिले की ग्रामिण जनता का 1 अप्रेल 10 से लेकर 30 सितम्बर 10 तक एपीएल का राशन का गेंहू का गबन करने वालो में से मात्र यदि चार भी जेल जाने का टिकट कटवा चुके तो चार सौ लोगो को संभल जाना चाहिये लेकिन चार से चालिस भी नहीं सुधरे तो जिले का भगवान ही मालिक.....! वैसे जिले की जनता श्रद्धा एवं विश्वास तथा प्रेम से जिसे भगवान कहती थी वह भी बद्किस्मती से इस दुनियां से चलां गया ऐसे में शनि की कुदृष्टि से तो अब कोई नहीं बचाने वाला क्योकि जब बैतूल के जनप्रतिनिधि अपनी मां समान पुण्य सलिला मां ताप्ती के मान - सम्मान का ख्याल नहीं रख सके तो फिर शनि महाराज से उन्हे किसी भी प्रकार की दया की उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। कुल मिलाकर बात घुम फिर कर वहीं आ जाती है कि ''जो भरा नहीं है भाव से , जिसे बहती नहीं रसधार है, वह हद्रय नहीं पत्थर है जिसमें अपनी मां के प्रति मान - सम्मान की रक्षा का अभाव है......!''  बैतूल जिले में गरीब मेला को लेकर प्रशासन जितने भी दावे कर ले लेकिन यह बात कटू सत्य है कि गरीब मेले में गांव के अमीर आये लक्जरी गाडिय़ो में और गांव के गरीब लाये गये टे्रक्टर एवं ट्रालियों में भेड़ - बकिरयों की तरह ठुंस - ठुंस कर .....!  ऐसा भलां क्यों न हो जब बैतूल जिले की सासंद के पास जाबकार्ड हो और गांव के गरीब के पास न तो जाब  है और न कार्ड .....! जब गांव के जमीरदार के पास बीपीएल और अत्योंदय के राशन कार्ड हो और भूखे - अधनंगे गरीब के पास सफेद एपीएल कार्ड हो तब गांव का अमीर यदि लक्जरी गाडिय़ो में आकर बैतूल की महंगी होटलो में दावते और मामाजी की दुकान मे ज्वेलर्स खरीदता हो तो गांव के सम्पन्न एपीएल कार्ड धारको को टे्रक्टर ट्राली में आने और अपने साथ लाई रोटी - बेसन - चटनी के साथ आसमान के नीचे खाना खाने के बाद किसी तरह की ज़लन महसुस नहीं करनी चाहिये। बैतूल जिले के गांवो में बसने वाली ग्रामिण जनता को यदि मंगलवार की जनसुनवाई में जब न्याय नहीं मिल पाता है तब गरीब मेले में क्या खाक न्याय मिला होगा। बैतूल जिले के कुछ समाचार पत्रो के पत्रकारो ने साहस दिखा कर गरीब मेले को लेकर प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियो को आइना दिखाने का जरूर काम किया लेकिन तारीफ तो तब होती जब वे इस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र देश के मालिक को नौकरशाहो एवं जनप्रतिनिधियों के पैरो पर गिरता हुआ और गिड़गिड़ाता हुआ फोटो छाप कर इस लेख की भावना को अपनी अभिव्यक्ति का परिचय देते। बरहाल चलते - चलते यही कहना चाहता हँ कि ''राजा भोज को भी गंगू तेली के घर पर नौकरी करनी पड़ी थी........!'' 

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