Wednesday, February 23, 2011

Ramkishore Pawar Rondhawala: धारवंशी पंवार करते हैं अपने पराक्रमी राजा भोज का ह...

Ramkishore Pawar Rondhawala: धारवंशी पंवार करते हैं अपने पराक्रमी राजा भोज का ह...: "धारवंशी पंवार करते हैं अपने पराक्रमी राजा भोज का हार्दिक अभिनंदन - वंदन - स्वागत आप हमारे राजा , हम हैं आपकी प्रजा रामकिशोर पंवार ''..."

धारवंशी पंवार करते हैं अपने पराक्रमी राजा भोज का हार्दिक अभिनंदन - वंदन - स्वागत आप हमारे राजा , हम हैं आपकी प्रजा रामकिशोर पंवार '' रोंढ़ावाला '' धार को छोड़ कर आए सैकड़ो पंवारों में मेरे अपने पूर्वज भी होगें जिन्होने किसी मजबुरी में अपनी राजधानी धार को छोड़ कर सतपुड़ाचंल, विंध्याचंल, मराठवाड़ा , खानदेश में शरण ली थी। धार छोड़ कर मंझधार में अटके पंवारों को अब स्वंय की पचहान नहीं छुपानी पडेंगी क्योकि अब कोई दुराचारी औरंगजेब उन्हे धर्मान्तरण के लिए बाध्य नहीं करेगा। अपनी पहचान बचाने के लिए बीहड़ जंगलों में बस गए पंवारों को एक हजार साल बाद अपने राजा के साथ अपनी राज्य एवं राजधानी भोजपाल में मान - सम्मान के साथ अपनी बसाई राजधानी को पुन: पाने का गौरव मिलने जा रहा हैं। अपनी पहचान छुपाने वाले इन पंवारों को अब यह बताना जरूरी नहीं होगा कि वे पिछड़ी जाति के हैं क्योंकि पंवार वंश की उत्पत्ति अग्रि से होने के कारण वे अग्रिवंशी कहे जातें हैं। पंवार राजपूत न छोड़ कर क्षत्रिय हैं इसलिए उन्हे स्वंय को राजपूत के बदले क्षत्रिय कहलाना ज्यादा उचित होगा। पंवार वंश क्षत्रियों की वह शाखा है जिसका इतिहास शौयगाथाओं एवं कला संस्कृति से भरा हुआ हैं। संस्कारधनी धारा नगरी जो वर्तमान में धार कहलाता हैं उसकी मिटट्ी से आने वाली सुगंध पंवार वंश के राजाओं का कीर्ति यश का गान करती हैं। मां वाग्यदेवी के उपासक राजा भोज के द्वारा पूरे देश में अपनी पहचान बनायें रखी धारा नगरी पूरी दुनिया में अपनी कला एवं संस्कृति की वह बेमिसाल धरोहर हैं जिसे आज अग्रेंजो ने अपने म्यूजियम में स्थापित कर रखा हैं। आज एक हजार साल बाद हमारे राजा अपने राज्य में बसने के लिए आए हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश से अपने साथ विदेश ले गए अग्रेंजो के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही मां वाग्यदेवी को भी धार की भोजशाला में लाकर स्थापित करने का सपना भी साकार हो जाएगा। राजा भोज को अपना मान - सम्मान वापस दिलवाने के लिए पूरी प्रदेश की सरकार एवं उसके मुखिया का धारवंशी पंवार आभार व्यक्त करते हैं। हमें अब पूरे देश के सामने अपने आप को अपनी पावन माटी को छोड़ कर भाग जाने का शर्मनाक अफसोस नहीं रहेगा क्योकि अब हमें अपना मान - सम्मान वापस मिलने जा रहा हैं। बसंत ऋतु के समाप्त होने के बाद फागुन मास में राजा भोज का भोपाल में वह भी उस झील के बीच - बीच स्थापित होने से उस झील का भी सीना फूल जाएगा जिसका निमार्ण उसके राजा भोज ने करवाया था। ताल - तलैया की नगरी भोजपाल में अपने राजा का अभिनंदन करते झील - सरोवर - जीव - जन्तु के अलावा पूरे देश में जा बसे धारवंशी पंवारों का दिल बाग - बाग उठा क्योकि चौड़ी छाती के साथ आदमकद से कई गुणा ऊंची राजा भोज की प्रतिमा अब लोगो के लिए धार और पंवार के इतिहास को जानने की जिज्ञासा को पैदा करेगा। अब हम स्वंय को गंगू तेली से ऊपर उठ कर देख पाएगें क्योकि शनि की कुदृष्टि अब राजा भोज के ऊपर से निकल रही हैं। शनि के प्रभाव के चलते राजा भोज को गंगू तेली के कोल्हू में बैल बन कर तेल की घानी को खीचना पड़ा था ठीक उसी प्रकार इस बार शनि की कुदृष्टि की वज़ह से अपने राज्य में सम्मान को तरसते राजा और उसकी प्रजा को मान और सम्मान उसी प्रकार मिल रहा है जिस प्रकार गंगू तेली के यहां पर काम करने से पूर्व छिन जाने के बाद मिला था। बैतूल जिले के सभी पंवारों को दुसरी बार स्वंय की पहचान को दुसरो के द्वारा बताए जाने के बाद जो अपार खुशी मिली वह देखने लायक हैं। बैतूल जिले में पहली बार आए प्रदेश के महामहिम राज्यपाल कुंवर मेहमुद अली ने स्वंय को धारवंशी पंवार का वंशज बता कर बैतूल जिले के पंवारों को सीना फूला कर चौड़ा कर दिया था। आज भले ही हमारे बीच राजा भोज और कुंवर मेहमुद अली खां नहीं है लेकिन राजा को पुन: अपने राज्य में बसने का अवसर देकर प्रदेश की सरकार ने धारवंशी पंवारो का दिल जीत लिया हैं। आने वाली 28 फरवरी को अधिक से अधिक संख्या में पूरे देश भर से आ रहे अग्रिवंशी धार के पंवारों की ओर से हम अपने राजा भोज का हार्दिक अभिनंदन - वंदन - स्वागत - सत्कार करते हैं।








धारवंशी पंवार करते हैं अपने पराक्रमी राजा भोज का हार्दिक अभिनंदन - वंदन - स्वागत
आप हमारे राजा , हम हैं आपकी प्रजा
रामकिशोर पंवार '' रोंढ़ावाला ''
धार को छोड़ कर आए सैकड़ो पंवारों में मेरे अपने पूर्वज भी होगें जिन्होने किसी मजबुरी में अपनी राजधानी धार को छोड़ कर सतपुड़ाचंल, विंध्याचंल, मराठवाड़ा , खानदेश में शरण ली थी। धार छोड़ कर मंझधार में अटके पंवारों को अब स्वंय की पचहान नहीं छुपानी पडेंगी क्योकि अब कोई दुराचारी औरंगजेब उन्हे धर्मान्तरण के लिए बाध्य नहीं करेगा। अपनी पहचान बचाने के लिए बीहड़ जंगलों में बस गए पंवारों को एक हजार साल बाद अपने राजा के साथ अपनी राज्य एवं राजधानी भोजपाल में मान - सम्मान के साथ अपनी बसाई राजधानी को पुन: पाने का गौरव मिलने जा रहा हैं। अपनी पहचान छुपाने वाले इन पंवारों को अब यह बताना जरूरी नहीं होगा कि वे पिछड़ी जाति के हैं क्योंकि पंवार वंश की उत्पत्ति अग्रि से होने के कारण वे अग्रिवंशी कहे जातें हैं। पंवार राजपूत न छोड़ कर क्षत्रिय हैं इसलिए उन्हे स्वंय को राजपूत के बदले क्षत्रिय कहलाना ज्यादा उचित होगा। पंवार वंश क्षत्रियों की वह शाखा है जिसका इतिहास शौयगाथाओं एवं कला संस्कृति से भरा हुआ हैं। संस्कारधनी धारा नगरी जो वर्तमान में धार कहलाता हैं उसकी मिटट्ी से आने वाली सुगंध पंवार वंश के राजाओं का कीर्ति यश का गान करती हैं। मां वाग्यदेवी के उपासक राजा भोज के द्वारा पूरे देश में अपनी पहचान बनायें रखी धारा नगरी पूरी दुनिया में अपनी कला एवं संस्कृति की वह बेमिसाल धरोहर हैं जिसे आज अग्रेंजो ने अपने म्यूजियम में स्थापित कर रखा हैं। आज एक हजार साल बाद हमारे राजा अपने राज्य में बसने के लिए आए हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश से अपने साथ विदेश ले गए अग्रेंजो के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही मां वाग्यदेवी को भी धार की भोजशाला में लाकर स्थापित करने का सपना भी साकार हो जाएगा। राजा भोज को अपना मान - सम्मान वापस दिलवाने के लिए पूरी प्रदेश की सरकार एवं उसके मुखिया का धारवंशी पंवार आभार व्यक्त करते हैं। हमें अब पूरे देश के सामने अपने आप को अपनी पावन माटी को छोड़ कर भाग जाने का शर्मनाक अफसोस नहीं रहेगा क्योकि अब हमें अपना मान - सम्मान वापस मिलने जा रहा हैं। बसंत ऋतु के समाप्त होने के बाद फागुन मास में राजा भोज का भोपाल में वह भी उस झील के बीच - बीच स्थापित होने से उस झील का भी सीना फूल जाएगा जिसका निमार्ण उसके राजा भोज ने करवाया था। ताल - तलैया की नगरी भोजपाल में अपने राजा का अभिनंदन करते झील - सरोवर - जीव - जन्तु के अलावा पूरे देश में जा बसे धारवंशी पंवारों का दिल बाग - बाग उठा क्योकि चौड़ी छाती के साथ आदमकद से कई गुणा ऊंची राजा भोज की प्रतिमा अब लोगो के लिए धार और पंवार के इतिहास को जानने की जिज्ञासा को पैदा करेगा। अब हम स्वंय को गंगू तेली से ऊपर उठ कर देख पाएगें क्योकि शनि की कुदृष्टि अब राजा भोज के ऊपर से निकल रही हैं। शनि के प्रभाव के चलते राजा भोज को गंगू तेली के कोल्हू में बैल बन कर तेल की घानी को खीचना पड़ा था ठीक उसी प्रकार इस बार शनि की कुदृष्टि की वज़ह से अपने राज्य में सम्मान को तरसते राजा और उसकी प्रजा को मान और सम्मान उसी प्रकार मिल रहा है जिस प्रकार गंगू तेली के यहां पर काम करने से पूर्व छिन जाने के बाद मिला था। बैतूल जिले के सभी पंवारों को दुसरी बार स्वंय की पहचान को दुसरो के द्वारा बताए जाने के बाद जो अपार खुशी मिली वह देखने लायक हैं। बैतूल जिले में पहली बार आए प्रदेश के महामहिम राज्यपाल कुंवर मेहमुद अली ने स्वंय को धारवंशी पंवार  का वंशज बता कर बैतूल जिले के पंवारों को सीना फूला कर चौड़ा कर दिया था। आज भले ही हमारे बीच राजा भोज और कुंवर मेहमुद अली खां नहीं है लेकिन राजा को पुन: अपने राज्य में बसने का अवसर देकर प्रदेश की सरकार ने धारवंशी पंवारो का दिल जीत लिया हैं। आने वाली 28 फरवरी को अधिक से अधिक संख्या में पूरे देश भर से आ रहे अग्रिवंशी धार के पंवारों की ओर से हम अपने राजा भोज का हार्दिक अभिनंदन - वंदन - स्वागत - सत्कार करते हैं।