Friday, August 24, 2018

पूरी दुनिया का एक मात्र गांव जहां 96 साल स्वप्रेरित है परिवार नियोजन

पूरी दुनिया का एक मात्र गांव जहां 96 साल स्वप्रेरित है परिवार नियोजन
 कांग्रेसी होने का या फिर बा के सिद्घांत पर अटल रहने का मिला उसे श्राप 











                               सचित्र आलेख :- रामकिशोर दयाराम पंवार रोंढ़ावाला
 आने वाले 2022 को जब पूरा देश आजादी के 75 साल की हिरक जयंती मनाएगा , वही एक गांव ऐसा भी होगा जो स्वप्रेरणा से कायम परिवार नियोजन के सिद्धांतो की सौ साल वीं गोल्डन जुबली मनाएगा। इस गांव में आजादी के आन्दोलन के समय 1922 में हरिजन उद्धार कार्यक्रम के तहत देश भर में अपनी यात्रा पर निकली राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी श्रीमति कस्तुरबा गांधी बा आई थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दुसरे प्रांतीय अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी ने 1922 में पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे पारसडोह के समीप बसे गांव धनोरा में नारा दिया था छोटा - परिवार सुखी परिवार , उसी नारे को स्वर्गीय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री ने इमरजेंसी के समय दिया था। उनका नसबंदी का कार्यक्रम उनकी सत्ता के परिवर्तन की वजह बना लेकिन वह अपने सिद्धांत पर कायम रही। आज परिवार नियोजन लक्ष्यपूर्ति का माध्यम लोगो के लालच का कारण जरूर बन गया है लेकिन बीते 96 साल से पूरा गांव बिना किसी लालच के हम दो - हमारे दो , छोटा परिवार - सुखी परिवार के सिद्धांत पर अटल है। जिसका नतीजा यह निकला कि आज भी गांव टूट - टूट कर बिखर रहा है, गांव के टूटने और नए गांवो के बनने की प्रक्रिया ने गांव को अपने सिद्धांत से एक इंच भी हिला नही सकी। 1922 से आज तक गांव की आबादी दो हजार के आकड़े को पार नहीं कर सकी और उस गांव से टूट कर बने गांवो की आबादी चार गुणा बढ़ चुकी है।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुचर्चित कार्यक्रम में इस आदर्श गांव को शामिल करने की मांग पर जिले के लक्ष्यपूर्ति के माध्यम से शाबासी पाने के चक्कर में स्वास्थ विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने गांव की तस्वीर को अलग ढंग से पेश करके गांव के उज्जवल भविष्य पर कालिख पोतने का काम किया है। धनोरा गांव नसबंदी और नशाबंदी जैसे कार्यक्रम में स्वंय के योगदान पर लगाए गए पलीता से बेहद खफा है। मध्यप्रदेश - महाराष्ट्र की सीमा से लगे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के इस गांव को परिवार नियोजन का सिद्धांत उसके गले की फास बनता नज़र आ रहा है। इस गांव तक आने वाली सारी सरकारी योजनायें गांव तक आने से पहले ही गांव की आबादी का आकड़ा देख कर गांव तक पहुंचने से पहले मिस्टर इंडिया की तरह गायब हो जाती है। गांव के विकास को चिढ़ाती सरकारी योजना के हाल - बेहाल पर अब इस गांव को शायद इस बात पर जरूर अफसोस होने लगा है कि कहीं उसने छोटा - परिवार के चक्कर में जनसंख्या की लगाम को रोक कर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी तो नही मार ली! गांव के सुरते हाल पर स्वर्गीय दुष्यंत कुमार की ए पंक्तियां यहां तक आते . आते सुख जाती है सभी नदियां , हमें मालूम है पानी कहां ठहरा होगा ! सटीक बैठती है। आज के दौर में धनोरा गांव की युवा पीढ़ी को अपने गांव का परिवार नियोजन अपनाने का सिद्घांत बेहद अफसोस जनक लग रहा होगा क्योकि गांव तक आने वाली विकास की गंगा जनसंख्या के आकड़े के चलते बीच रास्ते से कन्नी काट लेती है। कांग्रेसी होने का तथा स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी का कटट्र समर्थक रहने वाले इस अद्घितीय गांव में 96 साल से कोई आबादी का आकड़ा दो हजार से ऊपर नही गया। धनोरा मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के आठनेर तहसील में स्थित एक मध्यम आकार का गांव है जिसमें कुल 367 परिवार रहते हैं। धनोरा गांव में 1687 की आबादी है, जिनमें से 884 पुरुष हैं जबकि 803 जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार महिलाएं हैं। धनोरा गांव में 0-6 वर्ष की उम्र के बच्चों की आबादी 182 है जो गांव की कुल आबादी का 10.79 प्रतिशत है। धनोरा गांव का औसत लिंग अनुपात 908 है जो मध्य प्रदेश राज्य औसत 931 से कम है। जनगणना के अनुसार धनोरा के लिए बाल लिंग अनुपात 916 है, मध्य प्रदेश की औसत 918 से कम है। मध्य प्रदेश की तुलना में धनोरा गांव में उच्च साक्षरता दर है। 2011 में, धनोरा गांव की साक्षरता दर मध्य प्रदेश के 69.32 प्रतिशत की की तुलना में 80.80 प्रतिशत थी। धनोरा में पुरुष साक्षरता 89.86 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता दर 70.81 प्रतिशत थी। आज सरकारी विकास योजनाओं के लिए निर्धारित जनसंख्या लक्ष्यपूर्ति गांव के विकास के लिए बाधक बनी है जिसके पीछे की त्रासदी गांव की जनसंख्या का कम होना बताया जाता रहा है। आज शत प्रतिशत परिवार नियोजन को स्व प्रेरणा से अपनाने वाले इस गांव विकास के दावों का यहां कोई वजूद नहीं है। इस गांव के रहवासी रघु जीवने का कहना है कि हमे तो कांग्रेसी होने की सजा मिल रही है। गांव के जिस चबुतरे पर स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी ने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्व.पंडित रविशंकर शुक्ल,स्व. सेठ गोविंद दास जी , स्व.जमना लाल बजाज ,राष्टकवि स्व. माखन लाल चतुर्वेदी , स्व.सुभद्रा कुमारी चौहान एवं स्व.पंडित सुन्दरलाल एवं बा मौजूद थी आज वही गांव की व्यथा पर सिसक रहा है। गांव की चौपाल को गांव के लोगो ने अपनी प्रेरणा का एक स्तंभ का रूप तो दे दिया लेकिन गांव में विकास के नाम पर कुछ ऐसा नहीं है जिसे बताया जा सके। शर्मसार कर देने वाली बात तो यह सामने आई जिसके अनुसार जिले की आठनेर जनपद की धनोरा ग्राम पंचायत में कस्तुरबा गांधी बालिका छात्रावास खुलना था वह पड़ौस की मांडवी ग्राम पंचायत पहुंच गया और गांव को मिल गया एक बालक छात्रावास जिसमें अकसर सुविधाओं का अभाव झलकता है। गांव के छात्रावास के सामने बने चबुतरे पर कांग्रेस प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए बा गांव के लोगो के बीच बा ने एक नारा दिया था छोटा परिवार सुखी परिवार , आज वही नारा गांव के विकास में पाचर का काम कर रहा है। हरिजन उद्घार के लिए निकली स्वर्गीय श्रीमति कस्तूरबा गांधी के ग्राम धनोरा में आने को आज पूरे 96 साल हो गये भी इस गांव के लोग अपनी नेत्री कस्तूरबा गांधी की सीख पर कायम है। इसी गांव के स्वर्गीय भिलाजी धोटे उस समय इस गांव के प्रमुख कांग्रेसी कार्यकत्र्ता थे जिनके जिम्मे कांग्रेस का पूरा आन्दोलन संचालित था। स्वर्गीय धोटे की तीसरी पीढ़ी में उनके सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे को आज भी इस बात का गर्व है कि उसके घर के सामने मैदान में कांग्रेस का वह सम्मेलन हुआ था तथा बा उनके घर आई थी। हैदराबाद के चिकित्सालय में अपनी सर्जरी करवाने गये भदया जी धोटे की पत्नि श्रीमति यमुना बाई बताती है कि उसके सास- ससुर ने कांग्रेस के सिपाही के रूप में देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी की जीवन संगनी श्रीमति कस्तूरबा गांधी के साथ भाग लिया था। सबसे पहले भिलाजी धोटे ने परिवार नियोजन का सिद्घांत अपनाया उसके बाद उसके बेटे भदया जी धोटे तथा अब उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी की सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे छोटा परिवार सुखी परिवार को अपना चुकी है। श्रीमति कल्पना धोटे अपनी सास के समक्ष गर्व के साथ कहती है कि आज हमारा पूरा गांव कांग्रेस धनोरा के नाम से जाना जाता है जिसके पीछे सिर्फ  एक ही कारण है कि मध्यप्रदेश के इस निर्मल गांव में आज भी छुआछुत का चक्कर नहीं है तथा अनपढ़ अशिक्षित गवार लोग से लेकर एम ए , एल एल बी पास लोग भी आजाद भारत के लगभग 72 साल के बाद भी छोटा परिवार सुखी परिवार के मूल सिद्घांत से रत्ती भर भी भटका नहीं है। आजाद भारत देश के इतिहास में सिर्फ  सरकारी मिशनरी कागजो पर ही देश की अरबो -खरबो जनता को हम दो - हमारे दो , छोटा परिवार - सुखी परिवार का संदेश गांव -गांव तक पहँुचाने के लिए अरबो - खरबो की राशी को पानी की तरह बहा चुकी है। इतना सब करने के बाद भी कोई भी केन्द्र एवं राज्यो में शासन करने वाली किसी भी दल की सरकार ताल ठोक कर ऐसा गांव को जनता के सामने उदाहरण के लिए प्रस्तुत नहीं कर सके जो कि कांग्रेस धनोरा के समकक्ष हो।      बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 35 किमी दूर स्थित ग्राम कांग्रेस धनोरा के रहवासी लडक़ा हो या लडक़ी दोनो को एक समान समझते चले आ रहे हैं। इस गांव के 80 वर्षिय मायवाड़ दादा कहते है कि जब मैं पैदा भी नही हुआ था तब मेरे इस गांव में बा आई थी। मेरे पिताजी ने उनके दर्शन किये । मायवाड़ दादा अपने घर के चरखे को लाकर दिखाते है और कहते है कि मेरे माता . पिता को बा ने ही चरखा चला कर सूत बनाने की सीख दी थी। आज जो भी कारण हो इस गांव के हर घर के उन स्कूल जाने को इच्छुक बच्चो के भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ है कि गांव में स्कूल में आज तक उच्च पाठ शाला ही नहीं खुल सकी है। गांव में कई परिवार ऐसे हैंए जिन्होंने एक लडक़ी होने पर या दो लडक़ी होने पर भी परिवार नियोजन को अपना लिया। इसी वजह से पिछले 72 वर्षो में इस गांव में कुल 712 लोगों की वृद्घि हुई है। जिला योजना एवं सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 1950 में ग्राम धनोरा की कुल आबादी 1118 थी, जो 96 साल बाद बढक़र 1757 हो गई। वहीं आसपास के गांवों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ग्राम कांग्रेस धनोरा के पास ही बसे गांव जावरा 1950  में जो थी आज वही आबादी दोगुनी हो गई। ग्राम जावरा की 1950 की कुल आबादी 1166 थी जो अब बढक़र 4332 हो चुकी है। समीप बसे ग्राम के ही ऐसे हालात है। जहां 1950 में आबादी 1001 थी जो बढक़र 5032 हो गई, जो लगभग तीन गुना है। धनोरा ग्राम के ग्रामीणों द्वारा परिवार नियोजन को अपना लेने के पीछे मानना है कि 1922 में कस्तूरबा गांधी ने ग्रामीणों को परिवार नियोजन के फायदे बताए और हमेशा परिवार नियोजन को अपनाने और उस पर अमल करने की अपील की थी। उस अपील समय से ही पूरे गांव पर बा का हुआ जबरदस्त असर आज भी देखने को मिलता है। स्वर्गीय कस्तूरबा गांधी के बाद कई नेता आए और चले गए लेकिन ग्रामीणों ने परिवार नियोजन वाली बात को गांठ बांध ली और तब से ही ग्रामीण परिवार नियोजन को अपनाते चले आ रहे। एक लडक़ी के बाद ही परिवार नियोजन को अपना लेने वाले गांव के जगदीश पंवार जो स्वंय स्वास्थ कर्मी है वे कहते है कि मेरी सिर्फ  एक ही लडक़ी है तो क्या हुआ जरूर मेरी लाड़ली एक दिन यह साबित कर देगी कि लडक़ा और लडक़ी में कोई अंतर नहीं होता है। गांव के विकास के बारे में वे भी मानते है कि कई सरकारी योजनाएं गांव में कम आबादी की वजह से नहीं आ पाई है। गांव के रहवासी बलवंत भैया कहते है कि परिवार नियोजन से परिवारों को मिलने वाले ग्रीन कार्ड भी वक्त पडऩे पर काम नहीं आते हैं ! कई बार चिकित्सालयों में ग्रीन कार्ड दिखाने पर डाक्टर इस कार्ड का कोई फायदा नहीं देते उल्टे इसे फेंक देने की सलाह देते है। ऐसे में परिवार नियोजित इस गांव को अन्य लाभ मिलना तो दूर की बात है। ग्राम कांग्रेस धनोरा में पिछले 96 वर्षो में मात्र 600 लोगों की वृद्घि होना और इतने ही समय में आसपास के गांवों में दो गूनी- तिगूनी वृद्घि होना यह साबित करती है कि ग्राम कांग्रेस धनोरा एक आदर्श और परिवार नियोजित गांव है। अधोसंरचना और तमाम मूलभूत सुविधाओं से जूझते हुए इस गांव ने परिवार नियोजन को अपनाकर एक मिसाल तो कायम कर ली। वहीं अपने आप को विकास से कोसो दूर कर लिया।  केन्द्र की कहे या राज्य की भाजपा शासित सरकार को कांग्रेस या राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी कस्तुरबा गांधी (बा)  के नाम एवं काम से एलर्जी है या फिर केन्द्र एवं राज्य सरकार के अफसर नही चाहते कि कांग्रेस या श्रीमति कस्तुरबा गांधी  बा का नाम एवं काम पूरी दुनिया में मिसाल - बेमिसाल बने। बैतूल जिले के क्रियाशील पत्रकार एवं माँ सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति के प्रदेश अध्यक्ष रामकिशोर पंवार ने बैतूल जिला कलैक्टर के माध्यम से जिले के एक गांव धनोरा (कांग्रेस धनोरा) का नाम परिवार नियोजन अपनाने के चलते प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रम में शामिल करवाने को लेकर की गई पहल पर बैतूल जिले में पोती गई कालिख का आरटीआई आवेदन में खुलासा हुआ है। प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात की स्वर्गीय कस्तुरबा पत्नि राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (बा) के बताए सिद्धांत पर चलने वाले गांव की आबादी वर्ष 2001 में इस गांव में पुरूषो की संख्या 839 तथा महिलाओं की संख्या 803 कुल जनसंख्या 1642 वही वह 2011 में पुरूषो की संख्या भी 884 तथा महिलाओ की संख्या 803 कुल जनसंख्या 1687 थी। वर्तमान में 950 पुरूष तथा 807 महिला कुल 1757 है। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की आठनेर जनपद की ग्राम पंचायत धनोरा के मूल ग्राम धनोरा ( जिसे कांग्रेस धनोरा के नाम से पुकारते है ) में कुल मकान 324 है तथा परिवारो की संख्या 371 है। धनोरा में कुल योग्य दपंत्ति 257 में  सरकारी रिकार्ड की माने तो 184 ने स्वत: परिवार नियोजन को अपनाया है।  इस गांव का नाम प्रधानमंत्री के कार्यक्रम मन की बात में शामिल करने के लिए श्री पंवार ने पीएमओ से लेकर बैतूल कलैक्टर तक से बीते 2 वर्षो से लगातार पत्राचार किया लेकिन गांव का नाम कांग्रेस धनोरा और गांव की प्रेरक के रूप में स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी का नाम आने की वजह से मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार एवं उसका सरकारी तंत्र इस गांव का नाम पीएमओ तक नही पहुंचने दिया। पीएमओ से लेकर कलैक्टर बैतूल तक को इस गांव के बारे में भ्रामक जानकारी दी जाते रही। आरटीआई एक्टीविस्ट एवं समाजसेवी श्री पंवार ने विभिन्न माध्यमो से प्राप्त संलग्र दस्तावेज के आधार पर जानकारी देते हुए बताया कि गांव के बारे में डाँ प्रदीप मोजेस जिला  मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने दिनांक 6 फरवरी 2016 को पत्र क्रमांक मीडिया / 2015-2016 /3235 एवं 36 /  2016 के अनुसार बैतूल कलैक्टर को जानकारी दी कि गांव धनोरा में 2 से लेकर 5 बच्चो पर आपरेशन करवाने वाले हितग्राही है इसलिए इस गांव का नाम पीएमओ की के कार्यक्रम मन की बात में शामिल किया जाना तथ्यहीन है। लेकिन रामकिशोर पंवार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जब सभी परिवार नियोजन अपनाने वाले दंपत्ति की जानकारी मांगी गई तो उसमें जो प्रमाण आए उसके अनुसार गांव में एक भी ऐसा परिवार नहीं मिला जिनकी 5 संताने थी । इसी तरह 4 बच्चो पर आपरेशन करवाने वालो की संख्या पहले 23 बताई गई लेकिन जब नामो की सूचि मांगी गई तो उसमें संख्या 4 बच्चो पर अटक गई। 4 बच्चो पर आपरेशन करवाने वालो के 5 लोगो की जानकारी दी जिसके बारे में जब मैने पता किया तो पता चला कि वे गांव के मूल रहवासी नही है। बाहर गांव से आकर बसे ऐसे 5 परिवारो को सूचिबद्ध किया गया। 3 बच्चो पर नसबंदी करवाने वालो की पूर्व में संख्या 52 बताई गई लेकिन जब नाम की जानकारी मांगी तो उक्त संख्या 12 हो गई। इसी तरह 2 बच्चो पर नसबंदी करवाने वालो की संख्या 104 बताई गई जो घट कर 43 रह गई। पूर्व में दी गई जानकारी में बताया गया कि 184 लोगो ने नसबंदी करवाई ऐसा बताया गया लेकिन जानकारी सूचि मांगने पर संख्या घट कर 60 हो गई। स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी बा के द्वारा प्रेरित इस गांव की जनसंख्या 1961 में 1410 थी जो वर्तमान में 1757 के लगभग है। मात्र 58 वर्षो में गंाव की जनसंख्या 277 बढ़ी है। 1922 से गांव धनोरा से टूट कर पुसली, धनोरी, जावरा , जैसे गांव  बने और इन गांवो की जन संख्या वर्तमान में 2 हजार से ऊपर 5 हजार तक हो चुकी है लेकिन धनोरा गांव 1922 से लेकर 2018 तक दो हजार के आकड़े को छूना तो दूर 18 सौ के आकड़े तक नहीं पहुंच सका है। गांव के बारे में जो महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए है उनके अनुसार धनोरा गांव में ऐसे लोगो की संख्या 19 है जिनके 1 भी बच्चा नहीं है। 1 बच्चे वाले 30 परिवार,  2 बच्चे वाले 14  परिवार तथा 3 बच्चे वाले 10 परिवार मिले। धनोरा गांव में कथित निरोध का उपयोग करने वाले 22 दपंत्ति बताए गए है। गांंव की जन्मदर 8.53 है। गांव में औसतन एक साल में बमुश्कील 15 बच्चे जन्म लेते है। बैतूल जिले के अधिकारियों ने सरकारी लक्ष्यपूर्ति के लिए स्वप्रेरित गांव को नसबंदी अपनाने वाला बता कर गांव के आदर्श को कालिख पोतने का काम किया है। दुनिया में धनोरा एक मात्र ऐसा गांव है जो 1922 से लेकर आज तक परिवार नियोजन के अपने फैसले पर अटल है जबकि गांव के अधिकांश लोग अब इस दुनियां में नहीं है जो बा की बातो को लेकर चल पड़े थे कि छोटा परिवार - सुखी परिवार , हम दो - हमारे दो ।   सूचना का अधिकार कानून के तहत प्राप्त एक अन्य जानकारी के अनुसार धनोरा के आसपास के गांव जो धनोरा के विभाजन के बाद बने है उनकी जनसंख्या इस प्रकार है। माडंवी 4,728 .सातनेर 3,922 पुसली 3,057 हिडली 2,900 जावरा 2,499 बाकुड 2,242 बोथी 2,126 मेंढा छिन्दवाड़ा 2,084 टेमनी 2,067 आष्टी 1,992 गारूगुड़ रैय्यत 1,802 धनोरा 1,687 सावंगी 1,626 अम्बाड़ा 1,544 पानबेहरा 1,524 देहगुड़ 1,522 धामोरी 1,487 वडाली 1,482 ठानी 809 बीजासनी 327 गुजरमाल 791बोरपानी 730 खैरवाड़ा 1,449 बेलकुण्ड 1,437 टेमुरनी 1,410  सातकुण्ड रैय्यत 1,346 काबला रैय्यत 1,279 अक्लवाड़ी 1,274 गुणखेड़ 1,173 मानी 1,150 धामोरी 1,150 कोयलारी रैय्यत 1,133  बोरपानी 730 पनडोल 729 है। श्री पंवार ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी को पत्र लिख कर उनसे अनुरोध किया है कि उन्हे बड़ी प्रसन्नता होगी यदि आप मेरे कहने पर या मेरे इस पत्र को अवलोकन करने के बाद यदि बिना किसी भेदभाव के इस गांव को अपने कार्यक्रम मन की बात में शामिल करते है। श्री पंवार ने बैतूल गजेटियर का उल्लेख करते हुए यह चौकान्ने वाली जानाकारी सामने लाई है जिसके अनुसार बैतूल जिले में 1958 में परिवार नियोजन एक कार्यक्रम के रूप में आया था जबकि यह गांव 1922 से ही परिवार नियोजन के सिद्धांत का पालन कर रहा है।  श्री पंवार ने इस संदर्भ में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को भी पत्र लिखा है जिसमें उनसे आग्रह किया है कि 1922 में कांग्रेस के प्रांतीय अधिवेशन में लिए गए संकल्प पर वचनबद्ध गांव धनोरा जिसकी पहचान कांग्रेस धनोरा के रूप में भी है उस गांव को लेकर एवं बा की प्रेरणा को पूरी दुनिया तक मिसाल के रूप में पेश करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्य योजना के साथ सामने आना चाहिए साथ ही देश के सशक्त विपक्ष के रूप में प्रधानमंत्री के समक्ष इस गांव को उनके कार्यक्रम मन की बात में शामिल करवाना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो निश्चीत तौर पर उस कांग्रेस की नींव की पत्थर कही जाने वाली गुजराती महिला स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी बा का मान - सम्मान पूरी दुनियां में बढ़ेगा साथ ही यह गांव दुनियां में स्वप्रेरित परिवार नियोजन अपनाने वाले आदर्श गांव के रूप में पहचान बना सकेगा।

Saturday, August 18, 2018

एक गांव में 96 साल से नही बढ़ी आबादी फिर भी मन की बात में जिक्र नही

मन की बात के लिए मनमर्जी की बात
एक गांव में 96 साल से नही बढ़ी आबादी फिर भी मन की बात में जिक्र नही
कांग्रेसी होने का या फिर बा के सिद्घांत पर अटल रहने का मिला उसे श्राप !
                                         सचित्र आलेख :- रामकिशोर दयाराम पंवार रोंढ़ावाला
1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दुसरे प्रांतीय अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी ने पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे पारसडोह के समीप बसे गांव धनोरा में नारा दिया था छोटा - परिवार सुखी परिवार , उसी नारे को स्वर्गीय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री ने इमरजेंसी के समय दिया था। उनका नसबंदी का कार्यक्रम उनकी सत्ता के परिवर्तन की वजह बना लेकिन वह अपने सिद्धांत पर कायम रही। आज परिवार नियोजन लक्ष्यपूर्ति का माध्यम लोगो के लालच का कारण जरूर बन गया है लेकिन बीते 96 साल से पूरा गांव बिना किसी लालच के हम दो - हमारे दो , छोटा परिवार - सुखी परिवार के सिद्धांत पर अटल है। जिसका नतीजा यह निकला कि आज भी गांव टूट - टूट कर बिखर रहा है, गांव के टूटने और नए गांवो के बनने की प्रक्रिया ने गांव को अपने सिद्धांत से एक इंच भी हिला नही सकी। 1922 से आज तक गांव की आबादी दो हजार के आकड़े को पार नहीं कर सकी और उस गांव से टूट कर बने गांवो की आबादी चार गुणा बढ़ चुकी है।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुचर्चित कार्यक्रम में इस आदर्श गांव को शामिल करने की मांग पर जिले के लक्ष्यपूर्ति के माध्यम से शाबासी पाने के चक्कर में स्वास्थ विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने गांव की तस्वीर को अलग ढंग से पेश करके गांव के उज्जवल भविष्य पर कालिख पोतने का काम किया है। धनोरा गांव नसबंदी और नशाबंदी जैसे कार्यक्रम में स्वंय के योगदान पर लगाए गए पलीता से बेहद खफा है। मध्यप्रदेश - महाराष्ट्र की सीमा से लगे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के इस गांव को परिवार नियोजन का सिद्धांत उसके गले की फास बनता नज़र आ रहा है। इस गांव तक आने वाली सारी सरकारी योजनायें गांव तक आने से पहले ही गांव की आबादी का आकड़ा देख कर गांव तक पहुंचने से पहले मिस्टर इंडिया की तरह गायब हो जाती है। गांव के विकास को चिढ़ाती सरकारी योजना के हाल - बेहाल पर अब इस गांव को शायद इस बात पर जरूर अफसोस होने लगा है कि कहीं उसने छोटा - परिवार के चक्कर में जनसंख्या की लगाम को रोक कर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी तो नही मार ली! गांव के सुरते हाल पर स्वर्गीय दुष्यंत कुमार की ए पंक्तियां यहां तक आते . आते सुख जाती है सभी नदियां , हमें मालूम है पानी कहां ठहरा होगा ! सटीक बैठती है। आज के दौर में धनोरा गांव की युवा पीढ़ी को अपने गांव का परिवार नियोजन अपनाने का सिद्घांत बेहद अफसोस जनक लग रहा होगा क्योकि गांव तक आने वाली विकास की गंगा जनसंख्या के आकड़े के चलते बीच रास्ते से कन्नी काट लेती है। कांग्रेसी होने का तथा स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी का कटट्र समर्थक रहने वाले इस अद्घितीय गांव में 96 साल से कोई आबादी का आकड़ा दो हजार से ऊपर नही गया। आज शायद इसी त्रासदी का शिकार बना यह गांव विकास के दावो से अछुता रहा है। इस गांव के पूर्व सरपंच रघु जीवने का कहना है कि हमे तो कांग्रेसी होने की सजा मिल रही है। गांव के जिस चबुतरे पर स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी ने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्व.पंडित रविशंकर शुक्ल,स्व. सेठ गोविंद दास जी , स्व.जमना लाल बजाज ,राष्टकवि स्व. माखन लाल चतुर्वेदी , स्व.सुभद्रा कुमारी चौहान एवं स्व.पंडित सुन्दरलाल के आतिथ्य एवं बा की अध्यक्षता में सम्पन्न सम्मेलन में गांव के लोगो के बीच बा ने एक नारा दिया था छोटा परिवार सुखी परिवार , आज वही नारा गांव के विकास में पाचर का काम कर रहा है। हरिजन उद्घार के लिए निकली स्वर्गीय श्रीमति कस्तूरबा गांधी के ग्राम धनोरा में आने को आज पूरे 96 साल हो गये भी इस गांव के लोग अपनी नेत्री कस्तूरबा गांधी की सीख पर कायम है। इसी गांव के स्वर्गीय भिलाजी धोटे उस समय इस गांव के प्रमुख कांग्रेसी कार्यकत्र्ता थे जिनके जिम्मे कांग्रेस का पूरा आन्दोलन संचालित था। स्वर्गीय धोटे की तीसरी पीढ़ी में उनके सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे को आज भी इस बात का गर्व है कि उसके घर के सामने मैदान में कांग्रेस का वह सम्मेलन हुआ था तथा बा उनके घर आई थी। हैदराबाद के चिकित्सालय में अपनी सर्जरी करवाने गये भदया जी धोटे की पत्नि श्रीमति यमुना बाई बताती है कि उसके सास- ससुर ने कांग्रेस के सिपाही के रूप में देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी की जीवन संगनी श्रीमति कस्तूरबा गांधी के साथ भाग लिया था। सबसे पहले भिलाजी धोटे ने परिवार नियोजन का सिद्घांत अपनाया उसके बाद उसके बेटे भदया जी धोटे तथा अब उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी की सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे छोटा परिवार सुखी परिवार को अपना चुकी है। श्रीमति कल्पना धोटे अपनी सास के समक्ष गर्व के साथ कहती है कि आज हमारा पूरा गांव कांग्रेस धनोरा के नाम से जाना जाता है जिसके पीछे सिर्फ  एक ही कारण है कि मध्यप्रदेश के इस निर्मल गांव में आज भी छुआछुत का चक्कर नहीं है तथा अनपढ़ अशिक्षित गवार लोग से लेकर एम ए , एल एल बी पास लोग भी आजाद भारत के लगभग 72 साल के बाद भी छोटा परिवार सुखी परिवार के मूल सिद्घांत से रत्ती भर भी भटका नहीं है। आजाद भारत देश के इतिहास में सिर्फ  सरकारी मिशनरी कागजो पर ही देश की अरबो -खरबो जनता को हम दो - हमारे दो , छोटा परिवार - सुखी परिवार का संदेश गांव -गांव तक पहँुचाने के लिए अरबो - खरबो की राशी को पानी की तरह बहा चुकी है। इतना सब करने के बाद भी कोई भी केन्द्र एवं राज्यो में शासन करने वाली किसी भी दल की सरकार ताल ठोक कर ऐसा गांव को जनता के सामने उदाहरण के लिए प्रस्तुत नहीं कर सके जो कि कांग्रेस धनोरा के समकक्ष हो।
    बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 35 किमी दूर स्थित ग्राम कांग्रेस धनोरा के रहवासी लड़का हो या लड़की दोनो को एक समान समझते चले आ रहे हैं। इस गांव के 80 वर्षिय मायवाड़ दादा कहते है कि जब मैं पैदा भी नही हुआ था तब मेरे इस गांव में बा आई थी। मेरे पिताजी ने उनके दर्शन किये । मायवाड़ दादा अपने घर के चरखे को लाकर दिखाते है और कहते है कि मेरे माता . पिता को बा ने ही चरखा चला कर सूत बनाने की सीख दी थी। आज जो भी कारण हो इस गांव के हर घर के उन स्कूल जाने को इच्छुक बच्चो के भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ है कि गांव में स्कूल में आज तक उच्च पाठ शाला ही नहीं खुल सकी है। गांव में कई परिवार ऐसे हैंए जिन्होंने एक लड़की होने पर या दो लड़की होने पर भी परिवार नियोजन को अपना लिया। इसी वजह से पिछले 72 वर्षो में इस गांव में कुल 712 लोगों की वृद्घि हुई है। जिला योजना एवं सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो सन्ड्ढ 1950 में ग्राम धनोरा की कुल आबादी 1118 थी, जो 96 साल बाद बढ़कर 1757 हो गई। वहीं आसपास के गांवों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ग्राम कांग्रेस धनोरा के पास ही बसे गांव जावरा 1950  में जो थी आज वही आबादी दोगुनी हो गई। ग्राम जावरा की 1950 की कुल आबादी 1166 थी जो अब बढ़कर 4332 हो चुकी है। समीप बसे ग्राम के ही ऐसे हालात है। जहां 1950 में आबादी 1001 थी जो बढ़कर 5032 हो गई, जो लगभग तीन गुना है। धनोरा ग्राम के ग्रामीणों द्वारा परिवार नियोजन को अपना लेने के पीछे मानना है कि 1922 में कस्तूरबा गांधी ने ग्रामीणों को परिवार नियोजन के फायदे बताए और हमेशा परिवार नियोजन को अपनाने और उस पर अमल करने की अपील की थी। उस अपील समय से ही पूरे गांव पर बा का हुआ जबरदस्त असर आज भी देखने को मिलता है। स्वर्गीय कस्तूरबा गांधी के बाद कई नेता आए और चले गए लेकिन ग्रामीणों ने परिवार नियोजन वाली बात को गांठ बांध ली और तब से ही ग्रामीण परिवार नियोजन को अपनाते चले आ रहे। ग्राम के पूर्व सरपंच रघु जीवने के अनुसार गांव वालों द्वारा परिवार नियोजन को अपनाने से गांव की आबादी नहीं बढ़ी। आबादी नहीं बढऩे की वजह से कई ऐसी सरकारी योजनाएं जो कि गांव की आबादी के अनुसार गांव को मिलती है। ऐसी कई योजनाएं गांव की आबादी कम होने की वजह से गांव में नहीं आ पाई। आबादी कम होने की वजह से कई सरकारी योजनाएं गांव तक आकर वापस हो गईण् उन्होंने बताया कि आबादी की कमी की वजह से गांव तक पहुंचने के लिए आज तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है। आज भी ग्रामीणों को गांव तक पहुंचने के लिए पैदल चलकर आना पड़ता है और बारिश के दिनों में तो हालात और बद से बदतर हो जाते हैं। ग्रामीणों का पैदल चलना तक मुश्किल हो जाता है। एक लड़की के बाद ही परिवार नियोजन को अपना लेने वाले गांव के जगदीश पंवार जो स्वंय स्वास्थ र्मी है वे कहते है कि मेरी सिर्फ  एक ही लड़की है तो क्या हुआ जरूर मेरी लाड़ली एक दिन यह साबित कर देगी कि लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं होता है। गांव के विकास के बारे में वे भी मानते है कि कई सरकारी योजनाएं गांव में कम आबादी की वजह से नहीं आ पाई है। गांव के रहवासी बलवंत भैया कहते है कि परिवार नियोजन से परिवारों को मिलने वाले ग्रीन कार्ड भी वक्त पडऩे पर काम नहीं आते हैं ! कई बार चिकित्सालयों में ग्रीन कार्ड दिखाने पर डाक्टर इस कार्ड का कोई फायदा नहीं देते उल्टे इसे फेंक देने की सलाह देते है। ऐसे में परिवार नियोजित इस गांव को अन्य लाभ मिलना तो दूर की बात है। ग्राम कांग्रेस धनोरा में पिछले 91 वर्षो में मात्र 600 लोगों की वृद्घि होना और इतने ही समय में आसपास के गांवों में दोगुनी- तिगुनी वृद्घि होना यह साबित करती है कि ग्राम कांग्रेस धनोरा एक आदर्श और परिवार नियोजित गांव है। अधोसंरचना और तमाम मूलभूत सुविधाओं से जूझते हुए इस गांव ने परिवार नियोजन को अपनाकर एक मिसाल तो कायम कर ली। वहीं अपने आप को विकास से कोसो दूर कर लिया।
केन्द्र की कहे या राज्य की भाजपा शासित सरकार को कांग्रेस या राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी कस्तुरबा गांधी (बा)  के नाम एवं काम से एलर्जी है या फिर केन्द्र एवं राज्य सरकार के अफसर नही चाहते कि कांग्रेस या श्रीमति कस्तुरबा गांधी  बा का नाम एवं काम पूरी दुनिया में मिसाल - बेमिसाल बने। बैतूल जिले के क्रियाशील पत्रकार एवं माँ सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति के प्रदेश अध्यक्ष रामकिशोर पंवार ने बैतूल जिला कलैक्टर के माध्यम से जिले के एक गांव धनोरा (कांग्रेस धनोरा) का नाम परिवार नियोजन अपनाने के चलते प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रम में शामिल करवाने को लेकर की गई पहल पर बैतूल जिले में पोती गई कालिख का आरटीआई आवेदन में खुलासा हुआ है। प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात की स्वर्गीय कस्तुरबा पत्नि राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (बा) के बताए सिद्धांत पर चलने वाले गांव की आबादी वर्ष 2001 में इस गांव में पुरूषो की संख्या 839 तथा महिलाओं की संख्या 803 कुल जनसंख्या 1642 वही वह 2011 में पुरूषो की संख्या भी 884 तथा महिलाओ की संख्या 803 कुल जनसंख्या 1687 थी। वर्तमान में 950 पुरूष तथा 807 महिला कुल 1757 है। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की आठनेर जनपद की ग्राम पंचायत धनोरा के मूल ग्राम धनोरा ( जिसे कांग्रेस धनोरा के नाम से पुकारते है ) में कुल मकान 324 है तथा परिवारो की संख्या 371 है। धनोरा में कुल योग्य दपंत्ति 257 में  सरकारी रिकार्ड की माने तो 184 ने स्वत: परिवार नियोजन को अपनाया है।  इस गांव का नाम प्रधानमंत्री के कार्यक्रम मन की बात में शामिल करने के लिए श्री पंवार ने पीएमओ से लेकर बैतूल कलैक्टर तक से बीते 2 वर्षो से लगातार पत्राचार किया लेकिन गांव का नाम कांग्रेस धनोरा और गांव की प्रेरक के रूप में स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी का नाम आने की वजह से मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार एवं उसका सरकारी तंत्र इस गांव का नाम पीएमओ तक नही पहुंचने दिया। पीएमओ से लेकर कलैक्टर बैतूल तक को इस गांव के बारे में भ्रामक जानकारी दी जाते रही। आरटीआई एक्टीविस्ट एवं समाजसेवी श्री पंवार ने विभिन्न माध्यमो से प्राप्त संलग्र दस्तावेज के आधार पर जानकारी देते हुए बताया कि गांव के बारे में डाँ प्रदीप मोजेस जिला  मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने दिनांक 6 फरवरी 2016 को पत्र क्रमांक मीडिया / 2015-2016 /3235 एवं 36 /  2016 के अनुसार बैतूल कलैक्टर को जानकारी दी कि गांव धनोरा में 2 से लेकर 5 बच्चो पर आपरेशन करवाने वाले हितग्राही है इसलिए इस गांव का नाम पीएमओ की के कार्यक्रम मन की बात में शामिल किया जाना तथ्यहीन है। लेकिन रामकिशोर पंवार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जब सभी परिवार नियोजन अपनाने वाले दंपत्ति की जानकारी मांगी गई तो उसमें जो प्रमाण आए उसके अनुसार गांव में एक भी ऐसा परिवार नहीं मिला जिनकी 5 संताने थी । इसी तरह 4 बच्चो पर आपरेशन करवाने वालो की संख्या पहले 23 बताई गई लेकिन जब नामो की सूचि मांगी गई तो उसमें संख्या 4 बच्चो पर अटक गई। 4 बच्चो पर आपरेशन करवाने वालो के 5 लोगो की जानकारी दी जिसके बारे में जब मैने पता किया तो पता चला कि वे गांव के मूल रहवासी नही है। बाहर गांव से आकर बसे ऐसे 5 परिवारो को सूचिबद्ध किया गया। 3 बच्चो पर नसबंदी करवाने वालो की पूर्व में संख्या 52 बताई गई लेकिन जब नाम की जानकारी मांगी तो उक्त संख्या 12 हो गई। इसी तरह 2 बच्चो पर नसबंदी करवाने वालो की संख्या 104 बताई गई जो घट कर 43 रह गई। पूर्व में दी गई जानकारी में बताया गया कि 184 लोगो ने नसबंदी करवाई ऐसा बताया गया लेकिन जानकारी सूचि मांगने पर संख्या घट कर 60 हो गई। स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी बा के द्वारा प्रेरित इस गांव की जनसंख्या 1961 में 1410 थी जो वर्तमान में 1757 के लगभग है। मात्र 58 वर्षो में गंाव की जनसंख्या 277 बढ़ी है। 1922 से गांव धनोरा से टूट कर पुसली, धनोरी, जावरा , जैसे गांव  बने और इन गांवो की जन संख्या वर्तमान में 2 हजार से ऊपर 5 हजार तक हो चुकी है लेकिन धनोरा गांव 1922 से लेकर 2018 तक दो हजार के आकड़े को छूना तो दूर 18 सौ के आकड़े तक नहीं पहुंच सका है। गांव के बारे में जो महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए है उनके अनुसार धनोरा गांव में ऐसे लोगो की संख्या 19 है जिनके 1 भी बच्चा नहीं है। 1 बच्चे वाले 30 परिवार,  2 बच्चे वाले 14  परिवार तथा 3 बच्चे वाले 10 परिवार मिले। धनोरा गांव में कथित निरोध का उपयोग करने वाले 22 दपंत्ति बताए गए है। गांंव की जन्मदर 8.53 है। गांव में औसतन एक साल में बमुश्कील 15 बच्चे जन्म लेते है। बैतूल जिले के अधिकारियों ने सरकारी लक्ष्यपूर्ति के लिए स्वप्रेरित गांव को नसबंदी अपनाने वाला बता कर गांव के आदर्श को कालिख पोतने का काम किया है। दुनिया में धनोरा एक मात्र ऐसा गांव है जो 1922 से लेकर आज तक परिवार नियोजन के अपने फैसले पर अटल है जबकि गांव के अधिकांश लोग अब इस दुनियां में नहीं है जो बा की बातो को लेकर चल पड़े थे कि छोटा परिवार - सुखी परिवार , हम दो - हमारे दो । श्री पंवार ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी को पत्र लिख कर उनसे अनुरोध किया है कि उन्हे बड़ी प्रसन्नता होगी यदि आप मेरे कहने पर या मेरे इस पत्र को अवलोकन करने के बाद यदि बिना किसी भेदभाव के इस गांव को अपने कार्यक्रम मन की बात में शामिल करते है। श्री पंवार ने इस संदर्भ में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को भी पत्र लिखा है जिसमें उनसे आग्रह किया है कि 1922 में कांग्रेस के प्रांतीय अधिवेशन में लिए गए संकल्प पर वचनबद्ध गांव धनोरा जिसकी पहचान कांग्रेस धनोरा के रूप में भी है उस गांव को लेकर एवं बा की प्रेरणा को पूरी दुनिया तक मिसाल के रूप में पेश करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्य योजना के साथ सामने आना चाहिए साथ ही देश के सशक्त विपक्ष के रूप में प्रधानमंत्री के समक्ष इस गांव को उनके कार्यक्रम मन की बात में शामिल करवाना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो निश्चीत तौर पर उस कांग्रेस की नींव की पत्थर कही जाने वाली गुजराती महिला स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी बा का मान - सम्मान पूरी दुनियां में बढ़ेगा जो इस दुनियां में धनोरा जैसा आदर्श गांव को बनाने में मिल का पत्थर साबित हुई।