Wednesday, December 15, 2010
यह चम्पा का पेड़ अगर मां होता ताप्ती तीरे ,
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे - धीरे .....।''
लेख - रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
बचपन में मैने अपने ही गांव की आज जर्जर हो चुकी प्राथमिक पाठशाला में एक कविता पढ़ी थी कि ''वह कदम का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे , मैं भी उस पर बैठा कन्हैया बनता धीरे - धीरे '' । इस कविता को यदि मैं अपने परिवेश में कुछ सुधार कर उसे कुछ इस प्रकार से कहूँ कि ''यह चम्पा का पेड़ अगर मां होता ताप्ती तीरे , मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे - धीरे .....। '' यह संयोग ही है कि दो अलग - अलग मां की संताने यमुना और ताप्ती दोनो ही सूर्यपुत्री है। यम की बहन यमुना मथुरा में और शनिदेव की बहन ताप्ती बैतूल जिल में कलकल करती बहती चली जा रही है। जहां एक ओर वंदावन - मथुरा में वह कदम का पेड़ है वही दुसरी ओर ताप्ती तट से महज 12 किलो मीटर दूर मेरे गांव रोंढ़ा में भी यह चम्पा का पेड़ .... अफसोस सिर्फ इस बात का है कि मां ताप्ती मेरे घर के बाजू से नहीं बहती है यदि बहती तो मैं भी कदम के पेड़ की तरह इस चम्पा के पेड की डालियो पर बैठ कर बांसुरी बजाता और गांव की मेरे बचपन की गोपियो को मोहित करता ..... ऐसा न हो सका और न हो सकता क्योकि अब मेरी और चम्पा की उम्र भी काफी हो चुकी है। मेरा वजन बढ़ गया और चम्पा के पेड़ की डालिया भी संभव तह: मेरे इस भार को सहन कर भी न पाये। मेरी बचपन की शरारतो का गवाह बना चम्पा का पेड़ शायद हो सकता है कि मेरी इस बार की कोशिसो को माफ न कर सके। अब तो सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है लेकिन सच कहूं मेरा बचपन भी भगवान श्री कृष्ण की तरह शरारतो से गुजरा है। भगवान श्री कृष्ण की मां यशोदा तो उसे मूसल से बांधती थी लेकिन मेरी मां तो मेरी शरारतो से तंग आकर इतना पीटती थी कि मेरी आवाज सुन कर आसपास की महिलाये आज धमकती थी मुझे बचाने के लिए....। कोई कुछ भी कहे लेकिन जिसका बचपन यदि उसकी खटट्ी - मिठठ्ी यादो से नहीं जुड़ा है तो उसका जीवन नीरस जैसा है। गांव की अमराई की वह डाब -डुबेली हो या फिर गिल्ली - डण्डा सब खेलो में महारथ हासिल किये हम आज लंगड़ी घोड़ी का खेल भी शायद ढंग से न खेल पाये। आज के बच्चे सुबह से लेकर शाम तक पढ़ाई के बोझ से दबे जा रहे है। उन्हे शरारत करने का टाइम ही कहा मिलता। आज के इस दौर में इस नई पीढ़ी को समय मिलता उसे या तो कार्टुन फिल्में या फिर वीडियो - कंप्यूटर के गेम खा जाते है। मुझे ऐसा लगता है कि आज का बचपन कहीं खो गया है। मैं अपने बचपन की उस कविता को अपने बचपन की यादो से जोड़ रखा हँू। वह इसलिए क्योकि मेरा बचपन जिस पेड़ की डालियो पर उछल - कुद करते बीता वह चम्पा का पेड़ ही था। मेरी जन्म भूमि ग्राम रोंढ़ा के पैतृक मकान से लगा माता मंदिर का चबुतरा और उससे लगा वह चम्पा का पेड़ आज भी मेरे बचपन का साक्षी है। किसी शायर ने कहा है कि ''यादो को जिंदा रहने दो , क्या पता कब तुम्हे अपना वह बचपन याद दिला दे....'' इन्ही यादो से जुड़ा चम्पा का पेड़ आज पूरे बैतूल जिले में आस्था एवं श्रद्धा के साथ चमत्कार से जुड़ा एक सप्रमाण साक्ष्य है जिसे दुनिया की कोई भी कोर्ट झुठला नहीं सकती। एक बहुंत पुरानी फिल्म ''मेरा गांव - मेरा देश '' ठीक उसी परिवेश में मेरा गांव और मेरा चम्पा का पेड़ बचपन की उन खटट्ी - मिठठ्ी यादो को बरबस याद दिलाता रहता है। नटखट बचपन की शरारते और मां की मार और फटकार से बचने के लिए माता मंदिर का आला मेरे छुपने और रात में सोने का स्थान था। अब मंदिर के पून:निमार्ण के बाद वह आला तो नहीं रहा पर उस पेड़ को सुरक्षित रखने का काम किया गया जो कि इस गांव की ही नही बल्कि पूरे बैतूल जिले की बेमिसाल धरोहर है। मुझे अच्छी तरह से याद है कि चैत मास की नवरात्री में जब गांव के महिलाये मातारानी को भेट देने के लिए अपने घरो से रोज पुड़ी और खीर लाती थी। उस समय शक्कर की जगह गुड का उपयोग होता था. कभी कुम्हड़े की तो कभी चावल की खीर को हम चढ़ाने के बाद खा जाते थे। माता रानी को चढ़ाये जाने वाले एक पैसा पांच पैसा से हमारा जेब खर्च चलता था। पहले हर पूजा के बाद नारीयल फोड़ कर पैसे चढ़ाये जाते थे लेकिन आज पैसा तो दूर लोग नारीयल तक चढ़ाने से बचने लगे है। पहले गांव में हर नवरात्री पर गोंदर हुआ करते थे जिसमें गोंदरे इस चम्पा के पेड़ के नीचे रात भर सोगा मोर जैसी दर्जनो कहानियां सुनाया करते थे। आज कहानी तो दूर आरती तक नहीं होने से मातारानी के वजूद में कोई फर्क नहीं आया लेकिन गांव कोई न काई मुसीबतो के चलते छटपटता मिल जायेगा। पहले हमारे गांव में हर घर में ढोलक - मंजीरे - खंजरी हुआ करती थी जिस की थाप पर पूरा गांव झुम उठता था। आज गांव में रामलीला की जगह रावण लीला और खंजरी की जगह खंजर निकलने लगे है। जिसकी गांव की पहचान इस गांव की रामलीला को हुआ करती थी आज वहीं सर्वोदयी गांव झगड़ालू गांवो की श्रेणी में गिना जाता है। कुल मिला कर मेरे पूरे गांव की पहचान धुमिल सी होती जा रही है। अब चम्पा के पेड़ से मैं अपने गांव की पहचान गांव के लोगो की आस्था एवं श्रद्धा से करवाने का बीड़ा उठा क अपनें गांव को पुन: जनमानस में एक अच्छे गांव के रूप में बनाने का भागीरथी प्रयास करने जा रहा हँू। मेरा प्रयास हो सकता है कि बीच में ही ठहर जाये लेकिन मैं इतना जरूर कर जाऊंगा कि लोग मेरे गांव की भी चर्चा कर सके।
जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में जन्मे मेरे बाबू जी परम श्रद्धेय श्री दयाराम जी पंवार जो कि वन विभाग मे वनपाल के पद से सेवानिवृत होने के पूर्व ही अपने पुरखो के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के मंदिर के पुन: निमार्ण के लिए अपनी उक्त भूमि को दान में दे चुके थे। माता रानी का खण्डहर में तब्दील हो चुके चबुतरे को मंदिर का परकोटा बनाने का पूरे परिवार का संकल्प काफी दिनो बाद मूर्त रूप में बदला। इस चबुतरे पर लगे चम्पा के पेड की उम्र लगभग सौ साल से ऊपर बताई जाती है। यह मैं नहीं कहता मेरे ही गांव रोंढा की 74 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे जो कि ठीक मंदिर के सामने बने मकान में रहती है वह बताती है कि वह जब ससुराल आई थी तब भी यह चम्पा का पेड इसी स्थान पर था। श्रीमति गंगा बाई के अनुसार लगभग सोलह साल की उम्र में उसकी शादी हुई थी। उस समय से इस पेड को इसी स्थान पर देखते चली आ रही है। नाती - पोतो की हो चुकी श्रीमति गंगा बाई के घर पर उस चम्पा के पेड का डालिया आज भी फूलो की बरसात करते चले आ रहे है। इसी ग्राम रोंढा में जन्मी श्रीमति गंगा बाई का जन्म गांव के ही दुसरे मोहल्ले में हुआ था। वह बताती है कि उसके घर के पास स्थित इस चम्पा के पेड के नीचे से कभी हाथी आया - जाया करते थे। लेकिन चम्पा के पेड की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई - माता मैया कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी शामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बीमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड के पास माफी मांगी और पूजा - अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। गांव के लोग उस चम्पा के पेड के लिए गांव की गली को सड़क तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पडा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड को आँच न आये और सड़क बन जाये। ग्राम पंचायत रोंढा के उस वार्ड के भूतपूर्व पंच भगवान दास देवासे के अनुसार ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी बनाया जाना है जिसके लिए गांव के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल मेरे बाबूजी श्री दयाराम पंवार द्वारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी है। आज उस स्थान पर गांव की रक्षक माता रानी का भव्य मंदिर बन चुका हैै। मंदिर के निमार्ण कार्य में इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है कि माता रानी के ऊपर बरसने वाले चम्पा के फूल् बरसे जिसके लिए मंदिर को पेड की गुलाई के हिसाब से बनवाया गया है। मंदिर का काफी ऊपरी भाग को छोडऩे के पीछे चम्पा के फूलो का साल भर माता रानी पर बरसते रहने का रास्ता है। लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। मेरे अपने गृह ग्राम रोंढ़ा के चम्पा के पेड़ की उम्र के बारे में जयवंती हक्सर महाविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर कहते है कि यह वास्तव में अजरज वाली बात है क्योकि चम्पा के पेड़ की आयु इतनी अधिक नहीं होती जितनी बताई जा रही हे। उनके अनुसार पेड़ को माता रानी पर प्रतिदिन चढ़ाया जाने वाला पानी एवं वहां की जमीन से पौष्टिक आहार मल रहा होगा जिसके चलते वह अपनी आयु को दिन प्रतिदिन बढ़ाता चला जा रहा है.
बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकडो जी महाराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते रहते है। वैसे भी जब - जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के पेड के तीन गुण विशेष है पहला रंग - दुसरा रूप - तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेडो से इंसान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता। आज शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड में कड़वी नीम के पेड की एक नई फसल उगने के बाद पेड बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है। बैतूल जिले के ग्राम रोंढा के इस चम्पा के पेड़ के लिए अपना पैतृक खण्डहर हो चुके मकान के ध्वस्त हो जाने के बाद भी उस स्थान पर कोई मकान आदि का निमार्ण न करने मेरे बाबू जी ने अपनी तीस साल की सेवा में अनेको पौधो को रोपित किया। उन्होने कई नर्सरी से लेेकर वन विभाग की वन रोपिणी के पौधो को वितरीत करते समय ही इस बात को मन में ठान ली थी कि अब जरूरत है कि वनो की नहीं पेड़ - पौधो की रक्षा एवं सुरक्षा के प्रति आम इंसान को जोड़े। इसके लिए सबसे बड़ा माध्यम है कि लोगो को प्रेरित करे कि वह अपने घर के आंगन में कम से कम एक पौधा का रोपित कर उसे पाल पोश कर पेड़ बनाये ताकि वह आसपास का वातावरण शुद्ध रख सके। घने जंगलो में तीस साल की नौकरी के बाद आज भी उनका वनो से और पेडो से प्रेम बरकरार है। बाबू जी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एवं माता रानी के चबुतरे के लिए अपनी स्वेच्छा भूमि दान करके लोगो को एक संदेश देना चाहा है कि लोग इंच भर की जमीन के लिए एक दुसरे की जान के दुश्मन बने हुये है लेकिन उक्त जमीन को दान में देने से उनका गांव के प्रति प्यार और स्नेह और अधिक हो जायेगा। किसी ने कहाँ भी है कि जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि ...... हो सकता है कि शायद अपने बच्चो के एवं अपने जन्म से जुड़े अपने गांव से अपना रिश्ता बरकरार रखने के लिए जो 30 साल तक वन विभाग में वनो की सुरक्षा का दायित्व निभाने के बाद उम्र के उस ठहराव पर बाब ूजी का यह अभिनव प्रयास उन लोगो के लिए एक उदाहरण बनेगा जो कि अपने घरो - दुकानो - मकानो - सड़को और गलियों के नाम पर हरे - भरे पेड़ो को बेरहमी से काट डालते है। वैसे देखा जाये तो हमारा पूरा गांव आसपास के खेतो में लगे हरे भरे पेड़ो से घिरा हुआ है। गांव के को चारो ओर से खेत और खलिहानो से बंधे रहने के कारण गांव का विस्तार नहीं हो सका। आज यही कारण है कि मेरे अपने गांव के अधिकांश लोग बढ़ते परिवार में छोटे मकानो से छुटकारा पाने के लिए अब खेतो में ही अपना आशियाना बना चुके है। गांव की अमराई और गांव के पनघट आज भले ही पानी की कमी के कारण कुछ मुरझाये हुये से दिखाई पड़ रहे है लेकिन इन्ही अमराई में बहुंत समय बीता चुके हम उम्र के लोग आज भी अपने बचपन को नहीं भूल सके है। गांव की सकरी हो चुकी गलियो के बाद भी गांव तो हमारा आज भी बेमिसाल है क्योकि इस गांव में जन्मा व्यक्ति गांव - शहर - जिला - प्रदेश यहां तक कि विदेशो में भी बसने के बाद अपने गांव को नहीं भूले है। मेरे गांव का मेरा बचपन का साथी कुंजू आज भले ही सौसर के केन्द्रीय विद्यालय में संगीत शिक्षक है लेकिन उसके तबले की थाप और हारमोनियम की धुन आज भी मेरे कानो में सुनाई पड़ती है। हर इंसान को चंाद को छुने के बाद भी अपने गांव को नहीं भूलना चाहिये। मेरे एक पत्रकार मित्र ने मुझसे मेरे गांव के प्रेम के बारे में कुछ चुटकी इस प्रकार ली कि ''आज गांव न होता तो गंवार होता , बता ऐसे में तू कैसे रामकिशोर पंवार होता ....ÓÓ! उसके कहने का अभिप्राय: कुछ इस प्रकार था कि व्यक्ति की पहचान कहीं न कहीं उसके गांव से होती है। मैं जब भी अपने गांव - शहर - जिले से बाहर रहता हँू तो अपनी पहचान अपने गांव से और अपनी पूण्य सलिला मां ताप्ती से करता हँू। मेरे एक मित्र आलोक इंदौरिया भी मेरे इस प्रेम की वज़ह से अकसर मोबाइल वार्तालाप के बाद जय ताप्ती मैया कहना नहीं भूलते। हमें अपने साथ अपने से जुड़े सभी लोगो की पहचान करानी चाहिये। आज लोग कुछ भी कहे मेरे गांव के बारे में लेकिन यह बात को कटु सत्य है कि मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय पंडित रविशंकर शुक्ल के दोनो बेटो विद्याचरण और श्यामाचरण शुक्ल दोनो का पूरा परिवार मेरे गांव को मिठठु मामा की वज़ह से ही जानता था। इस गांव के मिठठु डिगरसे बैतूल जिले के एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिसे पूरा शुक्ल आवास में बिना रोक - टोक के आने - जाने की छुट थी साथ ही उनके परिवार की बहु से लेकर बेटे तथा नाती - पोते तक मामा कह कर ही पुकारते थे। हमारे गांव के मिठठु मामा जगत मामा थे और उनकी पहचान भी अपनी जन्म स्थली रोंढ़ा से जोड़ कर देखी जाती है। हर इंसान को चाहिये कि वह जीवन में ऐसा कुछ कर जाये कि लोग उसे बरसो याद करते रहे ठीक उसी तरह जैसे लोग आज चम्पा के पेड़ को याद करते है कि वह कितना पुराना एवं चमत्कारिक है।
इति,
Tuesday, December 14, 2010
Laut ke Aaa Or Aa Gaya Gujara huwa Jamana
''लौट कर नहीं आता गुजरा जमाना,अब किसी से मत कहना यही तराना ! ''
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
आज मैं जिस लेख को लिखने जा रहा हँू वह काफी चौकान्ने वाला और आश्चर्यचकित कर देने वाला है। इस लेख से वे सभी धारणायें तो गलत साबित होगी ही साथ ही वह फिल्मी तराना भी गलत साबित होगा। इतना ही नहीं बल्कि लोगो के दिलो - दिमाग में पैठ कर गये उस कहावत - मुहवारे एवं बरसो से चले आ रहे तकिया कलाम को झुठा साबित कर देगा जो यह कहता है कि '' गुजरा हुआ जमाना फिर लौट कर नहीं आता ......!'' इस लेख को लिखने के पहले मैं लखीमपुर जनपद के धौरहरा निवासी दैनिक जागरण के पत्रकार भाई दीपेन्द्र मिश्रा को हार्दिक बधाई देना चाहता हँू जिसने बीते 14 दिसम्बर 2010 के दैनिक जागरण कानपुर के अंक में यह सनसनी खेज समाचार छापा कि वर्ष 2005 एवं 2011 के दिन - तीथी - समय सब एक समान है। कुछ भी नहीं बदला और लौट आया गुजरा हुआ जमाना.......! समय चक्र ने इस बात को झुठला दिया है। यकीन नही आता आपको तो अपने मोबाइल फोन या फिर कप्यूटर पर वर्ष 2005 और 2011 का कैलेंडर देखिए। पूरे साल की तारीखें और दिन एक जैसे है। जी हाँ! समय ने खुद को दोहराया है।वर्ष 2005 और 2011 की सभी तारीखें और दिन एक जैसेदिन न बदलने से त्योहारों में भी एकरूपता वर्ष 2005 में जनवरी की पहली तारीख को दिन शनिवार था। 2011 में भी ऐसा ही है। 31 जनवरी सोमवार को थी। 2011 में भी 31 जनवरी सोमवार को ही है। 2005 में वैलेंटाइन डे 14 फरवरी सोमवार को मनाया गया था। वर्ष 2011 में भी ऐसा ही होगा। 2005 में मार्च मंगलवार को शुरू हुआ था। 2011 में भी इसी दिन शुरू होगा। ये तारीखें और दिन तो बानगी भर हैं। अगर आप 2005 और 2011 का कैलेंडर लेकर बैठें तो आपको आश्चर्य होगा कि पूरे साल के कैलेंडर में सब कुछ एक ही है। वर्ष 2005 में गणतन्त्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयन्ती आदि राष्ट्रीय पर्व हमने जिस दिन मनाएँ थे, 2011 में भी उसी दिनद मनाएँ जाएँगे। ज्योतिष और खगोलशास्त्री इस संयोग के कारण अलग-अलग परिभाषित कर सकते हैं, लेकिन लोगों के लिए यह है तो अद्भुत। वर्ष 2005 और 2011 में और भी काफी समानताएँ हैं, जो कि अध्ययन का विषय हैं। हिन्दु कलैण्डर एवं पंचाग को छोड़ कर यदि अग्रेंजी कलैण्डर की बात करे तो वह हर तीथी एवं समय बिलकुल एक जैसा है कुछ भी नहीं बदला सिर्फ बदला है तो वर्ष जो कि 5 के बदले 11 हो गया। इस लेख के पीछे मेरी भावना कुछ इस प्रकार बयां होती है कि कोई जवान स्वंय को बच्चा न समझे और बुढा व्यक्ति स्वंय को जवान समझ कर उछल कुद न करे वरणा मेरी तरह आपकी भी टांग टूट सकती है। मेहरबानी करके मेरी कहीं बातो का अर्थ का अनर्थ न निकाले क्योकि मेरी टांग उछल कुद के चलते नहीं टूटी है और न किसी ने तोडऩे की जरूरत की है। संयोग ऐसा आया कि जो नहीं होना था वह हो गया लेकिन वर्ष 2005 का 2011 के साथ विचित्र एवं अद्भुत संयोग का संगम होना किसी से छुपने वाला नहीं। छै साल बाद ही गुजरा जमाना लौट कर आ गया लेकिन गाने को गाने वाली गायिका हमारे बीच वापस नहीं आई। लेख के पीछे जमाने के वापस लौटने की बाते कहीं जा रही है कहीं इसे आप अपने शरीर एवं दिल और दिमाग से न ले क्योकि दिल तो कभी बचपन जैसा नहीं हो सकता और न शरीर ..! ऐसे में गुजरे हुये लोगो के प्रति आशावान होना मूर्खता होगी लेकिन हमारे संस्कार एवं ग्रंथ इस बात को भी झुठलाते है क्योकि पहले हमारे देश में अब विदेशो में भी पुर्नजनम की बाते सुनने को मिल रही है। अकाल मौत और समय से पूर्व ही हुई मौत के बाद ऐसे कई किस्से सुनने एवं देखने को मिले है जो कि यह कहते है कि आत्मायें भी शरीर छोड़ कर वापस लौटती है। पहले बात तो हम गुजरे जमाने की कर ले नहीं तो बात भी लोगो को बेबात लगेगी। गुजरे जमाने के फंसाने को याद करने वाले छै साल पहले के दिन समय तारीख को लेकर बैठने के बजाय 2005 एवं 2011 का कलैण्डर लेकर जाये और फिर मिलान करे कि क्या सहीं और क्या गलत है.....! गुजरे हुये जमाने को लेकर आपके सारे फंसाने यदि झुठे साबित हो जाते है तो फिर आपको आपकी प्रेमिका से लेकर श्रीमति भी यह नहीं कह सकती कि ''जो वादा किया ओ निभाना पडेगा ......!'' अब आप अपनी श्रीमति से लेकर जानू तक से कह सकते है कि ''अरे भाई मैने तो 14 फरवरी 2011 को आने वाले वैलेटाइन डे को आपको हीरो का हार देने को कहा था तुम हो कि पिछले छै साल से मेरा जीना दुभर कर रही हो ......!'' इतना कहने के बाद भी श्रीमति या जानू नहीं माने तो कलैण्डर रख देना 2005 और 2011 के ऐसे में सेम टू सेम देख कर वह भी भौचक्की रह जायेगी। मेरा यह लेख आपको यह बताने के लिए है कि अग्रेंजी का यह वाक्य ''सेम टू सेम .!'' यूं ही नहीं बना कुछ तो सेम टू सेम होगा ....! आज के इस अफसाने एवं फसाने के पीछे मैं बीते छै सालो को यू टर्न करके देखना चाहता हँू कि बीते छै साल पहले मैंने क्या किया और क्या नहीं कर पाया.....? हो सकता है कि गुजरा हुआ जमाना सिर्फ मेरी अधुरी अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए ही आया हो और ऐसे में मैं या आप समय के साथ नहीं चले तो फिर इंतजार करना होगा गुजरे हुये जमाने का ...! बीते हुये दिनो को कोसने वालो को अब आप करारा जवाब दे सकते है कि ''काहे को बीते हुये जमाने को कोस रहे हो लो एक बार फिर बीता हुआ जमाना आपके पास लौट कर आ गया है......! मैं आज 16 दिन बाद आने वाले गुजरे जमाने को लेकर अति उत्साही हँू क्योकि हो सकता कि आने वाले साल मेरे लिए कुछ अच्छी खबर लेकर आये क्योकि वर्ष 2005 की अधुरी अभिलाषायें इस आने वाले साल में पूरी हो सकती है। आने वाला वर्ष सभी को मंगलमय एवं शुभकारी हो इन्ही अपेक्षाओं के साथ मां सूर्यपुत्री ताप्ती आप सभी का कल्याण करे।
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
आज मैं जिस लेख को लिखने जा रहा हँू वह काफी चौकान्ने वाला और आश्चर्यचकित कर देने वाला है। इस लेख से वे सभी धारणायें तो गलत साबित होगी ही साथ ही वह फिल्मी तराना भी गलत साबित होगा। इतना ही नहीं बल्कि लोगो के दिलो - दिमाग में पैठ कर गये उस कहावत - मुहवारे एवं बरसो से चले आ रहे तकिया कलाम को झुठा साबित कर देगा जो यह कहता है कि '' गुजरा हुआ जमाना फिर लौट कर नहीं आता ......!'' इस लेख को लिखने के पहले मैं लखीमपुर जनपद के धौरहरा निवासी दैनिक जागरण के पत्रकार भाई दीपेन्द्र मिश्रा को हार्दिक बधाई देना चाहता हँू जिसने बीते 14 दिसम्बर 2010 के दैनिक जागरण कानपुर के अंक में यह सनसनी खेज समाचार छापा कि वर्ष 2005 एवं 2011 के दिन - तीथी - समय सब एक समान है। कुछ भी नहीं बदला और लौट आया गुजरा हुआ जमाना.......! समय चक्र ने इस बात को झुठला दिया है। यकीन नही आता आपको तो अपने मोबाइल फोन या फिर कप्यूटर पर वर्ष 2005 और 2011 का कैलेंडर देखिए। पूरे साल की तारीखें और दिन एक जैसे है। जी हाँ! समय ने खुद को दोहराया है।वर्ष 2005 और 2011 की सभी तारीखें और दिन एक जैसेदिन न बदलने से त्योहारों में भी एकरूपता वर्ष 2005 में जनवरी की पहली तारीख को दिन शनिवार था। 2011 में भी ऐसा ही है। 31 जनवरी सोमवार को थी। 2011 में भी 31 जनवरी सोमवार को ही है। 2005 में वैलेंटाइन डे 14 फरवरी सोमवार को मनाया गया था। वर्ष 2011 में भी ऐसा ही होगा। 2005 में मार्च मंगलवार को शुरू हुआ था। 2011 में भी इसी दिन शुरू होगा। ये तारीखें और दिन तो बानगी भर हैं। अगर आप 2005 और 2011 का कैलेंडर लेकर बैठें तो आपको आश्चर्य होगा कि पूरे साल के कैलेंडर में सब कुछ एक ही है। वर्ष 2005 में गणतन्त्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयन्ती आदि राष्ट्रीय पर्व हमने जिस दिन मनाएँ थे, 2011 में भी उसी दिनद मनाएँ जाएँगे। ज्योतिष और खगोलशास्त्री इस संयोग के कारण अलग-अलग परिभाषित कर सकते हैं, लेकिन लोगों के लिए यह है तो अद्भुत। वर्ष 2005 और 2011 में और भी काफी समानताएँ हैं, जो कि अध्ययन का विषय हैं। हिन्दु कलैण्डर एवं पंचाग को छोड़ कर यदि अग्रेंजी कलैण्डर की बात करे तो वह हर तीथी एवं समय बिलकुल एक जैसा है कुछ भी नहीं बदला सिर्फ बदला है तो वर्ष जो कि 5 के बदले 11 हो गया। इस लेख के पीछे मेरी भावना कुछ इस प्रकार बयां होती है कि कोई जवान स्वंय को बच्चा न समझे और बुढा व्यक्ति स्वंय को जवान समझ कर उछल कुद न करे वरणा मेरी तरह आपकी भी टांग टूट सकती है। मेहरबानी करके मेरी कहीं बातो का अर्थ का अनर्थ न निकाले क्योकि मेरी टांग उछल कुद के चलते नहीं टूटी है और न किसी ने तोडऩे की जरूरत की है। संयोग ऐसा आया कि जो नहीं होना था वह हो गया लेकिन वर्ष 2005 का 2011 के साथ विचित्र एवं अद्भुत संयोग का संगम होना किसी से छुपने वाला नहीं। छै साल बाद ही गुजरा जमाना लौट कर आ गया लेकिन गाने को गाने वाली गायिका हमारे बीच वापस नहीं आई। लेख के पीछे जमाने के वापस लौटने की बाते कहीं जा रही है कहीं इसे आप अपने शरीर एवं दिल और दिमाग से न ले क्योकि दिल तो कभी बचपन जैसा नहीं हो सकता और न शरीर ..! ऐसे में गुजरे हुये लोगो के प्रति आशावान होना मूर्खता होगी लेकिन हमारे संस्कार एवं ग्रंथ इस बात को भी झुठलाते है क्योकि पहले हमारे देश में अब विदेशो में भी पुर्नजनम की बाते सुनने को मिल रही है। अकाल मौत और समय से पूर्व ही हुई मौत के बाद ऐसे कई किस्से सुनने एवं देखने को मिले है जो कि यह कहते है कि आत्मायें भी शरीर छोड़ कर वापस लौटती है। पहले बात तो हम गुजरे जमाने की कर ले नहीं तो बात भी लोगो को बेबात लगेगी। गुजरे जमाने के फंसाने को याद करने वाले छै साल पहले के दिन समय तारीख को लेकर बैठने के बजाय 2005 एवं 2011 का कलैण्डर लेकर जाये और फिर मिलान करे कि क्या सहीं और क्या गलत है.....! गुजरे हुये जमाने को लेकर आपके सारे फंसाने यदि झुठे साबित हो जाते है तो फिर आपको आपकी प्रेमिका से लेकर श्रीमति भी यह नहीं कह सकती कि ''जो वादा किया ओ निभाना पडेगा ......!'' अब आप अपनी श्रीमति से लेकर जानू तक से कह सकते है कि ''अरे भाई मैने तो 14 फरवरी 2011 को आने वाले वैलेटाइन डे को आपको हीरो का हार देने को कहा था तुम हो कि पिछले छै साल से मेरा जीना दुभर कर रही हो ......!'' इतना कहने के बाद भी श्रीमति या जानू नहीं माने तो कलैण्डर रख देना 2005 और 2011 के ऐसे में सेम टू सेम देख कर वह भी भौचक्की रह जायेगी। मेरा यह लेख आपको यह बताने के लिए है कि अग्रेंजी का यह वाक्य ''सेम टू सेम .!'' यूं ही नहीं बना कुछ तो सेम टू सेम होगा ....! आज के इस अफसाने एवं फसाने के पीछे मैं बीते छै सालो को यू टर्न करके देखना चाहता हँू कि बीते छै साल पहले मैंने क्या किया और क्या नहीं कर पाया.....? हो सकता है कि गुजरा हुआ जमाना सिर्फ मेरी अधुरी अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए ही आया हो और ऐसे में मैं या आप समय के साथ नहीं चले तो फिर इंतजार करना होगा गुजरे हुये जमाने का ...! बीते हुये दिनो को कोसने वालो को अब आप करारा जवाब दे सकते है कि ''काहे को बीते हुये जमाने को कोस रहे हो लो एक बार फिर बीता हुआ जमाना आपके पास लौट कर आ गया है......! मैं आज 16 दिन बाद आने वाले गुजरे जमाने को लेकर अति उत्साही हँू क्योकि हो सकता कि आने वाले साल मेरे लिए कुछ अच्छी खबर लेकर आये क्योकि वर्ष 2005 की अधुरी अभिलाषायें इस आने वाले साल में पूरी हो सकती है। आने वाला वर्ष सभी को मंगलमय एवं शुभकारी हो इन्ही अपेक्षाओं के साथ मां सूर्यपुत्री ताप्ती आप सभी का कल्याण करे।
Sunday, December 12, 2010
Maa Tapati Kee Hai Sabhi Ko Aash
आखिर कब बुझेगी मेरे गांव की प्यास ,
माँ ताप्ती के पावन जल की है सभी को आस........!
रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक न्यूज चैनल पर अपने के लोगो को नारे लगाते बैनर थामें देखा तो मैं कुछ पल के लिए सकपका गया। आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे गांव में जिसके चलते टी वी चैनलो पर मेरे गांव को लेकर एंकर लम्बे - चौड़े कसीदे पढ़ रहा है। न्यूज चैनल पर चल रही खबर से मुझे पता चला कि मेरे गांव के लोगो को उनके सुखे कुयें और खेत - खलिहान की बेबसी आन्दोलित कर गई। मेरा गांव में पानी को लेकर उस समय से गांव के लोग नेताओं के चक्कर पर चक्कर लगा कर घनचक्कर हो गये जब बात चली थी कि जगदर पर बड़ा डैम बनेगा और उसकी नहरे रोढ़ा - बाबई - सेलगांव तक पहँुचेगी लेकिन आज तीस - पैतीस साल हो गये रोंढ़ा की तड़पती और तरसती धरती पर सूखी नहरे तक नहीं बनी जिसमें हम बरसात का पानी रोक सके। जगधर का बांध बैतूल जिले के उन धन्नासेठो ने नहीं बनने दिया जिसकी जमीन बांध और नहरे में जा रही थी। आज जगधर का बांध तो जरूर बन गया लेकिन उसकी नहरे तो बैतूल बाजार तक आते - आते ही सूखने लगती है। गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ - बहने - बहु - बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें में पानी ही नहीं बचा है। पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ - तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है। कल तक मेरे गांव की कोसामाली और जामावली पूरे गांव की प्यास बुझाती थी लेकिन कोसामाली और जामावली के बुढ़े हो चुके कुओं के हालातो पर तो मुझे भी रोना आता है। जिस कोसामाली पर सुबह से लेकर शाम तक पनहारी पानी के मटको और बर्तनो के साथ पानी भरने आया करती थी आज वहीं पनहारी अपने गांव की गलियों में गांव की पंचायत के द्धारा लगवाई गई नल योजना नल और बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पूरे गांव को एक साथ पानी की सप्लाई तो दूर एक मोहल्ले को भी पूरा पानी पिलाने का आज उस नलकूप योजना पर भरोसा करना याने सुबह से शाम तक प्यासे मर जाने के समान है। मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है। बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया - गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है। गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा - तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। इधर परसोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है। खेड़ी - सेलगांव - बावई होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। गांव को आने एवं जाने के लिए जितनी पंगडंडी है वह आज भी वैसी ही है जैसे कभी मेरे बचपन में हुआ करती थी। गांव के समग्र विकास की बाते करने वालो को आज मेरे गांव के युवा वर्ग ने अगर बहिष्कार का जूता दिखाया है तो नि:सदेंह इस काम के लिए मैं और मेरा पूरा गांव उस युवा पीढ़ी को बधाई देता है। आखिर कोई तो माई का लाल इस गांव को मिला जो गांव आकर आजादी के 61 सालो में मेरे गांव के भोले - भाले मतदाताओं को लालीपाप देकर वोट मांगने के बहाने झुठी तसल्ली देकर ठगता चला आ रहा था उन ठगो को जूता दिखा कर डराना गांव में आई जन जागृति का प्रतीक है। दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है। लोग आते है , चले जाते है। कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है। जहाँ पर लोग केवल घुमने के लिए आते है । जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है। थोड़ी से भूल - चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया.... ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है। इसलिए लोग संभल - संभल कर चलने लगे है। गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है। मेरे गांव के लोग बम्बई - दिल्ली - कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है । जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ''बच्चो का भविष्य देखना है .....!ÓÓ ''आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या.... ?ÓÓ अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि .... वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव हैै क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा हैै। रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा। आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है आज पूरे गांव के साथ प्यासा है। पहले लोग माता मैया के चबुतरे पर हर रोज पानी चढ़ाने आया करते थे। सुबह स्नान के बाद कुओं से लाया गया शुद्ध पानी का एक हिस्सा माता मैया के ऊपर अर्पित किया जाता था जिसके चलते उस चम्पा के पेड को भी पानी मिल जाता था और लहलहा उठता था लेकिन अब तो गांव के लोगो को यह तक पता नहीं रहता कि गांव के नल से पानी आयेगा या नहीं ......यही हाल गांव के कुओ का है जो गांव के कुयें कभी पूरे गांव को बरसात तक पानी पूराते थे आज वहीं कुओं का पानी दिवाली के बाद समाप्त होने लगता है। कहना नहीं चाहिये लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। आजादी के 61 सालो में मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है। बैतूल जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है। आज गांव के आसपास लगी जना जागृति की आग की लपेट में सूरगांव - नयेगांव - सेहरा - सावंगा आ चुके है। अब गांव से लगी गांव से गांव के सुखे पड़े खेतो के भूसे जलने के बजाय गांव वालो के दिल दिमाग दहक रहे है। गांव का बचचा और बुढ़ा दोनो ही गांव के आसपास सूखे खेत - खलिहान को देकर आन्दोलित हो उठा है। अब मेरे गांव को माँ सूर्य पुत्री ताप्ती का जल ही तृप्त कर सकता है। मेरा माँ ताप्ती जन जागृति मंच के द्धारा लोगो को माँ ताप्ती से जोडऩे का सिलसिला अब मुझे अपने गांव को भविष्य में माँ सूर्य पुत्री ताप्ती से जुड़ता दिखाई देने लगा है। मेरे गांव के सूर में सूर मिलाने के जब सूरगांव आ गया है तब मैं कल्पना कर सकता हँू कि आने वाले कल में जब माँ ताप्ती का जल दुसरे प्रदेशो को मिलने के बजाये मेरे गांव और खेत खलिहानो तक पहँुचेगा तो आसपास के गांव को भी माँ ताप्ती का तपते आसमान के समय भी जल मिलने लगेगा। जब भोपाल तक भोपाली नेताओं के लिए माँ नर्मदा पहँुच सकती है तब मेरे गांव के लिए मेरी अराध्य माँ ताप्ती क्यों नहीं पहँुच सकती.....? अब हमें और हमारे गांव वालो को अपने साथ आसपास के दर्जनो को गांवो के लोगो को खड़ा करके मेघा पाटकर की तर्ज पर ताप्ती रोको आन्दोलन करना होगा। जब हमारी माँ के आँचल से हमारी प्यास नहीं बुढ सकती तो हम पड़ौसी दुसरे राज्यो की प्यास को भी नहीं बुझने देगें। आज शर्मनाक बात है कि बैतूल जिले के जिस माँ ताप्ती के पावन जल में अनेको साधु संतो - मुनियो एवं स्वंय भगवान श्री राम के पूर्वजो को मुक्ति मिली उसके लिए हमें जीते जी और मरने के बाद भी तरसना पड़े ऐसा नहीं होने दिया जायेगा। गांव के लिए गंवार के लिए सही लेकिन अब ताप्ती का जल पूरे बैतूल जिले के खेंत - खलिहानो और सुखे कुओ तथा बावलियों के अलावा प्यासे कंठो को मिलना चाहिये। ऐसे काम के लिए नेताओं और उनके दलो को आँखे दिखाना या उनकी वादाखिलाफी को गिनाना कोई संगीन अपराध नहीं है। गांव के आन्दोलन में मेरा पूरा तन - मन गांव को समर्पित है क्योकि आज मुझे हर मंगलवार और शनिवार माँ ताप्ती के पावन जन में स्नान - ध्यान करने के लिए जाना पड़ता है लेकिन यदि मेरे गांव को या आसपास के लोगो के पास माँ स्वंय कल - कल करती यदि आयेगी तो उनकी कई पीढिय़ो का कल्याण हो जायेगा। एक बार सारे मिल कर बोलो जय माँ ताप्ती की जिसकी राह देख रहे है रोंढा एवं आसपास के गांवो के लोग......
माँ ताप्ती के पावन जल की है सभी को आस........!
रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक न्यूज चैनल पर अपने के लोगो को नारे लगाते बैनर थामें देखा तो मैं कुछ पल के लिए सकपका गया। आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे गांव में जिसके चलते टी वी चैनलो पर मेरे गांव को लेकर एंकर लम्बे - चौड़े कसीदे पढ़ रहा है। न्यूज चैनल पर चल रही खबर से मुझे पता चला कि मेरे गांव के लोगो को उनके सुखे कुयें और खेत - खलिहान की बेबसी आन्दोलित कर गई। मेरा गांव में पानी को लेकर उस समय से गांव के लोग नेताओं के चक्कर पर चक्कर लगा कर घनचक्कर हो गये जब बात चली थी कि जगदर पर बड़ा डैम बनेगा और उसकी नहरे रोढ़ा - बाबई - सेलगांव तक पहँुचेगी लेकिन आज तीस - पैतीस साल हो गये रोंढ़ा की तड़पती और तरसती धरती पर सूखी नहरे तक नहीं बनी जिसमें हम बरसात का पानी रोक सके। जगधर का बांध बैतूल जिले के उन धन्नासेठो ने नहीं बनने दिया जिसकी जमीन बांध और नहरे में जा रही थी। आज जगधर का बांध तो जरूर बन गया लेकिन उसकी नहरे तो बैतूल बाजार तक आते - आते ही सूखने लगती है। गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ - बहने - बहु - बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें में पानी ही नहीं बचा है। पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ - तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है। कल तक मेरे गांव की कोसामाली और जामावली पूरे गांव की प्यास बुझाती थी लेकिन कोसामाली और जामावली के बुढ़े हो चुके कुओं के हालातो पर तो मुझे भी रोना आता है। जिस कोसामाली पर सुबह से लेकर शाम तक पनहारी पानी के मटको और बर्तनो के साथ पानी भरने आया करती थी आज वहीं पनहारी अपने गांव की गलियों में गांव की पंचायत के द्धारा लगवाई गई नल योजना नल और बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पूरे गांव को एक साथ पानी की सप्लाई तो दूर एक मोहल्ले को भी पूरा पानी पिलाने का आज उस नलकूप योजना पर भरोसा करना याने सुबह से शाम तक प्यासे मर जाने के समान है। मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है। बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया - गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है। गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा - तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। इधर परसोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है। खेड़ी - सेलगांव - बावई होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। गांव को आने एवं जाने के लिए जितनी पंगडंडी है वह आज भी वैसी ही है जैसे कभी मेरे बचपन में हुआ करती थी। गांव के समग्र विकास की बाते करने वालो को आज मेरे गांव के युवा वर्ग ने अगर बहिष्कार का जूता दिखाया है तो नि:सदेंह इस काम के लिए मैं और मेरा पूरा गांव उस युवा पीढ़ी को बधाई देता है। आखिर कोई तो माई का लाल इस गांव को मिला जो गांव आकर आजादी के 61 सालो में मेरे गांव के भोले - भाले मतदाताओं को लालीपाप देकर वोट मांगने के बहाने झुठी तसल्ली देकर ठगता चला आ रहा था उन ठगो को जूता दिखा कर डराना गांव में आई जन जागृति का प्रतीक है। दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है। लोग आते है , चले जाते है। कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है। जहाँ पर लोग केवल घुमने के लिए आते है । जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है। थोड़ी से भूल - चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया.... ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है। इसलिए लोग संभल - संभल कर चलने लगे है। गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है। मेरे गांव के लोग बम्बई - दिल्ली - कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है । जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ''बच्चो का भविष्य देखना है .....!ÓÓ ''आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या.... ?ÓÓ अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि .... वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव हैै क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा हैै। रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा। आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है आज पूरे गांव के साथ प्यासा है। पहले लोग माता मैया के चबुतरे पर हर रोज पानी चढ़ाने आया करते थे। सुबह स्नान के बाद कुओं से लाया गया शुद्ध पानी का एक हिस्सा माता मैया के ऊपर अर्पित किया जाता था जिसके चलते उस चम्पा के पेड को भी पानी मिल जाता था और लहलहा उठता था लेकिन अब तो गांव के लोगो को यह तक पता नहीं रहता कि गांव के नल से पानी आयेगा या नहीं ......यही हाल गांव के कुओ का है जो गांव के कुयें कभी पूरे गांव को बरसात तक पानी पूराते थे आज वहीं कुओं का पानी दिवाली के बाद समाप्त होने लगता है। कहना नहीं चाहिये लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। आजादी के 61 सालो में मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है। बैतूल जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है। आज गांव के आसपास लगी जना जागृति की आग की लपेट में सूरगांव - नयेगांव - सेहरा - सावंगा आ चुके है। अब गांव से लगी गांव से गांव के सुखे पड़े खेतो के भूसे जलने के बजाय गांव वालो के दिल दिमाग दहक रहे है। गांव का बचचा और बुढ़ा दोनो ही गांव के आसपास सूखे खेत - खलिहान को देकर आन्दोलित हो उठा है। अब मेरे गांव को माँ सूर्य पुत्री ताप्ती का जल ही तृप्त कर सकता है। मेरा माँ ताप्ती जन जागृति मंच के द्धारा लोगो को माँ ताप्ती से जोडऩे का सिलसिला अब मुझे अपने गांव को भविष्य में माँ सूर्य पुत्री ताप्ती से जुड़ता दिखाई देने लगा है। मेरे गांव के सूर में सूर मिलाने के जब सूरगांव आ गया है तब मैं कल्पना कर सकता हँू कि आने वाले कल में जब माँ ताप्ती का जल दुसरे प्रदेशो को मिलने के बजाये मेरे गांव और खेत खलिहानो तक पहँुचेगा तो आसपास के गांव को भी माँ ताप्ती का तपते आसमान के समय भी जल मिलने लगेगा। जब भोपाल तक भोपाली नेताओं के लिए माँ नर्मदा पहँुच सकती है तब मेरे गांव के लिए मेरी अराध्य माँ ताप्ती क्यों नहीं पहँुच सकती.....? अब हमें और हमारे गांव वालो को अपने साथ आसपास के दर्जनो को गांवो के लोगो को खड़ा करके मेघा पाटकर की तर्ज पर ताप्ती रोको आन्दोलन करना होगा। जब हमारी माँ के आँचल से हमारी प्यास नहीं बुढ सकती तो हम पड़ौसी दुसरे राज्यो की प्यास को भी नहीं बुझने देगें। आज शर्मनाक बात है कि बैतूल जिले के जिस माँ ताप्ती के पावन जल में अनेको साधु संतो - मुनियो एवं स्वंय भगवान श्री राम के पूर्वजो को मुक्ति मिली उसके लिए हमें जीते जी और मरने के बाद भी तरसना पड़े ऐसा नहीं होने दिया जायेगा। गांव के लिए गंवार के लिए सही लेकिन अब ताप्ती का जल पूरे बैतूल जिले के खेंत - खलिहानो और सुखे कुओ तथा बावलियों के अलावा प्यासे कंठो को मिलना चाहिये। ऐसे काम के लिए नेताओं और उनके दलो को आँखे दिखाना या उनकी वादाखिलाफी को गिनाना कोई संगीन अपराध नहीं है। गांव के आन्दोलन में मेरा पूरा तन - मन गांव को समर्पित है क्योकि आज मुझे हर मंगलवार और शनिवार माँ ताप्ती के पावन जन में स्नान - ध्यान करने के लिए जाना पड़ता है लेकिन यदि मेरे गांव को या आसपास के लोगो के पास माँ स्वंय कल - कल करती यदि आयेगी तो उनकी कई पीढिय़ो का कल्याण हो जायेगा। एक बार सारे मिल कर बोलो जय माँ ताप्ती की जिसकी राह देख रहे है रोंढा एवं आसपास के गांवो के लोग......
Chamapa Ka Pead
धर्म संस्कृति
लगभग एक शताब्दी पुराने चम्पा के पेड के प्रति ग्रामिणो की बेमिसाल आस्था
-रामकिशोर पंवार
बैतूल। जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में सेवानिवृत वनपाल श्री दयराम पंवार के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के चबतुरे पर लगे इस पेड की उम्र लगभग सौ साल से ऊपर बताई जाती है। इसी ग्राम रोंढा की 74 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे बताती है कि वज जब ससुराल आई थी तब भी यह चम्पा का पेड इसी स्थान पर था। श्रीमति गंगा बाई के अनुसार लगभग सोलह साल की उम्र में उसकी शादी हुई थी। उस समय से इस पेड को इसी स्थान पर देखते चली आ रही है। नाती - पोतो की हो चुकी श्रीमति गंगा बाई के घर पर उस चम्पा के पेड का डालिया आज भी फूलो की बरसात करते चले आ रहे ही। इसी ग्राम रोंढा में जन्मी श्रीमति गंगा बाई का जन्म गांव के ही दुसरे मोहल्ले में हुआ था। वह बताती है कि उसके घर के पास स्थित इस चम्पा के पेड के नीचे से कभी हाथी आया - जाया करते थे। लेकिन चम्पा के पेड की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई - माता मैया कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी याामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बीमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड के पास माफी मांगी और पूजा - अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। गांव के लोग उस चम्पा के पेड के लिए गांव की गली को सड़क तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पडा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड को आँच न आये और सड़क बन जाये। ग्राम पंचायत रोंढा के उस वार्ड के पंच भगवान दास देवासे के अनुसार ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी बनाया जाना है जिसके लिए गांव के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल श्री दयाराम पंवार के पुत्रो द्धारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी जा चुकी है। श्री देवासे के अनुसार लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकडो जी महराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते रहते है। वैसे भी जब - जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के पेड के तीन गुण विशेष है पहला रंग - दुसरा रूप - तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेडो से इंसान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता। आज शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड में कड़वी नीम के पेड की एक नई फसल उगने के बाद पेड बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है। बैतूल जिले के ग्राम रोंढा के इस चम्पा के पेड़ के लिए अपना पैतृक खण्डहर हो चुके मकान के ध्वस्त हो जाने के बाद भी उस स्थान पर कोई मकान आदि का निमार्ण न करने वाले सेवाविनृत वनपाल श्री दयाराम पवांर ने अपनी तीस साल की सेवा में अनेको पौधो को रोपित किया। उन्होने कई नर्सरी से लेेकर वन विभाग की वन रोपिणी के पौधो को वितरीत करते समय ही इस बात को मन में ठान ली थी कि अब जरूरत है कि वनो की नहीं पेड़ - पौधो की रक्षा एवं सुरक्षा के प्रति आम इंसान को जोड़े। इसके लिए सबसे बड़ा माध्यम है कि लोगो को प्रेरित करे कि वह अपने घर के आंगन में कम से कम एक पौधा का रोपित कर उसे पाल पोश कर पेड़ बनाये ताकि वह आसपास का वातावरण शुद्ध रख सके। घने जंगलो में तीस साल की नौकरी के बाद आज भी उनका वनो से और पेडो से प्रेम बरकरार है। श्री पंवार के पुत्रो ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एवं माता रानी के चबुतरे के लिए अपनी स्वेच्छा भूमि दान करके लोगो को एक संदेश देना चाहा है कि लोग इंच भर की जमीन के लिए एक दुसरे की जान के दुश्मन बने हुये है लेकिन उक्त जमीन को दान में देने से उनका गांव के प्रति प्यार और स्नेह और अधिक हो जायेगा। किसी ने कहाँ भी है कि जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि ...... हो सकता है कि शायद अपने बच्चो के एवं अपने जन्म से जुड़े अपने गांव से अपना रिश्ता बरकरार रखने के लिए जो 30 साल तक वन विभाग में वनो की सुरक्षा का दायित्व निभाने के बाद उम्र के उस ठहराव पर श्री पंवार का यह अभिनव प्रयास उन लोगो के लिए एक उदाहरण बनेगा जो कि अपने घरो - दुकानो - मकानो - सड़को और गलियों के नाम पर हरे - भरे पेड़ो को बेरहमी से काट डालते है।
लगभग एक शताब्दी पुराने चम्पा के पेड के प्रति ग्रामिणो की बेमिसाल आस्था
-रामकिशोर पंवार
बैतूल। जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में सेवानिवृत वनपाल श्री दयराम पंवार के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के चबतुरे पर लगे इस पेड की उम्र लगभग सौ साल से ऊपर बताई जाती है। इसी ग्राम रोंढा की 74 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे बताती है कि वज जब ससुराल आई थी तब भी यह चम्पा का पेड इसी स्थान पर था। श्रीमति गंगा बाई के अनुसार लगभग सोलह साल की उम्र में उसकी शादी हुई थी। उस समय से इस पेड को इसी स्थान पर देखते चली आ रही है। नाती - पोतो की हो चुकी श्रीमति गंगा बाई के घर पर उस चम्पा के पेड का डालिया आज भी फूलो की बरसात करते चले आ रहे ही। इसी ग्राम रोंढा में जन्मी श्रीमति गंगा बाई का जन्म गांव के ही दुसरे मोहल्ले में हुआ था। वह बताती है कि उसके घर के पास स्थित इस चम्पा के पेड के नीचे से कभी हाथी आया - जाया करते थे। लेकिन चम्पा के पेड की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई - माता मैया कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी याामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बीमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड के पास माफी मांगी और पूजा - अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। गांव के लोग उस चम्पा के पेड के लिए गांव की गली को सड़क तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पडा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड को आँच न आये और सड़क बन जाये। ग्राम पंचायत रोंढा के उस वार्ड के पंच भगवान दास देवासे के अनुसार ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी बनाया जाना है जिसके लिए गांव के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल श्री दयाराम पंवार के पुत्रो द्धारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी जा चुकी है। श्री देवासे के अनुसार लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकडो जी महराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते रहते है। वैसे भी जब - जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के पेड के तीन गुण विशेष है पहला रंग - दुसरा रूप - तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेडो से इंसान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता। आज शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड में कड़वी नीम के पेड की एक नई फसल उगने के बाद पेड बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है। बैतूल जिले के ग्राम रोंढा के इस चम्पा के पेड़ के लिए अपना पैतृक खण्डहर हो चुके मकान के ध्वस्त हो जाने के बाद भी उस स्थान पर कोई मकान आदि का निमार्ण न करने वाले सेवाविनृत वनपाल श्री दयाराम पवांर ने अपनी तीस साल की सेवा में अनेको पौधो को रोपित किया। उन्होने कई नर्सरी से लेेकर वन विभाग की वन रोपिणी के पौधो को वितरीत करते समय ही इस बात को मन में ठान ली थी कि अब जरूरत है कि वनो की नहीं पेड़ - पौधो की रक्षा एवं सुरक्षा के प्रति आम इंसान को जोड़े। इसके लिए सबसे बड़ा माध्यम है कि लोगो को प्रेरित करे कि वह अपने घर के आंगन में कम से कम एक पौधा का रोपित कर उसे पाल पोश कर पेड़ बनाये ताकि वह आसपास का वातावरण शुद्ध रख सके। घने जंगलो में तीस साल की नौकरी के बाद आज भी उनका वनो से और पेडो से प्रेम बरकरार है। श्री पंवार के पुत्रो ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एवं माता रानी के चबुतरे के लिए अपनी स्वेच्छा भूमि दान करके लोगो को एक संदेश देना चाहा है कि लोग इंच भर की जमीन के लिए एक दुसरे की जान के दुश्मन बने हुये है लेकिन उक्त जमीन को दान में देने से उनका गांव के प्रति प्यार और स्नेह और अधिक हो जायेगा। किसी ने कहाँ भी है कि जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि ...... हो सकता है कि शायद अपने बच्चो के एवं अपने जन्म से जुड़े अपने गांव से अपना रिश्ता बरकरार रखने के लिए जो 30 साल तक वन विभाग में वनो की सुरक्षा का दायित्व निभाने के बाद उम्र के उस ठहराव पर श्री पंवार का यह अभिनव प्रयास उन लोगो के लिए एक उदाहरण बनेगा जो कि अपने घरो - दुकानो - मकानो - सड़को और गलियों के नाम पर हरे - भरे पेड़ो को बेरहमी से काट डालते है।
Betul Me Hai Surya Mandeer
रहस्य - रोमंच
पहाडिय़ो में छुपा सूर्य मंदिर
सत्यकथा : - रामकिशोर पंवार रोढ़ावाला
भगवान भास्कर जब सुबह अपने रथ पर सवार को जाने के लिए अपने शयन कक्ष से बाहर नहीं निकले तो उनके पूरे महल में चहल - पहल शुरू हो गई. माता संध्या ने भगवान भास्कर से कहा कि '' हे प्रभु आज क्या अपने रथ पर सवार होकर धरती की परिक्रमा करने का इरादा नहीं है क्या....!अपने शयन कक्ष में असलाई निंद्रा में उन्होने संध्या से पुछा ''संध्या क्या चांद ने अपनी परिक्रमा पूरी कर ली.....! , तारो की गणना क्या कहती है....! मुझे वास्तव में अपने स्वर्ण रथ लेकर सृष्टि की परिक्रमा पर निकल जाना चाहिये .......!सूर्य नारायण के कई तरह के सवालो के उत्तर में भगवान विश्वकर्मा की पुत्री माता संध्या ने जवाब देने के बजाय अपनी प्रतिछाया सूर्य नाराणय की दुसरी भार्या माता छाया को बुलाया और वह उससे बोली ''अब छाया तुम ही भगवान दिवाकर को समझाओ की उनके जाने का समय निकला जा रहा या नहीं......!भगवान सूर्य नारायण की दोनो जीवन संगनी के बीच हो रहे वार्तालाप को सुन रही भगवान भास्कर की छोटी बिटिया ताप्ती अचानक हस पड़ी और कहने लगी ''माँ जो इस सृष्टि के सबसे बड़े देवता है वे तक भगवान सूर्यनारायण की प्रतिक्षा कर रहे है क्योकि बाबा भोलेनाथ को भी तो भोर होते ही अपने शिव भक्तो के अभिषेक का इंतजार रहता है.....!ताप्ती की बात पर सूर्य पुत्र शनि ने अपनी छोटी बहन ताप्ती को समझाया कि ''बहना तू अभी छोटी है.... यदि जगतपिता ब्रहमा द्धारा रचित विधान को अपना ही पिता नहीं मानेगा तो भी पूरी सृष्टि में महाप्रलय आ जायेगा और फिर कहीं न कहीं सारा दोष मेरे ऊपर ही आ जायेगा क्योकि लोग तो कहना नहीं भूलेगें कि शनिदेव की दृष्टि पड़ी है तभी तो सब कुछ हो गया ......! , ऐसे में हम भगवान भास्कर की सभी संतानो को चाहिये कि हम अपनी माताओं के द्धारा किये जा रहे प्रयासो पर किसी भी प्रकार की टीका - टिप्पणी न करे और जैसा होना है उसे होने दे......! अपने पुत्र की बातो को सुन कर मंद - मंद मुस्कराये भगवान भास्कर ने शनि से कहा कि ''बेटा मुझे आज महसुस हुआ कि मैने तुझे न्याय का देवता बनवा कर कोई गलती नहीं की , क्योकि सही और गलत का फैसला तो तुझे ही करना है ..... , और उसी के हिसाब से सभी को अपने - अपने कर्मो का फल भोगना है.....! अपने शयनकक्ष से स्नान - ध्यान आदि से निवृत होकर जैसे ही भगवान भास्कर अपने बारह अश्व की सवारी वाले स्वर्ण से बने भास्कर रथ पर सवार होने के लिए अस्तबल में पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहां पर उनका बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ नहीं था. भगवान भास्कर अपने ही महल से पहली बार इस तरह लापता हुये अपने स्वर्ण रथ को लेकर चिंता में पड़ गये. इधर धरती - आकाश - बैकुंठधाम यहाँ तक की स्वर्ग में भगवान भास्कर के आने की प्रतिक्षा कर रहे देवी - देवता , नर - नारी - किन्नर , दैत्य - दानव , पशु - पक्षी , वनस्पति , पेड़ - पौधे - जल - थल सभी को बैचेनी होना शुरू हो गई........! अब लोग इसे महाप्रलप का समय से पहले से आने की भविष्यवाणी समझ कर अभी से चिंताग्रस्त हो गये. भगवान भास्कर को चिंता में देख कर सूर्यपुत्र शनि ने अपनी नज़र घुमाई तो उसे दिखा कि एक दानव भगवान भास्कर का बारह अश्वो का रथ लिए भागे जा रहा था. उसने यह बात अपने पिता को बताई तो भगवान भास्कर और भी चिंता में पड़ गये. दोनो ही पिता पुत्र उस राक्षस की ओर दौड़ पड़े . पिता - पुत्र को इस तरह एक दुसरे के पीछे दौड़ता देख भगवान भोलेनाथ चिंता में पड़ गये. उन्हे लगा कि एक बार फिर कहीं पिता - पुत्र में कोई विवाद तो नहीं हो गया .....! इसलिए भगवान भास्कर बिना रथ के ही अपने पुत्र शनि के पीछे भागे जा रहे है. दोपहर होने को थी ऐसे में आखिर सूर्य पुत्र शनि ने उस राक्षस को रोक लिया और उससे भगवान भास्कर का रथ वापस लौटाने को कहा लेकिन राक्षस ने शनिदेव की चेतावनी नहीं मानी. अपने किले से एक राक्षस को बारह अश्वो के रथ को देख कर राजा इल की इच्छा हुई कि वह उस राक्षस से रथ छीन ले.....! बस इसी उधेड़बुन में राजा इल ने भगवान भास्कर एवं शनिदेव को देखे बिना ही अपनी मंत्र शक्ति चला दी. मंत्र शक्ति के प्रभाव पड़ते ही वह बारह अश्व रहित स्वर्ण रथ पत्थरो का हो गया. जब राजा इल उस रथ तक पहुंचे वहां पर देवी - देवताओं की लम्बी - चौड़ी जमात एकत्र हो गई थी. रथ को पत्थर को होता देख राक्षस वहां से भाग खड़ा हुआ. अब भगवान भास्कर चिंता में पड़ गये कि इस पत्थरो के रथ पर वे भलां कैसे पूरी सृष्टि की परिक्रमा लगा पायेगें. शनिदेव ने राजा इल से कहा कि वह जिस मंत्र विद्या से रथ को पत्थरो का किया है उसी मंत्र विद्या से इसे अपने मूल स्वरूप में कर दे लेकिन राजा इल ने हाथ जोड़ लिये और वह कहने लगा कि ''हे अदिति नंदन मुझे किसी भी चल - अचल वस्तु को पत्थर का बनाने का मंत्र मालूम था .....! अब इसे मैं क्या दुनिया की कोई भी मंत्र शक्ति अपने मूल स्वरूप में नहीं ला सकती ......! ऐसे में हे प्रभु मेरी तपस्या और भगवान भास्कर के प्रति समपर्ण को देख कर आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हँू कि भगवान भास्कर एक बार इस रथ में बैठ जाये ताकि मैं रोज अपने महल से इस पहाड़ी पर मेरे द्धारा बनवाये जाने वाले सूर्य मंदिर में भगवान भास्कर आपकी दिन की भरी दोपहर में पूजा - अर्चना कर सकूं ..... इस बीच भगवान विश्वकर्मा शिव आदेश से दुसरा बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ का निमार्ण कर आ चुके थे. भगवान विश्वकर्मा के साथ पूरा सूर्य परिवार था. भगवान भास्कर ने राजा के आग्रह को स्वीकार किया और स्वर्ण से पत्थर का बने रथ पर जैसे ही बैठे पूरे आकाश में उनका तेज प्रताप जगमगा उठा. धरती - आकाश - शिवलोक , बैकुंठधाम , स्वर्ग लोक से सभी देवी - देवताओं ने भगवान भास्कर पर फूल बरसाने शुरू कर दिये. इस बीच नारायण भक्त देवऋषि नारद भी अपनी वीणा के साथ उस पहाड़ी पर आ गये. जहां पर पत्थरो का वह रथ था जिस पर भगवान भास्कर कुछ पल के लिए बैठे हुये थ्से. देवऋषि नारद ने राजा इल से कहा कि ''राजन तुम्हारे कर्मो का ही फल है कि आज भगवान भास्कर इस धरती पर किसी स्थान पर नही बल्कि एक ऐसी पहाड़ी पर विराजमान हुये जिसको तुम्हारे किले के चारो दरवाजो से देखा जा सकता है. .....देवऋषि की वाणी का सभी ने स्वागत किया. भगवान भास्कर ने अपने दुसरे रथ पर सवार होकर सृष्टि की परिक्रमा शुरू कर दी लेकिन उनके मन में इस बात का संशय बना रहा कि इतनी पहरेदारी के बीच उनके महल तक उनकी तपन की बिना परवाह किये बिना उनका रथ चोरी करने का र्दु:साहस भलां कैसे हो गया. भगवान भास्कर को चिंताग्रस्त देख कर देवऋषि नारद आये और वे कहने लगे ''भगवान भास्कर आपकी चिंता का प्रमुख कारण आपके परिवार से ही जुड़ा है..... , जब - जब आप पिता - पुत्र आमने - सामने होगें तब - तब इस संसार में ऐसी लीलाए भगवान लीलाश्वर याने उमापति महादेव रचते रहेगे......!ÓÓ वह जो रथ को चुराने वाला कोई और नहीं भगवान नीलकंठ से ही सिद्धी प्राप्त एक असुर है जिसका नाम सुन कर आपको हैरानी होगी. भगवान भास्कर की जिज्ञासा को शांत करते हुये नारद जी बोले ''भगवन यह कोई नहीं बल्कि स्वंय आपके अहंकार से उत्पन्न राक्षस सूर्यासूर है जिसने बरसो आपकी ही पुत्री माँ ताप्ती के तट पर बारहलिंग नामक देव स्थान पर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वरदान मांगा कि ''हे प्रभु मैं कुछ ऐसा कर जाऊ कि यह सृष्टि मुझे याद रखे .......!भगवान शिव ने बिना कुछ सोचे अपने भक्त को आर्शिवाद दे डाला. भगवान शिव के आर्शिवाद एवं आपकी पुत्री ताप्ती के निर्मल जल से भीगा होने के कारण उसे आपकी तपन का असर नहीं हुआ और वह आपका स्वर्ण रथ चुरा कर ले गया. अब प्रभु आपको याद होगा कि आपके भक्त राजा इल ने अपने राज्य में पड़े सुखे और आकाल से निपटने के लिए किले के सामने बनवाये उस तालाब में अपने पहले पुत्र और वधु को हवन की बेदी पर बैठाला था. उस सूर्य उपासना से ही तालाब में चारो ओर से जलधारा बह निकली और राजा के पुत्र और पुत्रवधु की जलबलि चढ़ गई. आपने ही राजा से कहा था कि ''हे राजन मैं तुम्हारे त्याग और तपस्या तथा मेरे प्रति समपर्ण से प्रसन्न हूं , चाहो तो इच्छानुसार वर मांग सकते हो......! अपने इकलौते पुत्र और पुत्रवधु की मौत से शोकाकुल राजा ने उस समय आपसे कुछ नहीं मांगा लेकिन उसने अपनी सूर्य उपासना जारी रखी. उसे नहीं पता था कि जो राक्षस आपका रथ लेकर भाग रहा है वह सूर्यासूर है तथा उसके पीछे भगवान शिव की शिवलीला है जो इस बात का संकेत देती है कि भक्त और भगवान एक समान . राजा तो स्वंय चाहता था कि वह उस राक्षस से आपका रथ छीन ले लेकिन किले से उस पहाड़ी तक जाने में उसे काफी समय लग जाता इसलिए उसने अपनी मंत्र शक्ति का उपयोग करके पूरे रथ को ही पत्थर का बना डाला. रथ को पत्थरो का बनता सूर्यासूर भाग खड़ा हुआ. अपने रथ का पीछा करते भगवन भास्कर आप और आपके पुत्र शनिदेव जब इस पहाड़ी तक पहुंचे राजा इल भी वहां पहुंच चुका था. राजा की इच्छानुसार प्रभु आपको दोपहर को एक पल के लिए उस पत्थरो के रथ पर बैठना पड़ा क्योकि इस संसार में पृथ्वी पर आज तक किसी भी स्थान पर भगवान सूर्य आपका स्वर्ण रथ वाला मंदिर नहीं है. जिस पर आप स्वंय हर दिन दोपहर को एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है. इस मंदिर को लोग सदियो तक पूजते रहेगें लेकिन एक दिन यह मंदिर अपने आप ही अपने मूल स्वरूप को खो देगा.
दादी और नानी से कई बार इस कहानी को सुन चुका था कि मेरे ही जिले की किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है जिसने भगवान भास्कर एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है . बचपन की सुनी कहानी को मेरे दिमागी चित्रपटल ने आज तक जिंदा रखा था. मैने सबसे पहले खेडला किले के आसपास की पहाडिय़ो की खाक छानने के बाद मैं आगे की ओर बढ़ता गया. मुझे महिने नहीं बल्कि ढाई - तीन साल लग गये. जवानी के दिनो में मैने सत्यकथा में भी सूर्यमंदिर की कहानी पढ़ी थी लेकिन लेखक ने ऐसा भ्रम का जाल बिछाया कोई उस ठौर तक जा ही नहीं सका. हालाकि उस लेखक की कहानी का केन्द्र भी वही सूर्य मंदिर था जिसे मैं खोज रहा था. आज जब मैं उस पहाड़ी के करीब पहुंचा तो मैने कई आसपास के कई राह चलते ग्रामीणो से पुछा कि ''इस गांव की किस पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है लेकिन पूरे गांव में कोई भी मेरे सवाल का जवाब नहीं दे सका......!अचानक कुछ देर रूकने के बाद मैं उस पहाड़ी की ओर अकेला ही चल पड़ा . पूरा जंगल सुनसान कंटीली झाडिय़ो से भरा बियावान था . मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था. कुछ दूर चढऩे के बाद जब थकान के मारे जब मेरा दम भरने लगा तो मैं एक स्थान पर बैठ गया. आबादी से कोसो दूर उस पहाड़ी पर मुझे एक बाबा दिखाई दिया . जब मैने उससे सूर्य मंदिर का पता पुछा तो वह बोला ''पत्रकार हो या कहानीकार .......! मैं अपने बारे में बाबा से सच्चाई जानने के बाद भौचक्का रह गया. मुझे लगा कि सूर्य मंदिर के चक्कर में मैने बैठे ठाले मुसीबत मोल ले ली है. बाबा बोला ''बेटा मंदिर को ही देखेगा या उसके पीछे की कहानी भी जानेगा .....! और फिर वह बाबा ऊपर बताई गई कहानी को सुनाते हुये मुझे ठीक भरी दोपहर को उस स्थान पर ले गया जहां पर सूर्य भगवान का वह पत्थरो में बदला रथ और मंदिर था. पहाड़ी पर बने सूर्य मंदिर की कोई छत नहीं थी . बस चारो ओर परकोटे के खम्बे गड़े थे. सूर्य भगवान की प्रतिमा एक स्थान पर लेटी हुई थी. पूरा रथ जो पत्थरो का बना था उसके सारे पत्थर आसपास के गांव के लोग निकाल कर ले जा चुके थे. मंदिर में देखने को कुछ भी नहीं था लेकिन जैसे ही सूर्य सर के ऊपर आता है अचानक उस स्थान पर सूर्य का तेज इतना बढ़ जाता है कि ठंड हो बरसात इसंान पानी से नहा लेता है. कुछ पल बाद स्थिति ज्यों की त्यों हो जाती है. बाबा ने ठीक उसी समय लेटे हुये भगवान भास्कर की प्रतिमा की पूजा की और वे अचानक मेरी आंखो से ओझल हो गये. सुनसान पहाड़ी पर मेरे अलावा कोई नहीं था. डर के मारे मैं थर - थर कांप रहा था. दिन में किसी भूतहा महल या खोली में जाने के बाद होने वाली स्थिति का मुझे आभास होने लगा. मैने अपनी अराध्य माँ काली को और माँ ताप्ती को संग - संग याद किया और उल्टे पांव पहाड़ी से नीचे उतरने लगा. मुझे पहाड़ी चढऩे से ज्यादा समय उतरने में लग रहा था. थोड़ा सा भी अनबेलेंस हो जाता तो सीधे खाई में जा गिरता लेकिन मैने लताओं और पेड़ो की टहनियों को पकड़ कर नीचे उतरने का प्रयास किया. शाम होने को आई थी. जब थका - हारा मैं उस गांव में पहुंचा तो पूरा गांव मुझे नफरत से देख रहा था. गांव का एक बुर्जग बोला ''बेटा क्यों हमारी - तुम्हारी जान के दुश्मन बने हो ....... उस पहाड़ी पर जाने के बाद ही गांव में कोई न कोई आफत आती है......!मैने उस बुर्जुग से पुछा ''बाबा कैसी मुसीबत और कैसे जान पर आफत ......! वह बोला तुम जिस बाबा के साथ उस पहाड़ी तक पहुंचे हो वह कोई और नहीं बल्कि उस सामने वाले किले का राजा इल ही है जो बरसो से अपने अराध्य भगवान सूर्य नारायण की भरी दोपहर में पूजा करने जाता है . जबसे उस मंदिर के पत्थर चोरी होने लगे तबसे पूरे गांव पर मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा है. समय के काल चक्र ने उन लोगो की जाने ले ली है जिसने उस मंदिर के पत्थरो से बने रथ के पत्थरो को निकाल कर विदेशियो को बेचा डाला था . पिछली बीस सालो में आसपास के कई गांवो के कई नौ जवान लोभ और लालच की बेदी पर बलि चढ़ गये है . पहली बार पत्थर लाकर देने के बाद जब भी वह दुसरी बार उस पहाड़ी पर गया है वहां से जिंदा नहीं लौटा है. एक - एक करके इस गांव के हर घर का एक छोरा उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में काल के गाल में समा जाता है. वह राजा आज भी रोज दोपहर को साधु - बाबा - संत के भेष में मंदिर में अपने भगवान की पूजा करने जाता है. जिसकी नीयत साफ हो उसे वह पहाड़ी तक ले जाता है लेकिन जिसके मन में लोभ लालच आया समझो उसकी जान चली जाती है. आज पिछली बीस पीढिय़ों से हम इस मंदिर के श्राप का दण्ड भोग रहे है. जब भी कोई गांव में आने के बाद मंदिर का पता पुछता है तो हमें ऐसा लगता है कि कहीं यह भी उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में अपनी जान न गवां बैठे. जब मैने उसे बताया कि ''मैं लेखक हूं कहानी लिखता हू , इस सूर्य मंदिर को लेकर भी कहानी लिखना चाहता हँू......!मेरी बात सुन कर वह बुढा व्यक्ति बोला ''बेटा मैं पहले ही कह रहा था कि क्यों हमारी जान के दुश्मन बने बैठे हो ......! , तुम कहानी लिखोगें उसे पढ़ कर लोग आयेगें और फिर वही होगा जो अभी तक होता आ रहा था........! मैने उस व्यक्ति के साथ पूरे गांव को यकीन दिलाया कि मैं अपनी कहानी मेंं कहीं पर भी आपके गांव का नाम और पता नहीं बताऊंगा......... मेरी बात का उन लोगो पर असर हुआ. बातचीत में पता भी नहीं चला कि कब रात हो गई. जब मै अपनी मोटर साइकिल लेकर जाने लगा तो गांव वालो मेे मुझे रोक लिया और वे कहने लगे कि रात का सफर दिन के सफर से ज्यादा खतरनाक है. गांव वालो के आग्रह पर मैं रात तो वहीं रूक गया. रात में गांव के लोगो ने मुझे वे मंदिर के पत्थर दिखाये जिसके चक्कर में उनके बच्चे बेमौत मारे गये थे. उन पत्थरो को देखने के बाद कहीं से कहीं तक ऐसा नहीं लगता था कि ए पत्थर है या स्वर्ण ....... गांव वालो की बताये किस्से कहानी सुन कर मुझे कब आंख लग गई और मैं सो गया. सुबह जब नींद खुली तो मैने स्वंय को अपने ही घर के बिस्तर पर पाया. मेरी हालत देख कर मेरा पूरा परिवार मेरे चारो ओर बैठा था. मेरे दोनो बेटो और पत्नि का रो रोकर बुरा हाल था. बाबू जी और मां भी अपनी आंखो के आंसुओ को रोक नहीं पा रहे थे. मेरे लाख पुछने पर जब किसी ने कुछ नहीं बताया तो मैं बिस्तर से उठा और अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत होने के बाद मैने अपने बड़े बेटे से कहा कि ''बेटा गाड़ी बाहर निकाल आज शनिवार है ताप्ती नहाने चलना है......! घर के लोगो के मना करने के बाद भी मैं ताप्ती नहाने के लिए निकल गया. माँ सूर्य पुत्री ताप्ती में स्नान - ध्यान और पूजा करने के बाद जब मैं वापस लौटने लगा तब मेरे बेटे ने बीती रात वाली कहानी मुझे ्रबता ही दी. उसके अनुसार ''पापा आज आप सपने में किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर को देखने के लिए जा रहे थे और इधर बिस्तर पर बड़बड़ाते जा रहे थे .......!आपकी हालत देख कर ही सभी लोग नींद से जाग कर आपके जागने का इंतजार करने लगे. जब घर पहुंचा तो घर पर नाते - रिश्तेदारो की लम्बी चौड़ी भीड़ लगी थी. कुछ लोग एक बाबा को पकड़ लाये थे . बाबा को देख कर मैं दंग रह गया क्योकि यह तो वही बाबा था जो मुझे मंदिर तक ले गया था. मेरी हालत देख कर बाबा ने मुस्काराते हुये मेरे हाथ में एक पत्थर का टुकड़ा दे दिया और उसे तब तक दबाये रखने को कहा जब तक कि वह चला न जाये. इशारे ही इशारे में बाबा ने मुझे सख्त चेतावनी भी दे डाली कि मैं उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताऊ ......!बाबा के जाते ही जैसे में अपनी हथेली खोली तो मैने देखा कि वह उसी सूर्य मंदिर के रथ के पहिये का एक छोटा सा हिस्सा था जो इस कथा के काल्पनिक न होने की कहानी बयां करता है. आज इस घटना को कई दिन बीत गये लेकिन सूर्य मंदिर को लेकर लोग आज भी जिज्ञासु है कि आखिर सूर्य मंदिर यदि है भी तो कहाँ.........! मैं गांव वालो की भलाई के लिए मंदिर की लोकेशन तो नहीं बता सकता लेकिन यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस क्षेत्र में किसी न किसी पहाड़ी पर वह स्थान जरूर है जहां भगवान भास्कर आज भी एक पल के लिए अपने रथ पर बैठने के लिए आते है. आज भले ही रथ न हो पर भगवान और भक्त की बेमिसाल बने इस सूर्य मंदिर का रहस्य कई और भी रहस्यो पर से पर्दा हटा सकता है.
इति,
रामकिशोर पंवार
पत्रकार - लेखक - कहानीकार
खंजनपुर बैतूल मध्यप्रदेश
मो. 9993162080
नोट :- कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है.
पहाडिय़ो में छुपा सूर्य मंदिर
सत्यकथा : - रामकिशोर पंवार रोढ़ावाला
भगवान भास्कर जब सुबह अपने रथ पर सवार को जाने के लिए अपने शयन कक्ष से बाहर नहीं निकले तो उनके पूरे महल में चहल - पहल शुरू हो गई. माता संध्या ने भगवान भास्कर से कहा कि '' हे प्रभु आज क्या अपने रथ पर सवार होकर धरती की परिक्रमा करने का इरादा नहीं है क्या....!अपने शयन कक्ष में असलाई निंद्रा में उन्होने संध्या से पुछा ''संध्या क्या चांद ने अपनी परिक्रमा पूरी कर ली.....! , तारो की गणना क्या कहती है....! मुझे वास्तव में अपने स्वर्ण रथ लेकर सृष्टि की परिक्रमा पर निकल जाना चाहिये .......!सूर्य नारायण के कई तरह के सवालो के उत्तर में भगवान विश्वकर्मा की पुत्री माता संध्या ने जवाब देने के बजाय अपनी प्रतिछाया सूर्य नाराणय की दुसरी भार्या माता छाया को बुलाया और वह उससे बोली ''अब छाया तुम ही भगवान दिवाकर को समझाओ की उनके जाने का समय निकला जा रहा या नहीं......!भगवान सूर्य नारायण की दोनो जीवन संगनी के बीच हो रहे वार्तालाप को सुन रही भगवान भास्कर की छोटी बिटिया ताप्ती अचानक हस पड़ी और कहने लगी ''माँ जो इस सृष्टि के सबसे बड़े देवता है वे तक भगवान सूर्यनारायण की प्रतिक्षा कर रहे है क्योकि बाबा भोलेनाथ को भी तो भोर होते ही अपने शिव भक्तो के अभिषेक का इंतजार रहता है.....!ताप्ती की बात पर सूर्य पुत्र शनि ने अपनी छोटी बहन ताप्ती को समझाया कि ''बहना तू अभी छोटी है.... यदि जगतपिता ब्रहमा द्धारा रचित विधान को अपना ही पिता नहीं मानेगा तो भी पूरी सृष्टि में महाप्रलय आ जायेगा और फिर कहीं न कहीं सारा दोष मेरे ऊपर ही आ जायेगा क्योकि लोग तो कहना नहीं भूलेगें कि शनिदेव की दृष्टि पड़ी है तभी तो सब कुछ हो गया ......! , ऐसे में हम भगवान भास्कर की सभी संतानो को चाहिये कि हम अपनी माताओं के द्धारा किये जा रहे प्रयासो पर किसी भी प्रकार की टीका - टिप्पणी न करे और जैसा होना है उसे होने दे......! अपने पुत्र की बातो को सुन कर मंद - मंद मुस्कराये भगवान भास्कर ने शनि से कहा कि ''बेटा मुझे आज महसुस हुआ कि मैने तुझे न्याय का देवता बनवा कर कोई गलती नहीं की , क्योकि सही और गलत का फैसला तो तुझे ही करना है ..... , और उसी के हिसाब से सभी को अपने - अपने कर्मो का फल भोगना है.....! अपने शयनकक्ष से स्नान - ध्यान आदि से निवृत होकर जैसे ही भगवान भास्कर अपने बारह अश्व की सवारी वाले स्वर्ण से बने भास्कर रथ पर सवार होने के लिए अस्तबल में पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहां पर उनका बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ नहीं था. भगवान भास्कर अपने ही महल से पहली बार इस तरह लापता हुये अपने स्वर्ण रथ को लेकर चिंता में पड़ गये. इधर धरती - आकाश - बैकुंठधाम यहाँ तक की स्वर्ग में भगवान भास्कर के आने की प्रतिक्षा कर रहे देवी - देवता , नर - नारी - किन्नर , दैत्य - दानव , पशु - पक्षी , वनस्पति , पेड़ - पौधे - जल - थल सभी को बैचेनी होना शुरू हो गई........! अब लोग इसे महाप्रलप का समय से पहले से आने की भविष्यवाणी समझ कर अभी से चिंताग्रस्त हो गये. भगवान भास्कर को चिंता में देख कर सूर्यपुत्र शनि ने अपनी नज़र घुमाई तो उसे दिखा कि एक दानव भगवान भास्कर का बारह अश्वो का रथ लिए भागे जा रहा था. उसने यह बात अपने पिता को बताई तो भगवान भास्कर और भी चिंता में पड़ गये. दोनो ही पिता पुत्र उस राक्षस की ओर दौड़ पड़े . पिता - पुत्र को इस तरह एक दुसरे के पीछे दौड़ता देख भगवान भोलेनाथ चिंता में पड़ गये. उन्हे लगा कि एक बार फिर कहीं पिता - पुत्र में कोई विवाद तो नहीं हो गया .....! इसलिए भगवान भास्कर बिना रथ के ही अपने पुत्र शनि के पीछे भागे जा रहे है. दोपहर होने को थी ऐसे में आखिर सूर्य पुत्र शनि ने उस राक्षस को रोक लिया और उससे भगवान भास्कर का रथ वापस लौटाने को कहा लेकिन राक्षस ने शनिदेव की चेतावनी नहीं मानी. अपने किले से एक राक्षस को बारह अश्वो के रथ को देख कर राजा इल की इच्छा हुई कि वह उस राक्षस से रथ छीन ले.....! बस इसी उधेड़बुन में राजा इल ने भगवान भास्कर एवं शनिदेव को देखे बिना ही अपनी मंत्र शक्ति चला दी. मंत्र शक्ति के प्रभाव पड़ते ही वह बारह अश्व रहित स्वर्ण रथ पत्थरो का हो गया. जब राजा इल उस रथ तक पहुंचे वहां पर देवी - देवताओं की लम्बी - चौड़ी जमात एकत्र हो गई थी. रथ को पत्थर को होता देख राक्षस वहां से भाग खड़ा हुआ. अब भगवान भास्कर चिंता में पड़ गये कि इस पत्थरो के रथ पर वे भलां कैसे पूरी सृष्टि की परिक्रमा लगा पायेगें. शनिदेव ने राजा इल से कहा कि वह जिस मंत्र विद्या से रथ को पत्थरो का किया है उसी मंत्र विद्या से इसे अपने मूल स्वरूप में कर दे लेकिन राजा इल ने हाथ जोड़ लिये और वह कहने लगा कि ''हे अदिति नंदन मुझे किसी भी चल - अचल वस्तु को पत्थर का बनाने का मंत्र मालूम था .....! अब इसे मैं क्या दुनिया की कोई भी मंत्र शक्ति अपने मूल स्वरूप में नहीं ला सकती ......! ऐसे में हे प्रभु मेरी तपस्या और भगवान भास्कर के प्रति समपर्ण को देख कर आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हँू कि भगवान भास्कर एक बार इस रथ में बैठ जाये ताकि मैं रोज अपने महल से इस पहाड़ी पर मेरे द्धारा बनवाये जाने वाले सूर्य मंदिर में भगवान भास्कर आपकी दिन की भरी दोपहर में पूजा - अर्चना कर सकूं ..... इस बीच भगवान विश्वकर्मा शिव आदेश से दुसरा बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ का निमार्ण कर आ चुके थे. भगवान विश्वकर्मा के साथ पूरा सूर्य परिवार था. भगवान भास्कर ने राजा के आग्रह को स्वीकार किया और स्वर्ण से पत्थर का बने रथ पर जैसे ही बैठे पूरे आकाश में उनका तेज प्रताप जगमगा उठा. धरती - आकाश - शिवलोक , बैकुंठधाम , स्वर्ग लोक से सभी देवी - देवताओं ने भगवान भास्कर पर फूल बरसाने शुरू कर दिये. इस बीच नारायण भक्त देवऋषि नारद भी अपनी वीणा के साथ उस पहाड़ी पर आ गये. जहां पर पत्थरो का वह रथ था जिस पर भगवान भास्कर कुछ पल के लिए बैठे हुये थ्से. देवऋषि नारद ने राजा इल से कहा कि ''राजन तुम्हारे कर्मो का ही फल है कि आज भगवान भास्कर इस धरती पर किसी स्थान पर नही बल्कि एक ऐसी पहाड़ी पर विराजमान हुये जिसको तुम्हारे किले के चारो दरवाजो से देखा जा सकता है. .....देवऋषि की वाणी का सभी ने स्वागत किया. भगवान भास्कर ने अपने दुसरे रथ पर सवार होकर सृष्टि की परिक्रमा शुरू कर दी लेकिन उनके मन में इस बात का संशय बना रहा कि इतनी पहरेदारी के बीच उनके महल तक उनकी तपन की बिना परवाह किये बिना उनका रथ चोरी करने का र्दु:साहस भलां कैसे हो गया. भगवान भास्कर को चिंताग्रस्त देख कर देवऋषि नारद आये और वे कहने लगे ''भगवान भास्कर आपकी चिंता का प्रमुख कारण आपके परिवार से ही जुड़ा है..... , जब - जब आप पिता - पुत्र आमने - सामने होगें तब - तब इस संसार में ऐसी लीलाए भगवान लीलाश्वर याने उमापति महादेव रचते रहेगे......!ÓÓ वह जो रथ को चुराने वाला कोई और नहीं भगवान नीलकंठ से ही सिद्धी प्राप्त एक असुर है जिसका नाम सुन कर आपको हैरानी होगी. भगवान भास्कर की जिज्ञासा को शांत करते हुये नारद जी बोले ''भगवन यह कोई नहीं बल्कि स्वंय आपके अहंकार से उत्पन्न राक्षस सूर्यासूर है जिसने बरसो आपकी ही पुत्री माँ ताप्ती के तट पर बारहलिंग नामक देव स्थान पर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वरदान मांगा कि ''हे प्रभु मैं कुछ ऐसा कर जाऊ कि यह सृष्टि मुझे याद रखे .......!भगवान शिव ने बिना कुछ सोचे अपने भक्त को आर्शिवाद दे डाला. भगवान शिव के आर्शिवाद एवं आपकी पुत्री ताप्ती के निर्मल जल से भीगा होने के कारण उसे आपकी तपन का असर नहीं हुआ और वह आपका स्वर्ण रथ चुरा कर ले गया. अब प्रभु आपको याद होगा कि आपके भक्त राजा इल ने अपने राज्य में पड़े सुखे और आकाल से निपटने के लिए किले के सामने बनवाये उस तालाब में अपने पहले पुत्र और वधु को हवन की बेदी पर बैठाला था. उस सूर्य उपासना से ही तालाब में चारो ओर से जलधारा बह निकली और राजा के पुत्र और पुत्रवधु की जलबलि चढ़ गई. आपने ही राजा से कहा था कि ''हे राजन मैं तुम्हारे त्याग और तपस्या तथा मेरे प्रति समपर्ण से प्रसन्न हूं , चाहो तो इच्छानुसार वर मांग सकते हो......! अपने इकलौते पुत्र और पुत्रवधु की मौत से शोकाकुल राजा ने उस समय आपसे कुछ नहीं मांगा लेकिन उसने अपनी सूर्य उपासना जारी रखी. उसे नहीं पता था कि जो राक्षस आपका रथ लेकर भाग रहा है वह सूर्यासूर है तथा उसके पीछे भगवान शिव की शिवलीला है जो इस बात का संकेत देती है कि भक्त और भगवान एक समान . राजा तो स्वंय चाहता था कि वह उस राक्षस से आपका रथ छीन ले लेकिन किले से उस पहाड़ी तक जाने में उसे काफी समय लग जाता इसलिए उसने अपनी मंत्र शक्ति का उपयोग करके पूरे रथ को ही पत्थर का बना डाला. रथ को पत्थरो का बनता सूर्यासूर भाग खड़ा हुआ. अपने रथ का पीछा करते भगवन भास्कर आप और आपके पुत्र शनिदेव जब इस पहाड़ी तक पहुंचे राजा इल भी वहां पहुंच चुका था. राजा की इच्छानुसार प्रभु आपको दोपहर को एक पल के लिए उस पत्थरो के रथ पर बैठना पड़ा क्योकि इस संसार में पृथ्वी पर आज तक किसी भी स्थान पर भगवान सूर्य आपका स्वर्ण रथ वाला मंदिर नहीं है. जिस पर आप स्वंय हर दिन दोपहर को एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है. इस मंदिर को लोग सदियो तक पूजते रहेगें लेकिन एक दिन यह मंदिर अपने आप ही अपने मूल स्वरूप को खो देगा.
दादी और नानी से कई बार इस कहानी को सुन चुका था कि मेरे ही जिले की किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है जिसने भगवान भास्कर एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है . बचपन की सुनी कहानी को मेरे दिमागी चित्रपटल ने आज तक जिंदा रखा था. मैने सबसे पहले खेडला किले के आसपास की पहाडिय़ो की खाक छानने के बाद मैं आगे की ओर बढ़ता गया. मुझे महिने नहीं बल्कि ढाई - तीन साल लग गये. जवानी के दिनो में मैने सत्यकथा में भी सूर्यमंदिर की कहानी पढ़ी थी लेकिन लेखक ने ऐसा भ्रम का जाल बिछाया कोई उस ठौर तक जा ही नहीं सका. हालाकि उस लेखक की कहानी का केन्द्र भी वही सूर्य मंदिर था जिसे मैं खोज रहा था. आज जब मैं उस पहाड़ी के करीब पहुंचा तो मैने कई आसपास के कई राह चलते ग्रामीणो से पुछा कि ''इस गांव की किस पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है लेकिन पूरे गांव में कोई भी मेरे सवाल का जवाब नहीं दे सका......!अचानक कुछ देर रूकने के बाद मैं उस पहाड़ी की ओर अकेला ही चल पड़ा . पूरा जंगल सुनसान कंटीली झाडिय़ो से भरा बियावान था . मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था. कुछ दूर चढऩे के बाद जब थकान के मारे जब मेरा दम भरने लगा तो मैं एक स्थान पर बैठ गया. आबादी से कोसो दूर उस पहाड़ी पर मुझे एक बाबा दिखाई दिया . जब मैने उससे सूर्य मंदिर का पता पुछा तो वह बोला ''पत्रकार हो या कहानीकार .......! मैं अपने बारे में बाबा से सच्चाई जानने के बाद भौचक्का रह गया. मुझे लगा कि सूर्य मंदिर के चक्कर में मैने बैठे ठाले मुसीबत मोल ले ली है. बाबा बोला ''बेटा मंदिर को ही देखेगा या उसके पीछे की कहानी भी जानेगा .....! और फिर वह बाबा ऊपर बताई गई कहानी को सुनाते हुये मुझे ठीक भरी दोपहर को उस स्थान पर ले गया जहां पर सूर्य भगवान का वह पत्थरो में बदला रथ और मंदिर था. पहाड़ी पर बने सूर्य मंदिर की कोई छत नहीं थी . बस चारो ओर परकोटे के खम्बे गड़े थे. सूर्य भगवान की प्रतिमा एक स्थान पर लेटी हुई थी. पूरा रथ जो पत्थरो का बना था उसके सारे पत्थर आसपास के गांव के लोग निकाल कर ले जा चुके थे. मंदिर में देखने को कुछ भी नहीं था लेकिन जैसे ही सूर्य सर के ऊपर आता है अचानक उस स्थान पर सूर्य का तेज इतना बढ़ जाता है कि ठंड हो बरसात इसंान पानी से नहा लेता है. कुछ पल बाद स्थिति ज्यों की त्यों हो जाती है. बाबा ने ठीक उसी समय लेटे हुये भगवान भास्कर की प्रतिमा की पूजा की और वे अचानक मेरी आंखो से ओझल हो गये. सुनसान पहाड़ी पर मेरे अलावा कोई नहीं था. डर के मारे मैं थर - थर कांप रहा था. दिन में किसी भूतहा महल या खोली में जाने के बाद होने वाली स्थिति का मुझे आभास होने लगा. मैने अपनी अराध्य माँ काली को और माँ ताप्ती को संग - संग याद किया और उल्टे पांव पहाड़ी से नीचे उतरने लगा. मुझे पहाड़ी चढऩे से ज्यादा समय उतरने में लग रहा था. थोड़ा सा भी अनबेलेंस हो जाता तो सीधे खाई में जा गिरता लेकिन मैने लताओं और पेड़ो की टहनियों को पकड़ कर नीचे उतरने का प्रयास किया. शाम होने को आई थी. जब थका - हारा मैं उस गांव में पहुंचा तो पूरा गांव मुझे नफरत से देख रहा था. गांव का एक बुर्जग बोला ''बेटा क्यों हमारी - तुम्हारी जान के दुश्मन बने हो ....... उस पहाड़ी पर जाने के बाद ही गांव में कोई न कोई आफत आती है......!मैने उस बुर्जुग से पुछा ''बाबा कैसी मुसीबत और कैसे जान पर आफत ......! वह बोला तुम जिस बाबा के साथ उस पहाड़ी तक पहुंचे हो वह कोई और नहीं बल्कि उस सामने वाले किले का राजा इल ही है जो बरसो से अपने अराध्य भगवान सूर्य नारायण की भरी दोपहर में पूजा करने जाता है . जबसे उस मंदिर के पत्थर चोरी होने लगे तबसे पूरे गांव पर मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा है. समय के काल चक्र ने उन लोगो की जाने ले ली है जिसने उस मंदिर के पत्थरो से बने रथ के पत्थरो को निकाल कर विदेशियो को बेचा डाला था . पिछली बीस सालो में आसपास के कई गांवो के कई नौ जवान लोभ और लालच की बेदी पर बलि चढ़ गये है . पहली बार पत्थर लाकर देने के बाद जब भी वह दुसरी बार उस पहाड़ी पर गया है वहां से जिंदा नहीं लौटा है. एक - एक करके इस गांव के हर घर का एक छोरा उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में काल के गाल में समा जाता है. वह राजा आज भी रोज दोपहर को साधु - बाबा - संत के भेष में मंदिर में अपने भगवान की पूजा करने जाता है. जिसकी नीयत साफ हो उसे वह पहाड़ी तक ले जाता है लेकिन जिसके मन में लोभ लालच आया समझो उसकी जान चली जाती है. आज पिछली बीस पीढिय़ों से हम इस मंदिर के श्राप का दण्ड भोग रहे है. जब भी कोई गांव में आने के बाद मंदिर का पता पुछता है तो हमें ऐसा लगता है कि कहीं यह भी उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में अपनी जान न गवां बैठे. जब मैने उसे बताया कि ''मैं लेखक हूं कहानी लिखता हू , इस सूर्य मंदिर को लेकर भी कहानी लिखना चाहता हँू......!मेरी बात सुन कर वह बुढा व्यक्ति बोला ''बेटा मैं पहले ही कह रहा था कि क्यों हमारी जान के दुश्मन बने बैठे हो ......! , तुम कहानी लिखोगें उसे पढ़ कर लोग आयेगें और फिर वही होगा जो अभी तक होता आ रहा था........! मैने उस व्यक्ति के साथ पूरे गांव को यकीन दिलाया कि मैं अपनी कहानी मेंं कहीं पर भी आपके गांव का नाम और पता नहीं बताऊंगा......... मेरी बात का उन लोगो पर असर हुआ. बातचीत में पता भी नहीं चला कि कब रात हो गई. जब मै अपनी मोटर साइकिल लेकर जाने लगा तो गांव वालो मेे मुझे रोक लिया और वे कहने लगे कि रात का सफर दिन के सफर से ज्यादा खतरनाक है. गांव वालो के आग्रह पर मैं रात तो वहीं रूक गया. रात में गांव के लोगो ने मुझे वे मंदिर के पत्थर दिखाये जिसके चक्कर में उनके बच्चे बेमौत मारे गये थे. उन पत्थरो को देखने के बाद कहीं से कहीं तक ऐसा नहीं लगता था कि ए पत्थर है या स्वर्ण ....... गांव वालो की बताये किस्से कहानी सुन कर मुझे कब आंख लग गई और मैं सो गया. सुबह जब नींद खुली तो मैने स्वंय को अपने ही घर के बिस्तर पर पाया. मेरी हालत देख कर मेरा पूरा परिवार मेरे चारो ओर बैठा था. मेरे दोनो बेटो और पत्नि का रो रोकर बुरा हाल था. बाबू जी और मां भी अपनी आंखो के आंसुओ को रोक नहीं पा रहे थे. मेरे लाख पुछने पर जब किसी ने कुछ नहीं बताया तो मैं बिस्तर से उठा और अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत होने के बाद मैने अपने बड़े बेटे से कहा कि ''बेटा गाड़ी बाहर निकाल आज शनिवार है ताप्ती नहाने चलना है......! घर के लोगो के मना करने के बाद भी मैं ताप्ती नहाने के लिए निकल गया. माँ सूर्य पुत्री ताप्ती में स्नान - ध्यान और पूजा करने के बाद जब मैं वापस लौटने लगा तब मेरे बेटे ने बीती रात वाली कहानी मुझे ्रबता ही दी. उसके अनुसार ''पापा आज आप सपने में किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर को देखने के लिए जा रहे थे और इधर बिस्तर पर बड़बड़ाते जा रहे थे .......!आपकी हालत देख कर ही सभी लोग नींद से जाग कर आपके जागने का इंतजार करने लगे. जब घर पहुंचा तो घर पर नाते - रिश्तेदारो की लम्बी चौड़ी भीड़ लगी थी. कुछ लोग एक बाबा को पकड़ लाये थे . बाबा को देख कर मैं दंग रह गया क्योकि यह तो वही बाबा था जो मुझे मंदिर तक ले गया था. मेरी हालत देख कर बाबा ने मुस्काराते हुये मेरे हाथ में एक पत्थर का टुकड़ा दे दिया और उसे तब तक दबाये रखने को कहा जब तक कि वह चला न जाये. इशारे ही इशारे में बाबा ने मुझे सख्त चेतावनी भी दे डाली कि मैं उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताऊ ......!बाबा के जाते ही जैसे में अपनी हथेली खोली तो मैने देखा कि वह उसी सूर्य मंदिर के रथ के पहिये का एक छोटा सा हिस्सा था जो इस कथा के काल्पनिक न होने की कहानी बयां करता है. आज इस घटना को कई दिन बीत गये लेकिन सूर्य मंदिर को लेकर लोग आज भी जिज्ञासु है कि आखिर सूर्य मंदिर यदि है भी तो कहाँ.........! मैं गांव वालो की भलाई के लिए मंदिर की लोकेशन तो नहीं बता सकता लेकिन यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस क्षेत्र में किसी न किसी पहाड़ी पर वह स्थान जरूर है जहां भगवान भास्कर आज भी एक पल के लिए अपने रथ पर बैठने के लिए आते है. आज भले ही रथ न हो पर भगवान और भक्त की बेमिसाल बने इस सूर्य मंदिर का रहस्य कई और भी रहस्यो पर से पर्दा हटा सकता है.
इति,
रामकिशोर पंवार
पत्रकार - लेखक - कहानीकार
खंजनपुर बैतूल मध्यप्रदेश
मो. 9993162080
नोट :- कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है.
Jaisa Nam Vaisa Kam
जैसा नाम - वैसा काम
न्यायमूर्ति आपका वंदन है अभिनंदन है
रामकिशोर पंवार
बैतूल जिले में अभी तक आयोजित की गई सभी लोक अदालतो के माध्यमो से आपसी राजीनामों के आधार पर अभी तक के निपटायें गये सभी मामलो में इस बार एतिहासिक पहल हुई है. ऐसा नहीं कि जिले में अभी तक लोक अदालतो में अपेक्षित मामले नहीं निपटायें गये. जिले में जहाँ एक ओर शनिवार के दिन लोग कोर्ट - कचहरी के चक्करो से बचने के लिए सूर्यपुत्र शनिदेव - सूर्यपुत्री माँ ताप्ती एवं सूर्यदेव के शिष्य भगवान शिव के पांचवे रूद्र अवतार पवनपुत्र हनुमान जी की शरण में उपस्थित होते है, वहीं दुसरी ओर हजारो बैतूल जिले के मुलताई - बैतूल - आमला - भैसदेही न्यायालयों में दर्ज शारीरिक - मानसिक - आर्थिक प्रताडऩा के साथ - साथ अपराधिक मामलो के आपसी सुलह नामें की सराहनीह पहल करते हुये इन मामलो के पक्षकारो एवं आरोपियो को बकायदा कोर्ट नोटिस पुलिस के माध्यम से भिजवाये गये थे जिसके चलते शनिवार के दिन इन सभी न्यायालयों मेला लगा हुआ हुआ था. हजारो की संख्या में लोगो की भीड़ न्याय को खोजती यहाँ पर पहँुची जिसे सुबह से शाम तक रूकने के बाद आपसी राजीनामें का कागज ही नहीं मिला बल्कि अपेक्षित न्याय एवं मुआवजा भी मिला. बैतूल जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभिनंदन जैन के कार्यकाल में जिले में उनके नाम के अनुरूप कार्य संपादित होने से जिले के दो हजार एक सौ तेरसठ मामलो का आपसी सुलह पर समाधान होने के साथ - साथ एक करोड़ , सतरह लाख रूपये से भी अधिक की राशी भी मुआवजे के रूप में मिलेगी. जिले में पहली बार मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर के दिशा निर्देश एवं जिला एवं तहसील न्यायालयो की साझा पहल पर दहेज प्रताडऩा - भरण पोषण दावा प्रकरण - वैवाहिक प्रकरणो - मोटर दुर्घटना दावा प्रकरणो - समरी प्रकरण - लड़ाई - झगड़ो के छोटे - मोटे अपराधिक प्रकरण - चेक बाउंस के मामले - राजस्व अधिनियम - विद्युत अधिनियम - वन अधिनियम - उप पंजीयक एवं जिला पंजीयक के दर्ज मामलो में दोनो पक्षो को एक साथ बुलावा भेज कर उनके बीच सुलह का प्रयास हजारो लोगो के लिए किसी तीज त्यौहार से कम नहीं था. इस दिन घर से न्याय की आशा के साथ आये हजारो लोगो के बीच यदि दो हजार से अधिक लोगो को अब आने वाले कल में कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ेगें साथ ही ऐसे लोगो को वकीलो के एवं न्यायालयो के सामने घंटो खड़ा नहीं रहना पड़ेगा. ऐसे लोगो को न्याय तो मिला साथ ही न्याय के प्रति उम्मीद भी जगी कि उन्हे देर ही सही लेकिन न्याय तो मिला. ऐसे प्रकरणो में दो पक्षो के बीच पीसते चले आ रहे गवाहो एवं साक्ष्यो सबूतो को भी बंद पड़े ताबूतों से मामले के निपटते ही सदा - सदा के लिए मुक्ति मिल गई. जिले में आदिवासी - पिछड़े - दलित - पीडि़त - शोषित - प्रताडि़त समाज के लोगो की भीड़ न्याय के लिए सबसे अधिक संख्या में आकर आपसी सुलहनामें के कागज के साथ मतभेद एवं मनभेद को भी सदा - सदा के लिए भूला कर एक दुसरे से गले मिल कर सारे गले - शिकवो को भूला कर एक नई जिदंगी की शुरूआत की कामना के साथ अपने - अपने घरो को लौटी. बैतूल जिले में लोक अदालतो के माध्यम से इस बार दो पक्षो के अधिवक्ताओं को भी जोडऩे का अभिनव प्रयास किया गया. कहना नहीं चाहिये लेकिन इस सच्चाई से कोई भी मुंह नही चुरा सकता कि अकसर कोर्ट - कचहरी का चक्कर लगाने वाला पक्षकार - आरोपी तथा गवाह वकीलो एवं बिचौलियो की कमाई का माध्यम रहता है. मामला यदि जल्दी सुलझ गया तो फीस - कमीशन के मारे जाने के चक्कर में लोग जान बुझ कर भी मामलो को पेडिंग रखते है ताकि सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी अधिक समय तक जीवित रह सके. नीजी स्वार्थ एवं मुंछ की लड़ाई के चक्कर में भी अकसर कई मामले आपसी सुलह से सुलझ सकते है लेकिन कहीं न कहीं किसी न किसी आदमी का इगो उसे ऐसा करने से रोक - टोक देता है. उसके ऐसा करने से वह स्वंय भी कोर्ट कचहरी तथा वकीलो के चक्कर लगाता है तथा दुसरो को भी चक्कर लगवाने के लिए बाध्य करता है. न्यायालयो में ऐसे हजारो प्रकरण आज भी पेडिंग पड़े है जिसमें आरोपी को मिलने वाली सजा से अधिक साल उसके कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में बीत चुके है. जिन मामलो में तीन से एक साल की सजा है उन मामलो को दस - दस साल से विचाराधीण रहना अपने आप में विचारणीय तथ्य है पर कोर्ट - कचहरी के मामलो में किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी न्यायालय की अवमानना का कारण एवं कारक बनती है इसलिए लोग गांधी जी के तीन बंदरो के रूप में स्वंय को ढाल रखे है. लोक अदालतो के बहाने न्यायालयो में दर्ज प्रकरणो के बोझ से स्वंय न्यायालय भी मुक्त हुई है. लोक अदालतो में ऐसे मामलो के निपटारे से दोनो पक्षो के बीच बरसो से चवली आ रही कड़वाहट के साथ साथ कई ऐसे सुखद क्षण भी देखने को मिले है जिससे लोगो के घर - परिवार भी बसे है. पति - पत्नि के बीच आई छोटी सी कड़वाहट का दंश भोग रहे दोनो के परिजनो के साथ - साथ रिश्तेदार एवं पड़ौसी तक को इन मामलो के सुलह हो जाने के बाद चैन की सांस लेने का मौका मिला है. वैवाहिक रिश्तो में आई दरार को भी लोक अदालतो ने पाटने का अद्धितीय कार्य किया है. ऐसे युवा दम्पति जो कि जवानी से पौढ़ आयु तक कोर्ट - कचहरी के चक्कर काटते चले आ रहे थे उनके बीच भी आपसी रजामंदी ने उनके नये जीवन की शुरूआत की है. इस बात को कादपि अपने मान - सम्मान से वकालत के पेशे से जुड़े लोग न ले तो उसे कहना का औचित्य है. बात कुछ इस प्रकार की है कि यदि इस तरह की लोक अदालते यदि लगातार हर माह लगनी शुरू हो गई तो कई वकीलो के सामने रोजी - रोटी का संकट आ जायेगा क्योकि यदि एक माह में हजार या दो हजार मामले आपसी सुलह से सुलझ जाने लगे तो कोर्ट कचहरी के वकीलो को हर माह हजारो से लेकर लाखो की फीस से हाथ धोना पड़ सकता है. यदि लोक अदालते नहीं लगती है तो यही दो हजार पक्षकार हर महिने अपनी पेशी तारीखो पर आकर बस - टैक्सी से लेकर वकीलो एवं होटलो और पानठेले वालो का परिवार कैसे पाल पायेगे. इन सब से हट कर एक बाज यह भी कटु सत्य है कि जब तक मुर्ख जिंदा है तब - तक बुद्धिमान का घर खर्च चलता रहेगा. ऐसे में वकीलो की गिनती तो बुद्धिजीवी वर्ग में आती ही है. कुल मिलाकर एक बात तो तारीफे काबील है कि दोनो पक्षो के अलावा न्यायाधीश एवं वकीलो की साझा पहल पर एक नही दो नहीं बल्कि हजारो लोगो को समय के पूर्व न्याय मिला तथा कोर्ट कचहरी के चक्करो से लोगो को छुटकारा मिल जायेगा.
न्यायमूर्ति आपका वंदन है अभिनंदन है
रामकिशोर पंवार
बैतूल जिले में अभी तक आयोजित की गई सभी लोक अदालतो के माध्यमो से आपसी राजीनामों के आधार पर अभी तक के निपटायें गये सभी मामलो में इस बार एतिहासिक पहल हुई है. ऐसा नहीं कि जिले में अभी तक लोक अदालतो में अपेक्षित मामले नहीं निपटायें गये. जिले में जहाँ एक ओर शनिवार के दिन लोग कोर्ट - कचहरी के चक्करो से बचने के लिए सूर्यपुत्र शनिदेव - सूर्यपुत्री माँ ताप्ती एवं सूर्यदेव के शिष्य भगवान शिव के पांचवे रूद्र अवतार पवनपुत्र हनुमान जी की शरण में उपस्थित होते है, वहीं दुसरी ओर हजारो बैतूल जिले के मुलताई - बैतूल - आमला - भैसदेही न्यायालयों में दर्ज शारीरिक - मानसिक - आर्थिक प्रताडऩा के साथ - साथ अपराधिक मामलो के आपसी सुलह नामें की सराहनीह पहल करते हुये इन मामलो के पक्षकारो एवं आरोपियो को बकायदा कोर्ट नोटिस पुलिस के माध्यम से भिजवाये गये थे जिसके चलते शनिवार के दिन इन सभी न्यायालयों मेला लगा हुआ हुआ था. हजारो की संख्या में लोगो की भीड़ न्याय को खोजती यहाँ पर पहँुची जिसे सुबह से शाम तक रूकने के बाद आपसी राजीनामें का कागज ही नहीं मिला बल्कि अपेक्षित न्याय एवं मुआवजा भी मिला. बैतूल जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभिनंदन जैन के कार्यकाल में जिले में उनके नाम के अनुरूप कार्य संपादित होने से जिले के दो हजार एक सौ तेरसठ मामलो का आपसी सुलह पर समाधान होने के साथ - साथ एक करोड़ , सतरह लाख रूपये से भी अधिक की राशी भी मुआवजे के रूप में मिलेगी. जिले में पहली बार मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर के दिशा निर्देश एवं जिला एवं तहसील न्यायालयो की साझा पहल पर दहेज प्रताडऩा - भरण पोषण दावा प्रकरण - वैवाहिक प्रकरणो - मोटर दुर्घटना दावा प्रकरणो - समरी प्रकरण - लड़ाई - झगड़ो के छोटे - मोटे अपराधिक प्रकरण - चेक बाउंस के मामले - राजस्व अधिनियम - विद्युत अधिनियम - वन अधिनियम - उप पंजीयक एवं जिला पंजीयक के दर्ज मामलो में दोनो पक्षो को एक साथ बुलावा भेज कर उनके बीच सुलह का प्रयास हजारो लोगो के लिए किसी तीज त्यौहार से कम नहीं था. इस दिन घर से न्याय की आशा के साथ आये हजारो लोगो के बीच यदि दो हजार से अधिक लोगो को अब आने वाले कल में कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ेगें साथ ही ऐसे लोगो को वकीलो के एवं न्यायालयो के सामने घंटो खड़ा नहीं रहना पड़ेगा. ऐसे लोगो को न्याय तो मिला साथ ही न्याय के प्रति उम्मीद भी जगी कि उन्हे देर ही सही लेकिन न्याय तो मिला. ऐसे प्रकरणो में दो पक्षो के बीच पीसते चले आ रहे गवाहो एवं साक्ष्यो सबूतो को भी बंद पड़े ताबूतों से मामले के निपटते ही सदा - सदा के लिए मुक्ति मिल गई. जिले में आदिवासी - पिछड़े - दलित - पीडि़त - शोषित - प्रताडि़त समाज के लोगो की भीड़ न्याय के लिए सबसे अधिक संख्या में आकर आपसी सुलहनामें के कागज के साथ मतभेद एवं मनभेद को भी सदा - सदा के लिए भूला कर एक दुसरे से गले मिल कर सारे गले - शिकवो को भूला कर एक नई जिदंगी की शुरूआत की कामना के साथ अपने - अपने घरो को लौटी. बैतूल जिले में लोक अदालतो के माध्यम से इस बार दो पक्षो के अधिवक्ताओं को भी जोडऩे का अभिनव प्रयास किया गया. कहना नहीं चाहिये लेकिन इस सच्चाई से कोई भी मुंह नही चुरा सकता कि अकसर कोर्ट - कचहरी का चक्कर लगाने वाला पक्षकार - आरोपी तथा गवाह वकीलो एवं बिचौलियो की कमाई का माध्यम रहता है. मामला यदि जल्दी सुलझ गया तो फीस - कमीशन के मारे जाने के चक्कर में लोग जान बुझ कर भी मामलो को पेडिंग रखते है ताकि सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी अधिक समय तक जीवित रह सके. नीजी स्वार्थ एवं मुंछ की लड़ाई के चक्कर में भी अकसर कई मामले आपसी सुलह से सुलझ सकते है लेकिन कहीं न कहीं किसी न किसी आदमी का इगो उसे ऐसा करने से रोक - टोक देता है. उसके ऐसा करने से वह स्वंय भी कोर्ट कचहरी तथा वकीलो के चक्कर लगाता है तथा दुसरो को भी चक्कर लगवाने के लिए बाध्य करता है. न्यायालयो में ऐसे हजारो प्रकरण आज भी पेडिंग पड़े है जिसमें आरोपी को मिलने वाली सजा से अधिक साल उसके कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में बीत चुके है. जिन मामलो में तीन से एक साल की सजा है उन मामलो को दस - दस साल से विचाराधीण रहना अपने आप में विचारणीय तथ्य है पर कोर्ट - कचहरी के मामलो में किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी न्यायालय की अवमानना का कारण एवं कारक बनती है इसलिए लोग गांधी जी के तीन बंदरो के रूप में स्वंय को ढाल रखे है. लोक अदालतो के बहाने न्यायालयो में दर्ज प्रकरणो के बोझ से स्वंय न्यायालय भी मुक्त हुई है. लोक अदालतो में ऐसे मामलो के निपटारे से दोनो पक्षो के बीच बरसो से चवली आ रही कड़वाहट के साथ साथ कई ऐसे सुखद क्षण भी देखने को मिले है जिससे लोगो के घर - परिवार भी बसे है. पति - पत्नि के बीच आई छोटी सी कड़वाहट का दंश भोग रहे दोनो के परिजनो के साथ - साथ रिश्तेदार एवं पड़ौसी तक को इन मामलो के सुलह हो जाने के बाद चैन की सांस लेने का मौका मिला है. वैवाहिक रिश्तो में आई दरार को भी लोक अदालतो ने पाटने का अद्धितीय कार्य किया है. ऐसे युवा दम्पति जो कि जवानी से पौढ़ आयु तक कोर्ट - कचहरी के चक्कर काटते चले आ रहे थे उनके बीच भी आपसी रजामंदी ने उनके नये जीवन की शुरूआत की है. इस बात को कादपि अपने मान - सम्मान से वकालत के पेशे से जुड़े लोग न ले तो उसे कहना का औचित्य है. बात कुछ इस प्रकार की है कि यदि इस तरह की लोक अदालते यदि लगातार हर माह लगनी शुरू हो गई तो कई वकीलो के सामने रोजी - रोटी का संकट आ जायेगा क्योकि यदि एक माह में हजार या दो हजार मामले आपसी सुलह से सुलझ जाने लगे तो कोर्ट कचहरी के वकीलो को हर माह हजारो से लेकर लाखो की फीस से हाथ धोना पड़ सकता है. यदि लोक अदालते नहीं लगती है तो यही दो हजार पक्षकार हर महिने अपनी पेशी तारीखो पर आकर बस - टैक्सी से लेकर वकीलो एवं होटलो और पानठेले वालो का परिवार कैसे पाल पायेगे. इन सब से हट कर एक बाज यह भी कटु सत्य है कि जब तक मुर्ख जिंदा है तब - तक बुद्धिमान का घर खर्च चलता रहेगा. ऐसे में वकीलो की गिनती तो बुद्धिजीवी वर्ग में आती ही है. कुल मिलाकर एक बात तो तारीफे काबील है कि दोनो पक्षो के अलावा न्यायाधीश एवं वकीलो की साझा पहल पर एक नही दो नहीं बल्कि हजारो लोगो को समय के पूर्व न्याय मिला तथा कोर्ट कचहरी के चक्करो से लोगो को छुटकारा मिल जायेगा.
Tapati Ko SUna Rahe Ramkatha
अपने पितृवंश में जन्में भगवान श्रीराम की कथा सुनेगी मां सूर्यपुत्री ताप्ती
खेड़ी घाट पर लगा साप्ताहिक संतो का मेला
रामकिशोर पंवार
बैतूल। '' चित्रकुट के घाट पर भई संतन की भीड़ , तुलसीदास चंदन घीसे तिलक देत रघुवीर '' उक्त चौपाई बैतूल जिले के खेड़ी स्थित ताप्ती घाट पर कुछ इस प्रकार कहीं जा रही है कि ''मैया ताप्ती जी के तट पर लगी भक्तो की भीड़ , आवत - जावत साधु - संत बाटे ज्ञान की खीर'' बैतूल जिले के बैतूल - परतवाड़ा अंतराज्यीय मार्ग पर स्थित खेड़ी ताप्ती घाट पर पूरे एक सप्ताह भर नौ कुण्डी श्रीराम महायज्ञ - 108 मानस नवाहान पारायण व देश के मूर्धन्य विद्वानो - साधु संतो - रामकथा वाचको द्वारा सूर्यवंश के संस्थापक भगवान सूर्यनारायण की पुत्री एवं न्याय के देवता शनिदेव की बहन मां सूर्यपुत्री ताप्ती को अपने पितृकुल वंश में जन्मे मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की कथा सुनाई जायेगी। मां ताप्ती को अपने ही कुलवंश में जन्मे योद्धाओं की महाभारत एवं श्रीमद्भागवतकथा का भी ज्ञान परोसा जायेगा। मां ताप्ती जागृति मंच के अनुसार इस विशाल धर्मपरायण कार्यक्रम में 13 दिसम्बर 2010 को मां सूर्यपुत्री ताप्ती की सामुहिक महाआरती एवं उनका अभिषेक भी किया जायेगा। इस दौरान देश भर से श्रीराम सेवा समिति बैतूल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आये साधु - संतो को भी ताप्ती महिमा से अवगत कराने के लिए ताप्ती पुराण एवं अन्य साहित्य तथा तापती महिमा पर आधारित जानकारी देने का प्रयास मंच द्वारा किया जायेगा। मंच की ओर से मां ताप्ती की वंशावली एवं उनके पितृवंश की वंशावली भी वितरीत करने का कार्य मां ताप्ती को समर्पित उनके अन्यय भक्त लेखक एवं साहित्यकार संजय पठाडे शेष द्वारा लिखी मां ताप्ती महिमा को भी वितरीत किया जा रहा है। हिन्दी में लिखी गई ताप्ती पुराण एवं साहित्य भी बाटा जायेगा ताकि देश भर से आये साधु - संतो को ताप्ती महिमा के बारे में पता चल सके। मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार के अनुसार इस बात के भी प्रयास किये जा रहे है कि महा आरती के दिन पूरे तट पर ताप्ती भक्त ताप्ती महिमा को प्रदेश गान में शामिल करने की अपनी मांग को भी रखेगें ताकि मां सूर्यपुत्री ताप्ती प्रदेश का गौरव बन सके। इस श्री राम महायज्ञ में आयोजको के साथ मिल कर प्रयास किया जा रहा है कि एक दिन प्रवचन के दौरान मंच की ओर से मां ताप्ती की महिमा का भी ज्ञान लोगो को बांटा जा सके। इस पूरे साप्ताहिक कार्यक्रम में जगतगुरू रामानंदचार्य स्वामी रामस्वरूपचार्य जी कामदगिरी पीठाधीश्वर चित्रकुट , बहन सुश्री नीलम गायत्री देवी जी झांसी , श्री पंडित सतपाल जी महाराज झांसी , श्री पंडित रघुनाथ जी रामायणी करेली , पंडित आलोक मिश्रा कानपुर , श्री मुरलीदास जी महाराज येलकी , श्री प्रकाश जी वानखेडे चादुंर बाजार महाराष्ट्र ज्ञान रूपी अमृत बरसायेगें। मंच का संचालन पंडित अयोध्या प्रसाद तिवारी भोपाल एवं श्री शोभाराम जी शास्त्री पिपरिया करेगें। मानस परायणचार्य पंडित जगजीवन जी शुक्ल प्रयाग , यज्ञाचार्य पंडित केशवजी उपाध्याय रहटगांव हरदा , मंचाध्यक्ष पंडित पूज्य गुरूदेव रामचन्द्र जी मिश्र मिर्जापुर निवासी है। बुधवार 8 दिसम्बर 10 से शुभारम्भ इस साप्ताहिक कार्यक्रम का गुरूवार 16 दिसम्बर 10 को समापन होगा। इस कार्यक्रम के मुख्य सूत्रधार मानस महारथी पंडित निर्मल कुमार जी शुक्ल ''प्रयाग '' वाशिम महाराष्ट्र है।
बैतूल जिले में कार्यरम मां ताप्ती जागृति मंच ने पूरे देश भर से लोगो को एक बार सूर्यपुत्री मां ताप्ती के दर्शन एवं महिमा का ज्ञान पाने के लिए शिवधाम बारहलिंग , ताप्ती घाट खेडी, मां ताप्ती जन्मस्थली मुलताई , देवलघाट नांदा भीमपुर , पारसडोह आठनेर , कोलगांव घाट , अग्रितोडा बोरगांव , श्रवणतीर्थ , सहित अनेको स्थानो पर आने का आग्रह किया है।
खेड़ी घाट पर लगा साप्ताहिक संतो का मेला
रामकिशोर पंवार
बैतूल। '' चित्रकुट के घाट पर भई संतन की भीड़ , तुलसीदास चंदन घीसे तिलक देत रघुवीर '' उक्त चौपाई बैतूल जिले के खेड़ी स्थित ताप्ती घाट पर कुछ इस प्रकार कहीं जा रही है कि ''मैया ताप्ती जी के तट पर लगी भक्तो की भीड़ , आवत - जावत साधु - संत बाटे ज्ञान की खीर'' बैतूल जिले के बैतूल - परतवाड़ा अंतराज्यीय मार्ग पर स्थित खेड़ी ताप्ती घाट पर पूरे एक सप्ताह भर नौ कुण्डी श्रीराम महायज्ञ - 108 मानस नवाहान पारायण व देश के मूर्धन्य विद्वानो - साधु संतो - रामकथा वाचको द्वारा सूर्यवंश के संस्थापक भगवान सूर्यनारायण की पुत्री एवं न्याय के देवता शनिदेव की बहन मां सूर्यपुत्री ताप्ती को अपने पितृकुल वंश में जन्मे मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की कथा सुनाई जायेगी। मां ताप्ती को अपने ही कुलवंश में जन्मे योद्धाओं की महाभारत एवं श्रीमद्भागवतकथा का भी ज्ञान परोसा जायेगा। मां ताप्ती जागृति मंच के अनुसार इस विशाल धर्मपरायण कार्यक्रम में 13 दिसम्बर 2010 को मां सूर्यपुत्री ताप्ती की सामुहिक महाआरती एवं उनका अभिषेक भी किया जायेगा। इस दौरान देश भर से श्रीराम सेवा समिति बैतूल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आये साधु - संतो को भी ताप्ती महिमा से अवगत कराने के लिए ताप्ती पुराण एवं अन्य साहित्य तथा तापती महिमा पर आधारित जानकारी देने का प्रयास मंच द्वारा किया जायेगा। मंच की ओर से मां ताप्ती की वंशावली एवं उनके पितृवंश की वंशावली भी वितरीत करने का कार्य मां ताप्ती को समर्पित उनके अन्यय भक्त लेखक एवं साहित्यकार संजय पठाडे शेष द्वारा लिखी मां ताप्ती महिमा को भी वितरीत किया जा रहा है। हिन्दी में लिखी गई ताप्ती पुराण एवं साहित्य भी बाटा जायेगा ताकि देश भर से आये साधु - संतो को ताप्ती महिमा के बारे में पता चल सके। मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार के अनुसार इस बात के भी प्रयास किये जा रहे है कि महा आरती के दिन पूरे तट पर ताप्ती भक्त ताप्ती महिमा को प्रदेश गान में शामिल करने की अपनी मांग को भी रखेगें ताकि मां सूर्यपुत्री ताप्ती प्रदेश का गौरव बन सके। इस श्री राम महायज्ञ में आयोजको के साथ मिल कर प्रयास किया जा रहा है कि एक दिन प्रवचन के दौरान मंच की ओर से मां ताप्ती की महिमा का भी ज्ञान लोगो को बांटा जा सके। इस पूरे साप्ताहिक कार्यक्रम में जगतगुरू रामानंदचार्य स्वामी रामस्वरूपचार्य जी कामदगिरी पीठाधीश्वर चित्रकुट , बहन सुश्री नीलम गायत्री देवी जी झांसी , श्री पंडित सतपाल जी महाराज झांसी , श्री पंडित रघुनाथ जी रामायणी करेली , पंडित आलोक मिश्रा कानपुर , श्री मुरलीदास जी महाराज येलकी , श्री प्रकाश जी वानखेडे चादुंर बाजार महाराष्ट्र ज्ञान रूपी अमृत बरसायेगें। मंच का संचालन पंडित अयोध्या प्रसाद तिवारी भोपाल एवं श्री शोभाराम जी शास्त्री पिपरिया करेगें। मानस परायणचार्य पंडित जगजीवन जी शुक्ल प्रयाग , यज्ञाचार्य पंडित केशवजी उपाध्याय रहटगांव हरदा , मंचाध्यक्ष पंडित पूज्य गुरूदेव रामचन्द्र जी मिश्र मिर्जापुर निवासी है। बुधवार 8 दिसम्बर 10 से शुभारम्भ इस साप्ताहिक कार्यक्रम का गुरूवार 16 दिसम्बर 10 को समापन होगा। इस कार्यक्रम के मुख्य सूत्रधार मानस महारथी पंडित निर्मल कुमार जी शुक्ल ''प्रयाग '' वाशिम महाराष्ट्र है।
बैतूल जिले में कार्यरम मां ताप्ती जागृति मंच ने पूरे देश भर से लोगो को एक बार सूर्यपुत्री मां ताप्ती के दर्शन एवं महिमा का ज्ञान पाने के लिए शिवधाम बारहलिंग , ताप्ती घाट खेडी, मां ताप्ती जन्मस्थली मुलताई , देवलघाट नांदा भीमपुर , पारसडोह आठनेर , कोलगांव घाट , अग्रितोडा बोरगांव , श्रवणतीर्थ , सहित अनेको स्थानो पर आने का आग्रह किया है।
Garibo Ka Aapman
गरीबो के मेले के बहाने गरीबी और गरीबो का मजाक उडाना और
जिनके कल पैरो पर गिडगिडाये थे आज उन्ही से पैर पड़वाना कहां का न्याय ....?
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला''
''माटे कहे कुम्हार से तू क्यों रौंधे मोहे , एक दिन ऐसा आयेगा मैं रोंधूगीं तोहे......!'' उक्त दोहा मैने शायद मैं बचपन में पढ़ा था। कबीरदास की उक्त पंक्तियां माटी के दर्द को बयंा करती है लेकिन माटी की चेतावनी भी किसी से छुप नहीं है। इस समय पूरे जिले में गरीब मेला चर्चा का विषय बना रहा है। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो से गरीबो को बैतूल जिला मुख्यालय पर बुलवा कर उनसे कुछ साल पहले पड़वाये पैरो एवं हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने का सही बदला बैतूल जिले के काग्रेंसी और भाजपाई विधायको एवं जिले के इतिहास की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे तथा प्रभारी मंत्री सरताज सिंह ने लेकर बता दिया कि ''प्रजातंत्र में वोट बैंक का जिसे मालिक कहा जाता है वह देखो सरकारी सुविधाओं के लिए पैरो पर हाथ जोड़ कर उनके पैरो पर गिरता है......!'' कड़ाके की ठंड में टे्रक्टर ट्रालियो में भेड़ बकरियों की तरह ठुंस - ठुंस कर लाये गये अधनंगे - भूखे गरीबो का और उनकी गरीबी का खुले आसमान के नीचे जिस ढंग से मजाक उड़ाया गया वह अपने आप से प्रजातंत्र के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है। 12 लाख मतदाता बाहुल्य बैतूल जिले के 20 हजार से अधिक गरीबो को राशन कार्ड से लेकर रोजगार पंजीयन - वृद्धा पेशंन - विकलांग पेशंन - डीजल पम्प सहित जरूरत की वस्तुओं के लिए भीखारियों की तरह लाइल में घंटो खड़े रहने को विवश होना पड़ा। शिवराज के सूराज - स्वराज - रामराज्य में गरीबो को हितग्राही प्रमाण पत्रो को देने के लिए मंचो पर बुलवाया गया तो उनसे पैर पड़वाने में आदिवासी समाज की बेटी - बहू - भाभी - ननद - जेठानी - देवरानी - ननद का दंभ भरने वाली श्रीमति ज्योति धुर्वे को भी थोड़ी सी हिचक नहीं हुई कारण कुछ भी हो लेकिन उसे तो यह बताना भी जरूरी था कि कल तक भले ही जमाना के पैरो के नीचे थी लेकिन आज तो जमाना मेरे पैरो के नीचे है...... ! ऐसा नहीं कि अकेली सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे ही ऐसा कर रही थी उसके साथ मंच पर खड़ी श्रीमति गीता उइके भी पैर पर लोगो को गिरता देख अपने चेहरे की मुस्कराहट को रोक नहीं पा रही थी। यकीन नहीं आता तो सीटी केबल - एनज्वाय केबल - सिम्स न्यूज और देश - प्रदेश के नामी - गिरामी न्यूज चैनलो पर दिखाये गये समाचारो के फूटेज - वीडियो क्लीप्स देख कर हकीगत को जान सकते है। यदि फिर भी यकीन न हो तो सरकारी चैनल दूरदर्शन के फूटेज भी देखना न भूले। बैतूल जिले के 12 लाख मतदाता जिसे लोकतंत्र का मालिक कहा जाता है उसका देश के इतिहास में पहली बार मेले के रूप में अपमान किया जाना सबसे शर्मनाक त्रासदी है। बैतूल जिले की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे भी इस तरह के मेले और गरीबो को बैतूल बुलवाने के सवाल पर सवाल उठा चुकी है लेकिन एक अकेली बेचारी करे भी तो क्या क्योकि चारो ओर तो वह सब कुछ हो रहा है जिसे देख कर घृणा और तिस्कार महसुस होने के बाद गांधी जी के तीन बंदरो की तरह ही बने रहना मजबुरी है.......! मैं गरीब मेले के एक दिन पहले शाहपुर तहसील के कुछ गांवो में गया जहां पर मैने दर्जनो आदिवासियों एवं दलित तथा पिछडे ग्रामिणो से मेले के बारे में पुछा तो उनका जवाब था कि ''पंचायत में सचिव और सरपंच ही नहीं मिलता तो मेले में जाने को कहां से मिलेगा.....!'' बात भी सोलह आने सच है कि जिस गांव में सरपंच - सचिव से महिनो मुलाकात नहीं होती वे आखिर पूरे गांव को शादी का या बैतूल ले जाने का न्यौता देने लेगे तो 558 ग्राम पंचायतो के लाखो लोगो को लाने और ले जाने के लिए जिले के टे्रक्टर ट्राली - बसे - जीपे - ट्रक तक कम पड़ जायेगें। इन लोगो बैतूल के बीस पुलिस ग्राऊण्ड भी कम पड़ जायेगे। दो चार लाख लोगो को खाना खिलाने के लिए सरपंच एवं सचिवो को स्वर्गीय राजीव गांधी के 15 पैसे में से भी अन्टी मारनी पडेगी और फिर गांव पहुंचेगा एक धेला भी नही.......? गांव में लोगो को जब जाबकार्ड रहने पर या राशन कार्ड रहने पर जब कुछ भी नहीं मिलता तब उनको बैतूल बुलवा कर उनकी एक दिन की मजदूरी भी छिन लेने में बैतूल के नौकरशाहो ने कोई कसर नही छोड़ी। इस गरीब मेले के बहाने बैतूल के मुखिया का कथित एक पंथ दो काज का हल भी निकल गया। कोई माने या न माने लेकिन कलैक्टर साहब ने सोच रखा है कि जितनी भाजपा सरकार की बैण्ड बजाई जाये बजाने में कोई कसर न छोड़ी जाये क्योकि गरीब मेले के दिन उन्हे पता था कि ज्योति टाकीज में बैण्ड - बाजा - बराती फिल्म लगी है। कलैक्टर साहब की कुछ दिन की नौकरी बची है इसलिए साहब भी दलित समाज की ओर से आमला की टिकट पर चुनाव लडऩे का सपना देख रहे है......! साहब इसलिए फुलिया हो या फिर फुलवा सभी को यह बताने में कोई कसर नही छोड़ रहे है कि ''भाजपा सरकार में उन्हे न्याय नहीं मिलने वाला .....!'' और यही कारण भी हो सकता है कि साहब का स्टेनो बार - बार ऐसे लोगो को भगा कर - दुत्कार कर ज़हर पीने को विवश कर रहा हो......? कहने के मतलब तो कुछ भी निकाले जा सकते है लेकिन चैतराम भैया को अपनी सीट को अगले चुनाव में खोना पड़ सकता है और उनके हाल भी शिवप्रसाद भैया और सज्जन सिंह जैसे हो सकते है....! अब ऐसा है कि साहब यदि बैतूल से चुनाव लडेगें तो चैतराम की टिकट कटेगी और नहीं कटी तो कांग्रेस से किसी की कटेगी....! वैसे चर्चा है कि साहब का बैतूल में रहने का पूरा मन है क्योकि उन्हे सुनील कल्लू - मल्लू - बल्लू - लल्लू जैसे चमचे - चाटुकार - दल्ले और भड़वे कहां मिलेगें। बैतूल जिला मुख्यालय पर गरीब मेले के आयोजन पर भाजपा के नेताओं का सूर भी सरकारी आयोजन के खिलाफ ही निकला और कुछ मायने में नेताओं को भी लगा होगा कि ''साली इतनी भीड़ तो हमारे किसी भी कार्यक्रम में नहीं आई लेकिन नेताजी को कौन बताये कि गले तक गबन - घोटाले - भ्रष्ट्राचार में फंसे उनके सरपंच और सचिव भी किसी राजा के टू जी घोटाले से कम नहीं है। किसी ने खुब कहां है कि ''मरता क्या नहीं करता .....!'' बैतूल जिले की पचास से अधिक पंचायतो के सचिवो के खिलाफ अभी तक लाखो रूपयो की वसूली के आदेश होने के बाद भी सरपंच - सचिव के चेहरो पर सिकन तक नहीं है क्योकि उन्हे मालूम है कि ''सैयां तो बहुंत कमावत है और ससुरी सरकारी डायन खाये जात है......!'' पैसे में वह तकात होती है कि पैसे के सामने ''मुन्नी भी बदनाम है.....!'' बैतूल जिले में गरीब मेले में बैतूल जिले के सभी विधायक और सासंद - नौकरशाह तक ने बैतूल जिले के दूर - दराज से आई ग्रामिण जनता जिसमें माता - बहने और पिता और भाई समान वे लोग थे जिनके कुछ ही दिन पहले ही पैरो पर गिर कर उनसे उनका बहुमूल्य वोट मांग कर उनके दुख - दर्द को बाटने का वचन दिया था। कल गांव के झोपड़े में उनके पैरो की धूल से स्वंय का राजतिलक करने वाले सत्ता के मद में मदमस्त हुये राजा अपनी ही प्रजा के नौकर बनने के बजाय मालिक बन कर उनसे पैरो पर गिड़गिडाने में स्वंय को किसी प्रकार की लज्जा या शर्म तक महसुस नहीं कर सके। मुझे एक प्राचिन कथा याद आती है जब राजा नल को भी अपनी रानी दमयंती के तिस्कार के लिए जंगलो में खाक छाननी पड़ी। राजा की ससुराल विदर्भ थी जिसका एक अंग बैतूल भी रहा है। इसी बैतूल जिले में मासोद के पास वह तालाब उस एतिहासिक एवं पौराणिक कथा का साक्षी है जहां पर राजा नल को तालाब की भूनी हुई मछली से भी हाथ धोना पड़ा था। लोकतंत्र एवं प्रजातंत्र के इन महारथियों में से अधिकांश पर शनि देव की वक्र दृष्टि चल रही है। श्रीमति ज्योति धुर्वे को भले ही लग रहा हो कि उनका फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला कथित पेडिंग पड़ा हो लेकिन अभी क्लीन चीट नहीं मिली है। ठीक इसी प्रकार से चौथिया का पारधी कांड कई लोगो को छत्तीस लाख की बिल्डिंग तक ले जायेगा। ऐसे में उस प्रजातंत्र के मालिक से सार्वजनिक रूप से पैर पड़वाने का आनंद भी आनंद कुरूील साहब के रिटायरमेंट की तरह करीब है। बैतूल जिले की ग्रामिण जनता का 1 अप्रेल 10 से लेकर 30 सितम्बर 10 तक एपीएल का राशन का गेंहू का गबन करने वालो में से मात्र यदि चार भी जेल जाने का टिकट कटवा चुके तो चार सौ लोगो को संभल जाना चाहिये लेकिन चार से चालिस भी नहीं सुधरे तो जिले का भगवान ही मालिक.....! वैसे जिले की जनता श्रद्धा एवं विश्वास तथा प्रेम से जिसे भगवान कहती थी वह भी बद्किस्मती से इस दुनियां से चलां गया ऐसे में शनि की कुदृष्टि से तो अब कोई नहीं बचाने वाला क्योकि जब बैतूल के जनप्रतिनिधि अपनी मां समान पुण्य सलिला मां ताप्ती के मान - सम्मान का ख्याल नहीं रख सके तो फिर शनि महाराज से उन्हे किसी भी प्रकार की दया की उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। कुल मिलाकर बात घुम फिर कर वहीं आ जाती है कि ''जो भरा नहीं है भाव से , जिसे बहती नहीं रसधार है, वह हद्रय नहीं पत्थर है जिसमें अपनी मां के प्रति मान - सम्मान की रक्षा का अभाव है......!'' बैतूल जिले में गरीब मेला को लेकर प्रशासन जितने भी दावे कर ले लेकिन यह बात कटू सत्य है कि गरीब मेले में गांव के अमीर आये लक्जरी गाडिय़ो में और गांव के गरीब लाये गये टे्रक्टर एवं ट्रालियों में भेड़ - बकिरयों की तरह ठुंस - ठुंस कर .....! ऐसा भलां क्यों न हो जब बैतूल जिले की सासंद के पास जाबकार्ड हो और गांव के गरीब के पास न तो जाब है और न कार्ड .....! जब गांव के जमीरदार के पास बीपीएल और अत्योंदय के राशन कार्ड हो और भूखे - अधनंगे गरीब के पास सफेद एपीएल कार्ड हो तब गांव का अमीर यदि लक्जरी गाडिय़ो में आकर बैतूल की महंगी होटलो में दावते और मामाजी की दुकान मे ज्वेलर्स खरीदता हो तो गांव के सम्पन्न एपीएल कार्ड धारको को टे्रक्टर ट्राली में आने और अपने साथ लाई रोटी - बेसन - चटनी के साथ आसमान के नीचे खाना खाने के बाद किसी तरह की ज़लन महसुस नहीं करनी चाहिये। बैतूल जिले के गांवो में बसने वाली ग्रामिण जनता को यदि मंगलवार की जनसुनवाई में जब न्याय नहीं मिल पाता है तब गरीब मेले में क्या खाक न्याय मिला होगा। बैतूल जिले के कुछ समाचार पत्रो के पत्रकारो ने साहस दिखा कर गरीब मेले को लेकर प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियो को आइना दिखाने का जरूर काम किया लेकिन तारीफ तो तब होती जब वे इस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र देश के मालिक को नौकरशाहो एवं जनप्रतिनिधियों के पैरो पर गिरता हुआ और गिड़गिड़ाता हुआ फोटो छाप कर इस लेख की भावना को अपनी अभिव्यक्ति का परिचय देते। बरहाल चलते - चलते यही कहना चाहता हँ कि ''राजा भोज को भी गंगू तेली के घर पर नौकरी करनी पड़ी थी........!''
जिनके कल पैरो पर गिडगिडाये थे आज उन्ही से पैर पड़वाना कहां का न्याय ....?
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला''
''माटे कहे कुम्हार से तू क्यों रौंधे मोहे , एक दिन ऐसा आयेगा मैं रोंधूगीं तोहे......!'' उक्त दोहा मैने शायद मैं बचपन में पढ़ा था। कबीरदास की उक्त पंक्तियां माटी के दर्द को बयंा करती है लेकिन माटी की चेतावनी भी किसी से छुप नहीं है। इस समय पूरे जिले में गरीब मेला चर्चा का विषय बना रहा है। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो से गरीबो को बैतूल जिला मुख्यालय पर बुलवा कर उनसे कुछ साल पहले पड़वाये पैरो एवं हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने का सही बदला बैतूल जिले के काग्रेंसी और भाजपाई विधायको एवं जिले के इतिहास की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे तथा प्रभारी मंत्री सरताज सिंह ने लेकर बता दिया कि ''प्रजातंत्र में वोट बैंक का जिसे मालिक कहा जाता है वह देखो सरकारी सुविधाओं के लिए पैरो पर हाथ जोड़ कर उनके पैरो पर गिरता है......!'' कड़ाके की ठंड में टे्रक्टर ट्रालियो में भेड़ बकरियों की तरह ठुंस - ठुंस कर लाये गये अधनंगे - भूखे गरीबो का और उनकी गरीबी का खुले आसमान के नीचे जिस ढंग से मजाक उड़ाया गया वह अपने आप से प्रजातंत्र के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है। 12 लाख मतदाता बाहुल्य बैतूल जिले के 20 हजार से अधिक गरीबो को राशन कार्ड से लेकर रोजगार पंजीयन - वृद्धा पेशंन - विकलांग पेशंन - डीजल पम्प सहित जरूरत की वस्तुओं के लिए भीखारियों की तरह लाइल में घंटो खड़े रहने को विवश होना पड़ा। शिवराज के सूराज - स्वराज - रामराज्य में गरीबो को हितग्राही प्रमाण पत्रो को देने के लिए मंचो पर बुलवाया गया तो उनसे पैर पड़वाने में आदिवासी समाज की बेटी - बहू - भाभी - ननद - जेठानी - देवरानी - ननद का दंभ भरने वाली श्रीमति ज्योति धुर्वे को भी थोड़ी सी हिचक नहीं हुई कारण कुछ भी हो लेकिन उसे तो यह बताना भी जरूरी था कि कल तक भले ही जमाना के पैरो के नीचे थी लेकिन आज तो जमाना मेरे पैरो के नीचे है...... ! ऐसा नहीं कि अकेली सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे ही ऐसा कर रही थी उसके साथ मंच पर खड़ी श्रीमति गीता उइके भी पैर पर लोगो को गिरता देख अपने चेहरे की मुस्कराहट को रोक नहीं पा रही थी। यकीन नहीं आता तो सीटी केबल - एनज्वाय केबल - सिम्स न्यूज और देश - प्रदेश के नामी - गिरामी न्यूज चैनलो पर दिखाये गये समाचारो के फूटेज - वीडियो क्लीप्स देख कर हकीगत को जान सकते है। यदि फिर भी यकीन न हो तो सरकारी चैनल दूरदर्शन के फूटेज भी देखना न भूले। बैतूल जिले के 12 लाख मतदाता जिसे लोकतंत्र का मालिक कहा जाता है उसका देश के इतिहास में पहली बार मेले के रूप में अपमान किया जाना सबसे शर्मनाक त्रासदी है। बैतूल जिले की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे भी इस तरह के मेले और गरीबो को बैतूल बुलवाने के सवाल पर सवाल उठा चुकी है लेकिन एक अकेली बेचारी करे भी तो क्या क्योकि चारो ओर तो वह सब कुछ हो रहा है जिसे देख कर घृणा और तिस्कार महसुस होने के बाद गांधी जी के तीन बंदरो की तरह ही बने रहना मजबुरी है.......! मैं गरीब मेले के एक दिन पहले शाहपुर तहसील के कुछ गांवो में गया जहां पर मैने दर्जनो आदिवासियों एवं दलित तथा पिछडे ग्रामिणो से मेले के बारे में पुछा तो उनका जवाब था कि ''पंचायत में सचिव और सरपंच ही नहीं मिलता तो मेले में जाने को कहां से मिलेगा.....!'' बात भी सोलह आने सच है कि जिस गांव में सरपंच - सचिव से महिनो मुलाकात नहीं होती वे आखिर पूरे गांव को शादी का या बैतूल ले जाने का न्यौता देने लेगे तो 558 ग्राम पंचायतो के लाखो लोगो को लाने और ले जाने के लिए जिले के टे्रक्टर ट्राली - बसे - जीपे - ट्रक तक कम पड़ जायेगें। इन लोगो बैतूल के बीस पुलिस ग्राऊण्ड भी कम पड़ जायेगे। दो चार लाख लोगो को खाना खिलाने के लिए सरपंच एवं सचिवो को स्वर्गीय राजीव गांधी के 15 पैसे में से भी अन्टी मारनी पडेगी और फिर गांव पहुंचेगा एक धेला भी नही.......? गांव में लोगो को जब जाबकार्ड रहने पर या राशन कार्ड रहने पर जब कुछ भी नहीं मिलता तब उनको बैतूल बुलवा कर उनकी एक दिन की मजदूरी भी छिन लेने में बैतूल के नौकरशाहो ने कोई कसर नही छोड़ी। इस गरीब मेले के बहाने बैतूल के मुखिया का कथित एक पंथ दो काज का हल भी निकल गया। कोई माने या न माने लेकिन कलैक्टर साहब ने सोच रखा है कि जितनी भाजपा सरकार की बैण्ड बजाई जाये बजाने में कोई कसर न छोड़ी जाये क्योकि गरीब मेले के दिन उन्हे पता था कि ज्योति टाकीज में बैण्ड - बाजा - बराती फिल्म लगी है। कलैक्टर साहब की कुछ दिन की नौकरी बची है इसलिए साहब भी दलित समाज की ओर से आमला की टिकट पर चुनाव लडऩे का सपना देख रहे है......! साहब इसलिए फुलिया हो या फिर फुलवा सभी को यह बताने में कोई कसर नही छोड़ रहे है कि ''भाजपा सरकार में उन्हे न्याय नहीं मिलने वाला .....!'' और यही कारण भी हो सकता है कि साहब का स्टेनो बार - बार ऐसे लोगो को भगा कर - दुत्कार कर ज़हर पीने को विवश कर रहा हो......? कहने के मतलब तो कुछ भी निकाले जा सकते है लेकिन चैतराम भैया को अपनी सीट को अगले चुनाव में खोना पड़ सकता है और उनके हाल भी शिवप्रसाद भैया और सज्जन सिंह जैसे हो सकते है....! अब ऐसा है कि साहब यदि बैतूल से चुनाव लडेगें तो चैतराम की टिकट कटेगी और नहीं कटी तो कांग्रेस से किसी की कटेगी....! वैसे चर्चा है कि साहब का बैतूल में रहने का पूरा मन है क्योकि उन्हे सुनील कल्लू - मल्लू - बल्लू - लल्लू जैसे चमचे - चाटुकार - दल्ले और भड़वे कहां मिलेगें। बैतूल जिला मुख्यालय पर गरीब मेले के आयोजन पर भाजपा के नेताओं का सूर भी सरकारी आयोजन के खिलाफ ही निकला और कुछ मायने में नेताओं को भी लगा होगा कि ''साली इतनी भीड़ तो हमारे किसी भी कार्यक्रम में नहीं आई लेकिन नेताजी को कौन बताये कि गले तक गबन - घोटाले - भ्रष्ट्राचार में फंसे उनके सरपंच और सचिव भी किसी राजा के टू जी घोटाले से कम नहीं है। किसी ने खुब कहां है कि ''मरता क्या नहीं करता .....!'' बैतूल जिले की पचास से अधिक पंचायतो के सचिवो के खिलाफ अभी तक लाखो रूपयो की वसूली के आदेश होने के बाद भी सरपंच - सचिव के चेहरो पर सिकन तक नहीं है क्योकि उन्हे मालूम है कि ''सैयां तो बहुंत कमावत है और ससुरी सरकारी डायन खाये जात है......!'' पैसे में वह तकात होती है कि पैसे के सामने ''मुन्नी भी बदनाम है.....!'' बैतूल जिले में गरीब मेले में बैतूल जिले के सभी विधायक और सासंद - नौकरशाह तक ने बैतूल जिले के दूर - दराज से आई ग्रामिण जनता जिसमें माता - बहने और पिता और भाई समान वे लोग थे जिनके कुछ ही दिन पहले ही पैरो पर गिर कर उनसे उनका बहुमूल्य वोट मांग कर उनके दुख - दर्द को बाटने का वचन दिया था। कल गांव के झोपड़े में उनके पैरो की धूल से स्वंय का राजतिलक करने वाले सत्ता के मद में मदमस्त हुये राजा अपनी ही प्रजा के नौकर बनने के बजाय मालिक बन कर उनसे पैरो पर गिड़गिडाने में स्वंय को किसी प्रकार की लज्जा या शर्म तक महसुस नहीं कर सके। मुझे एक प्राचिन कथा याद आती है जब राजा नल को भी अपनी रानी दमयंती के तिस्कार के लिए जंगलो में खाक छाननी पड़ी। राजा की ससुराल विदर्भ थी जिसका एक अंग बैतूल भी रहा है। इसी बैतूल जिले में मासोद के पास वह तालाब उस एतिहासिक एवं पौराणिक कथा का साक्षी है जहां पर राजा नल को तालाब की भूनी हुई मछली से भी हाथ धोना पड़ा था। लोकतंत्र एवं प्रजातंत्र के इन महारथियों में से अधिकांश पर शनि देव की वक्र दृष्टि चल रही है। श्रीमति ज्योति धुर्वे को भले ही लग रहा हो कि उनका फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला कथित पेडिंग पड़ा हो लेकिन अभी क्लीन चीट नहीं मिली है। ठीक इसी प्रकार से चौथिया का पारधी कांड कई लोगो को छत्तीस लाख की बिल्डिंग तक ले जायेगा। ऐसे में उस प्रजातंत्र के मालिक से सार्वजनिक रूप से पैर पड़वाने का आनंद भी आनंद कुरूील साहब के रिटायरमेंट की तरह करीब है। बैतूल जिले की ग्रामिण जनता का 1 अप्रेल 10 से लेकर 30 सितम्बर 10 तक एपीएल का राशन का गेंहू का गबन करने वालो में से मात्र यदि चार भी जेल जाने का टिकट कटवा चुके तो चार सौ लोगो को संभल जाना चाहिये लेकिन चार से चालिस भी नहीं सुधरे तो जिले का भगवान ही मालिक.....! वैसे जिले की जनता श्रद्धा एवं विश्वास तथा प्रेम से जिसे भगवान कहती थी वह भी बद्किस्मती से इस दुनियां से चलां गया ऐसे में शनि की कुदृष्टि से तो अब कोई नहीं बचाने वाला क्योकि जब बैतूल के जनप्रतिनिधि अपनी मां समान पुण्य सलिला मां ताप्ती के मान - सम्मान का ख्याल नहीं रख सके तो फिर शनि महाराज से उन्हे किसी भी प्रकार की दया की उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। कुल मिलाकर बात घुम फिर कर वहीं आ जाती है कि ''जो भरा नहीं है भाव से , जिसे बहती नहीं रसधार है, वह हद्रय नहीं पत्थर है जिसमें अपनी मां के प्रति मान - सम्मान की रक्षा का अभाव है......!'' बैतूल जिले में गरीब मेला को लेकर प्रशासन जितने भी दावे कर ले लेकिन यह बात कटू सत्य है कि गरीब मेले में गांव के अमीर आये लक्जरी गाडिय़ो में और गांव के गरीब लाये गये टे्रक्टर एवं ट्रालियों में भेड़ - बकिरयों की तरह ठुंस - ठुंस कर .....! ऐसा भलां क्यों न हो जब बैतूल जिले की सासंद के पास जाबकार्ड हो और गांव के गरीब के पास न तो जाब है और न कार्ड .....! जब गांव के जमीरदार के पास बीपीएल और अत्योंदय के राशन कार्ड हो और भूखे - अधनंगे गरीब के पास सफेद एपीएल कार्ड हो तब गांव का अमीर यदि लक्जरी गाडिय़ो में आकर बैतूल की महंगी होटलो में दावते और मामाजी की दुकान मे ज्वेलर्स खरीदता हो तो गांव के सम्पन्न एपीएल कार्ड धारको को टे्रक्टर ट्राली में आने और अपने साथ लाई रोटी - बेसन - चटनी के साथ आसमान के नीचे खाना खाने के बाद किसी तरह की ज़लन महसुस नहीं करनी चाहिये। बैतूल जिले के गांवो में बसने वाली ग्रामिण जनता को यदि मंगलवार की जनसुनवाई में जब न्याय नहीं मिल पाता है तब गरीब मेले में क्या खाक न्याय मिला होगा। बैतूल जिले के कुछ समाचार पत्रो के पत्रकारो ने साहस दिखा कर गरीब मेले को लेकर प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियो को आइना दिखाने का जरूर काम किया लेकिन तारीफ तो तब होती जब वे इस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र देश के मालिक को नौकरशाहो एवं जनप्रतिनिधियों के पैरो पर गिरता हुआ और गिड़गिड़ाता हुआ फोटो छाप कर इस लेख की भावना को अपनी अभिव्यक्ति का परिचय देते। बरहाल चलते - चलते यही कहना चाहता हँ कि ''राजा भोज को भी गंगू तेली के घर पर नौकरी करनी पड़ी थी........!''
Monday, December 6, 2010
शिवराज •ा ताज न बहा ले जाये मां ताप्ती
अभिव्यक्ति •ा परिचाय• लेख
''•शिवराज •ा ताज न बहा ले जाये हीं मां ताप्ती ......!ÓÓ
लेख :- राम•िशोर पंवार ''रोंढावाला ÓÓ
मध्यप्रदेश •ी सर•ार ने सूर्यपुत्री माँ ताप्ती •ी महिमा •ी जो उपेक्षा उस•े राज•ीय गान में •ी है वह •हीं शिवराज •े ताज •ो ही न बहा ले जाये. मां ताप्ती •ा इस तरह मध्यप्रदेश सर•ार द्धारा •िया गया अपमान •हीं शिवराज •ो भारी न पड़ जाये इस बात •ी चेतावनी भले •ोई न दे ले•िन बैतूल जिले में सूर्यपुत्री मां ताप्ती •े •्रोध •ो जानने वाले लोगो •ो अच्छी तरह से मालूम है •ि चंदोरा बांध •ो दो बार बहा चु•ी , भूसावल •ा भूसा नि•ाल चु•ी , सूरत •ो बद्सुरत •र चु•ी शनिदेव •ी छोटी बहना मां सूर्यपुत्री ताप्ती •ा इस तरह अनादर •रने वाले मध्यप्रदेश सर•ार •े जनसम्पर्• विभाग •े ए• आला अफसर •ी दिल्ली में ए• महिला द्धारा •ी गई चप्पल पिटाई इस बात •ी शुरूआत हो गई है •ि अब शनिदेव भी अपनी बहना •ा अपमान •रने वालो •ो दण्ड देने से नहीं चु•ने वाले. अब बात चाहे लक्ष्मी•ांत - प्यारेलाल •ी जुगल जोड़ी हो या •ोई और ........ उसे हर हाल में शनि•ोप से •ोई नहीं बचा स•ता. पौराणि• इतिहास इस बात •ा साक्षी है •ि मां सूर्यपुत्री •ा महात्म चुराने •ा , आदिगंगा •हलाने वाली सूर्यपुत्री •ी महिमा •ो विलोपित •रने •ा अपराध •रने वाले देवऋषि नारद •ो पूरे बदन में •ोढ़ फूट •र नि•लली थी. •ोढ़ी हो गये थे नारद •ो ताप्ती •े •ुण्ड में ही उस •ोढ़ से मुक्ति मिली थी ले•िन इस•े लिए उसे बरसो त• नारद टे•ड़ी पर तप •रना पड़ा था. मुलताई में आज भी नारद •ुण्ड और नारद टे•ड़ी मौजूद है. शिवराज और उस•ी सर•ार ने वहीं अपराध •िया है जिस•े अनुसार उन्होने डा•ुओं •ी शरण स्थली चबंल •ो प्रदेश गान में शामिल •िया है . प्रदेश •ी सर•ार ने उस पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री •ी महिमा •ो नजर अंदाज •िया है जहाँ पर रामयुग में भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने अपने पितरो •ा तर्पण •िया था तथा भगवान विश्व•र्मा •ी मदद से ताप्ती •े पत्थरो पर बारह शिवलिंगो •ो ऊ•ेरा था जिस•ी भगवान श्री राम माता जान•ी एवं अनुज लक्ष्मण ने पूजा अर्चना •ी थी. द्धापर युग में सप्तऋषि र्दुवासा ने भारगढ़ •े पास स्थित देवलघाट •े समीप बह रही मां सूर्यपुत्री ताप्ती नदी •े तट पर स्थित उस पत्थर •े नीचे से स्वर्ग •ा रास्ता खोज नि•ाला था. र्दुवासा ऋषि अपने साथ •ई देवी देवताओं •ो भी साथ ले गये थे. आज भी धरती पर •हीं स्वर्ग •ा रास्ता है तो वह मां सूर्यपुत्री ताप्ती •े सिख्खो •े धर्मगुरू गुरू नान• देव ने तप •िया था. सौ से अधि• श्रवणतीर्थो •ो तथा हजारो शिवलिंगो •ो अपने पवान जल से उप•ृत •रने वाली इस •लयुग •े ए•मात्र दिखने वाले भगवान सूर्यनारायण •ी पुत्री मां ताप्ती •े नाम से परहेज रखने वाली मध्यप्रदेश •ी सर•ार •े मुखिया •े शिवराज सिंह चौहान •े राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गढक़री •े परिवार •े संत गैरीबदास महाराज ने बरसो मां ताप्ती •े तट पर तपस्या •र जीवित समाधी ली थी. आज भी उस समाधी •े समीप पत्थर शिला पर अं•ित है •ि नागपुर •े गढक़री परिवार ने में 19 वी शताब्दी में आ•र समाधी स्थल निमार्ण •रवाया था. मुलताई से सूरत त• 701 •िलोमीटर लम्बी इस पश्चिम मुखी देवपुत्री नदी •े पावन जल में •ई महात्माओं •ो मुक्ति मिली है. महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे भी ताप्ती नदी •े महात्म •े चलते यहां पर अ•र रू•े एवं स्नान - ध्यान •र चले गये .
आज मध्यप्रदेश •ी शिवराज सर•ार मध्यप्रदेश बनाओं यात्रा •र रही है. वह •िस प्रदेश •े हिस्से •ो बनाने आ रही है. बैतूल से गुदगांव त• और आठनेर से बैतूल त• दो बार सूर्यपुत्री मां ताप्ती •ी शिवराज सहित उस•ी पूरी सर•ार •ो उल्टी परि•्रमा लगानी पड़ रही है. इतिहास इस बात •ा गवाह और साक्षी है •ि जिसने भी •िसी भी देवी - देवता •ी उल्टी परि•्रमा लगाई है उस•ा हर •ाम उल्टा और पुल्टा ही हुआ है. भले ही शिवराज हेली•ाप्टर से आ रहे हो ले•िन उन्हे •हीं न •हीं ताप्ती नदी •े ऊपर से हवाई यात्रा •र•े ही गुदगांव जाना पड़ेगा और फिर उल्टे पांव गुदगांव से आठनेर और •ोलगांव जाते समय •ार से ताप्ती •े पुल से गुजरना होगा. सीधी परि•्रमा •ोलगांव से गुदगांव तथा गुदगांव से ताप्ती •ेरपानी होते हु ये बैतूल यदि आना होता तो वह अधुरी परि•्रमा ही सहीं ले•िन सीधी •हलाई जाती. वैसे भी मध्यप्रदेश में आज त• •ोई भी गैर •ांग्रेसी सर•ार पूरे दस साल त• राज नहीं •र स•ी है इसलिए भी इसे मां ताप्ती •ा •ोप •हे या शिवराज सर•ार •े पाप आखिर ए• न ए• दिन समय से पहले ही उसे स्वर्गीय मु•ेश चन्द्र माथुर •े गीतो •ो गुनगुना पड़ेगा •ि ''जाने चले जाते है •हां , दुनिया से जाने वाले ......!ÓÓ इस बात •ो चलो ए• धड़ी मान भी लिया जाये •ि गीत •े रचियता शिवराज सिंह •े अभिन्न मित्र जन सम्पर्• आयुक्त मनोज श्रीवास्तव •ो पता नहीं था •ि प्रदेश में ताप्ती भी नाम •ी •ोई नदी है क्यो•ि दोनो मित्रो •ा बचपना शायद मां रेवा •े आंचल में गुजरा था. जब उन्हे इस गान में हुई भूल •ो सुधारने •े लिए मैने स्वंय उन•े नीजी मोबाइल पर बातचीत •ी तो वे भडक़ उठे. इंदौर •लैक्टर रहे मनोज श्रीवास्तव आपे से बाहर हो गये और वे उल्टे ही उपदेश देने लगे ले•िन उन्हे यह •ौन बताये •ि भैया जैसी आप•ो प्रिय है मां नर्मदा उसी तरह हमें भी जान से प्यारी है मां ताप्ती जो •ि हमारे जिले •ी आन - बान - शान - पहचान है. इस जिले •ा सहीं सपूत अपनी मां •ा अपमान बर्दास्त •भी नहीं •रेगा. मैं तो उसी दिन से यह सोच में पड़ गया था •ि प्रदेश सर•ार •ो इस बात •े बार - बार चेताने •े बाद भी उसने अपनी भूल नहीं सुधारी और वह मध्यप्रदेश •े गान में ताप्ती •े महात्म •ो भूलने •ी क्षमा मांग •र उसे प्रदेश गान में शामिल •रेगी. आज इस बात •ा अफसोस है •ि जिले •े पांच विधाय•ो और ए• सासंद भी प्रदेश सर•ार से अपने ही जिले •ी पावन नदी मां ताप्ती •ो मान - सम्मान नहीं दिला स•े. •हने •ो तो अपने आप•ो सच्चा जनप्रतिनिधि •हते है ले•िन इनसे बड़ा झुठा और •ौन होगा जो •ि ताप्ती •ो प्रदेश गान में शामिल न •रने पर सर•ार •ो ए• पत्र त• नहीं डाल स•े. आज मां ताप्ती जागृति मंच ने बीड़ा इस बात •ा उठाया है •ि वह मान - सम्मान •ी लड़ाई •ो हमेशा लड़ता रहेगा. जिले •ी ए• मात्र महिला सासंद और पूरे जिले •ी भगवा रंग में रंगीन भाजपा त• सूर्यपुत्री मां ताप्ती •े अपमान •ो आज भी बर्दास्त •िये हुये है. यदि जिले •े •िसी भी जनप्रतिनिधि में यदि थोड़ी बहुंत शर्म - हया होती तो वह इस मामले •ो ले•र शिवराज सर•ार •ो घेर स•ता था ले•िन जो लोग अपनी ही पार्टी •ी सर•ार में अपने ही मुखिया से यह त• नहीं •ह स•ते •ि आप•े प्रदेश गान में मां ताप्ती •े नाम •ा उल्लेख त• नहीं है . ऐसे लोगो •े बारे में देश •े जाने - माने शायर स्वर्गीय दुष्यंत •ुमार •हते है •ि ''यहां तो गुंगे बहरे बसते है , खुदा जाने •ब जलसा हुआ होगा......!ÓÓ
''•शिवराज •ा ताज न बहा ले जाये हीं मां ताप्ती ......!ÓÓ
लेख :- राम•िशोर पंवार ''रोंढावाला ÓÓ
मध्यप्रदेश •ी सर•ार ने सूर्यपुत्री माँ ताप्ती •ी महिमा •ी जो उपेक्षा उस•े राज•ीय गान में •ी है वह •हीं शिवराज •े ताज •ो ही न बहा ले जाये. मां ताप्ती •ा इस तरह मध्यप्रदेश सर•ार द्धारा •िया गया अपमान •हीं शिवराज •ो भारी न पड़ जाये इस बात •ी चेतावनी भले •ोई न दे ले•िन बैतूल जिले में सूर्यपुत्री मां ताप्ती •े •्रोध •ो जानने वाले लोगो •ो अच्छी तरह से मालूम है •ि चंदोरा बांध •ो दो बार बहा चु•ी , भूसावल •ा भूसा नि•ाल चु•ी , सूरत •ो बद्सुरत •र चु•ी शनिदेव •ी छोटी बहना मां सूर्यपुत्री ताप्ती •ा इस तरह अनादर •रने वाले मध्यप्रदेश सर•ार •े जनसम्पर्• विभाग •े ए• आला अफसर •ी दिल्ली में ए• महिला द्धारा •ी गई चप्पल पिटाई इस बात •ी शुरूआत हो गई है •ि अब शनिदेव भी अपनी बहना •ा अपमान •रने वालो •ो दण्ड देने से नहीं चु•ने वाले. अब बात चाहे लक्ष्मी•ांत - प्यारेलाल •ी जुगल जोड़ी हो या •ोई और ........ उसे हर हाल में शनि•ोप से •ोई नहीं बचा स•ता. पौराणि• इतिहास इस बात •ा साक्षी है •ि मां सूर्यपुत्री •ा महात्म चुराने •ा , आदिगंगा •हलाने वाली सूर्यपुत्री •ी महिमा •ो विलोपित •रने •ा अपराध •रने वाले देवऋषि नारद •ो पूरे बदन में •ोढ़ फूट •र नि•लली थी. •ोढ़ी हो गये थे नारद •ो ताप्ती •े •ुण्ड में ही उस •ोढ़ से मुक्ति मिली थी ले•िन इस•े लिए उसे बरसो त• नारद टे•ड़ी पर तप •रना पड़ा था. मुलताई में आज भी नारद •ुण्ड और नारद टे•ड़ी मौजूद है. शिवराज और उस•ी सर•ार ने वहीं अपराध •िया है जिस•े अनुसार उन्होने डा•ुओं •ी शरण स्थली चबंल •ो प्रदेश गान में शामिल •िया है . प्रदेश •ी सर•ार ने उस पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री •ी महिमा •ो नजर अंदाज •िया है जहाँ पर रामयुग में भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने अपने पितरो •ा तर्पण •िया था तथा भगवान विश्व•र्मा •ी मदद से ताप्ती •े पत्थरो पर बारह शिवलिंगो •ो ऊ•ेरा था जिस•ी भगवान श्री राम माता जान•ी एवं अनुज लक्ष्मण ने पूजा अर्चना •ी थी. द्धापर युग में सप्तऋषि र्दुवासा ने भारगढ़ •े पास स्थित देवलघाट •े समीप बह रही मां सूर्यपुत्री ताप्ती नदी •े तट पर स्थित उस पत्थर •े नीचे से स्वर्ग •ा रास्ता खोज नि•ाला था. र्दुवासा ऋषि अपने साथ •ई देवी देवताओं •ो भी साथ ले गये थे. आज भी धरती पर •हीं स्वर्ग •ा रास्ता है तो वह मां सूर्यपुत्री ताप्ती •े सिख्खो •े धर्मगुरू गुरू नान• देव ने तप •िया था. सौ से अधि• श्रवणतीर्थो •ो तथा हजारो शिवलिंगो •ो अपने पवान जल से उप•ृत •रने वाली इस •लयुग •े ए•मात्र दिखने वाले भगवान सूर्यनारायण •ी पुत्री मां ताप्ती •े नाम से परहेज रखने वाली मध्यप्रदेश •ी सर•ार •े मुखिया •े शिवराज सिंह चौहान •े राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गढक़री •े परिवार •े संत गैरीबदास महाराज ने बरसो मां ताप्ती •े तट पर तपस्या •र जीवित समाधी ली थी. आज भी उस समाधी •े समीप पत्थर शिला पर अं•ित है •ि नागपुर •े गढक़री परिवार ने में 19 वी शताब्दी में आ•र समाधी स्थल निमार्ण •रवाया था. मुलताई से सूरत त• 701 •िलोमीटर लम्बी इस पश्चिम मुखी देवपुत्री नदी •े पावन जल में •ई महात्माओं •ो मुक्ति मिली है. महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे भी ताप्ती नदी •े महात्म •े चलते यहां पर अ•र रू•े एवं स्नान - ध्यान •र चले गये .
आज मध्यप्रदेश •ी शिवराज सर•ार मध्यप्रदेश बनाओं यात्रा •र रही है. वह •िस प्रदेश •े हिस्से •ो बनाने आ रही है. बैतूल से गुदगांव त• और आठनेर से बैतूल त• दो बार सूर्यपुत्री मां ताप्ती •ी शिवराज सहित उस•ी पूरी सर•ार •ो उल्टी परि•्रमा लगानी पड़ रही है. इतिहास इस बात •ा गवाह और साक्षी है •ि जिसने भी •िसी भी देवी - देवता •ी उल्टी परि•्रमा लगाई है उस•ा हर •ाम उल्टा और पुल्टा ही हुआ है. भले ही शिवराज हेली•ाप्टर से आ रहे हो ले•िन उन्हे •हीं न •हीं ताप्ती नदी •े ऊपर से हवाई यात्रा •र•े ही गुदगांव जाना पड़ेगा और फिर उल्टे पांव गुदगांव से आठनेर और •ोलगांव जाते समय •ार से ताप्ती •े पुल से गुजरना होगा. सीधी परि•्रमा •ोलगांव से गुदगांव तथा गुदगांव से ताप्ती •ेरपानी होते हु ये बैतूल यदि आना होता तो वह अधुरी परि•्रमा ही सहीं ले•िन सीधी •हलाई जाती. वैसे भी मध्यप्रदेश में आज त• •ोई भी गैर •ांग्रेसी सर•ार पूरे दस साल त• राज नहीं •र स•ी है इसलिए भी इसे मां ताप्ती •ा •ोप •हे या शिवराज सर•ार •े पाप आखिर ए• न ए• दिन समय से पहले ही उसे स्वर्गीय मु•ेश चन्द्र माथुर •े गीतो •ो गुनगुना पड़ेगा •ि ''जाने चले जाते है •हां , दुनिया से जाने वाले ......!ÓÓ इस बात •ो चलो ए• धड़ी मान भी लिया जाये •ि गीत •े रचियता शिवराज सिंह •े अभिन्न मित्र जन सम्पर्• आयुक्त मनोज श्रीवास्तव •ो पता नहीं था •ि प्रदेश में ताप्ती भी नाम •ी •ोई नदी है क्यो•ि दोनो मित्रो •ा बचपना शायद मां रेवा •े आंचल में गुजरा था. जब उन्हे इस गान में हुई भूल •ो सुधारने •े लिए मैने स्वंय उन•े नीजी मोबाइल पर बातचीत •ी तो वे भडक़ उठे. इंदौर •लैक्टर रहे मनोज श्रीवास्तव आपे से बाहर हो गये और वे उल्टे ही उपदेश देने लगे ले•िन उन्हे यह •ौन बताये •ि भैया जैसी आप•ो प्रिय है मां नर्मदा उसी तरह हमें भी जान से प्यारी है मां ताप्ती जो •ि हमारे जिले •ी आन - बान - शान - पहचान है. इस जिले •ा सहीं सपूत अपनी मां •ा अपमान बर्दास्त •भी नहीं •रेगा. मैं तो उसी दिन से यह सोच में पड़ गया था •ि प्रदेश सर•ार •ो इस बात •े बार - बार चेताने •े बाद भी उसने अपनी भूल नहीं सुधारी और वह मध्यप्रदेश •े गान में ताप्ती •े महात्म •ो भूलने •ी क्षमा मांग •र उसे प्रदेश गान में शामिल •रेगी. आज इस बात •ा अफसोस है •ि जिले •े पांच विधाय•ो और ए• सासंद भी प्रदेश सर•ार से अपने ही जिले •ी पावन नदी मां ताप्ती •ो मान - सम्मान नहीं दिला स•े. •हने •ो तो अपने आप•ो सच्चा जनप्रतिनिधि •हते है ले•िन इनसे बड़ा झुठा और •ौन होगा जो •ि ताप्ती •ो प्रदेश गान में शामिल न •रने पर सर•ार •ो ए• पत्र त• नहीं डाल स•े. आज मां ताप्ती जागृति मंच ने बीड़ा इस बात •ा उठाया है •ि वह मान - सम्मान •ी लड़ाई •ो हमेशा लड़ता रहेगा. जिले •ी ए• मात्र महिला सासंद और पूरे जिले •ी भगवा रंग में रंगीन भाजपा त• सूर्यपुत्री मां ताप्ती •े अपमान •ो आज भी बर्दास्त •िये हुये है. यदि जिले •े •िसी भी जनप्रतिनिधि में यदि थोड़ी बहुंत शर्म - हया होती तो वह इस मामले •ो ले•र शिवराज सर•ार •ो घेर स•ता था ले•िन जो लोग अपनी ही पार्टी •ी सर•ार में अपने ही मुखिया से यह त• नहीं •ह स•ते •ि आप•े प्रदेश गान में मां ताप्ती •े नाम •ा उल्लेख त• नहीं है . ऐसे लोगो •े बारे में देश •े जाने - माने शायर स्वर्गीय दुष्यंत •ुमार •हते है •ि ''यहां तो गुंगे बहरे बसते है , खुदा जाने •ब जलसा हुआ होगा......!ÓÓ
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